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अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण पर सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक है मुहर, आज हुआ भारत कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक

सोमवार 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने सर्वसम्मति से एक ऐतिहासिक फैसला दिया. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को सही माना है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 5 अगस्त 2019 को भारतीय संसद के फैसले को संवैधानिक स्वीकृति मिल गयी है. इसके साथ ही देश में जगह-जगह जश्न मनने लगा, हालांकि कुछ विपक्षी दल और कश्मीरी नेताओं ने राजनीतिक रूप से इसके खिलाफ संघर्ष जारी रखने की भी बात कही है. 

140 करोड़ भारतीयों की जीत

समय-समय पर परिवर्तन होता रहता है. भारत को जब अंग्रेजों से आजाद कराया गया, तो सबने मिल कर वह लड़ाई की थी. फिर, एक शुभ दिन आया जिसे हम 15 अगस्त 1947 कहते हैं. उस दिन हमें आजादी मिली, लेकिन उसी दिन एक बहुत ही कष्टदायक घटना भी हुई, जिसमें भारत के दो टुकड़े हुए. भारत-विभाजन मजहब के आधार पर हुआ था. पाकिस्तान बनने के बाद जो भारत का हिस्सा बचा, उसे एक होना चाहिए था, और कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक निशान, एक विधान होना चाहिए. ऐसा भारतीय जनमानस सोचता था. जब 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाया गया, उसके बाद से फिर इस फैसले की समीक्षा के लिए, इस फैसले को चुनौती देने के लिए एक पक्ष गया. सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया, वह एक ऐतिहासिक फैसला है, एक ऐतिहासिक दिन है और यह 140करोड़ भारतीयों की भावनाओं, आस्थाओं, मान्यताओं, परंपराओं और भारतीय संविधान की विजय है, जो भारत की एकता और अखंडता की बात करता है. जो संविधान लिंग, भाषा, जाति, धर्म इत्यादि के नाम पर भेदभाव करने की इजाजत नहीं देता है. यह भारत की विजय है, इसलिए स्वागत योग्य है. 

सरकार का विरोध मतलब देश का विरोध नहीं

भारत एक लोकतांत्रिक देश है. इसमें सरकार के फैसले से असहमति, समीक्षा और आलोचना करने का विपक्ष को पूरा अधिकार है. अगर भारत सरकार ने एक फैसला लिया, उसका विरोध हुआ तो वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया है. हालांकि, 370 का हटाया जाना भारत के हित में था, है और रहेगा, यह बात सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सिद्ध हो गयी है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूर्णतः स्वागत और समर्थन करते हुए मैं उसका आभार व्यक्त करता हूं. भारत में सभी प्रधानमंत्रियों के फैसले की आलोचना हुई है- पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक, इंदिरा गांधी से नरसिंह राव तक, कोई भी प्रधानमंंत्री आलोचना से नहीं बच पाए हैं. नरेंद्र मोदी के भी फैसलों की आलोचना होनी ही चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र की यही खूबसूरती है.

हालांकि, पिछले कुछ दिनों से हम ये देख रहे हैं कि भारत का विपक्ष कुछ ऐसा है कि भाजपा की आलोचना करते-करते भारत की आलोचना करने लगता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. जैसे, जब नयी संसद बनी तो उसके उद्घाटन का बहिष्कार किया गया, जो गलत फैसला था. वह भारत की संसद थी, तो उसका उद्घाटन तो भारत का प्रधानमंत्री ही करेगा, पाकिस्तान का प्रधानमंत्री तो करेगा नहीं. सवाल यह है कि यदि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है, तो किसी भी राज्य को विशेष दर्जा देना गलत है या सही, इसका फैसला कौन करेगा...वह भारत की जनता की चुनी हुई संसद और उसके प्रतिनिधि करेंगे. भारत की जनता की चुनी हुई सरकार ने एक फैसला लिया कि हम अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला करते हैं. वह हट गया. फिर, लोग सुप्रीम कोर्ट गए. सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया कि फैसला सही है. 

कश्मीर हमारा, हम उसके

लोकतंत्र के जो चार स्तंभ हैं, न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका. इसके साथ ही निष्पक्ष मीडिया को हम चौथा खंभा मानते हैं तो  वे सभी इस बात से सहमत दिखते हैं कि अनुच्छेद 370 को हटाने का फैसला सही है तो इसलिए उसका दिल से स्वागत होना चाहिए. मैं ये नहीं मानता कि नेहरू का फैसला गलत था. उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने यह फैसला लिया होगा. उनके फैसले पर प्रश्नचिह्न लगाया जा सकता है, उनकी नीति पर भी प्रश्नचिह्न लगा सकते हैं, लेकिन उनकी नीयत पर सवाल नहीं उठा सकते हैं. इसका समर्थन नहीं किया जा सकता है.

उस समय जो हालात थे, संभवतः उसको देखते हुए वह ठीक होगा, लेकिन 70-75 वर्षों की आजादी के बाद जब वह प्रासंगिक नहीं लग रहा था, ऐसा लग रहा था कि कश्मीर कहीं और है, तो उसको हटा सकते हैं. यदि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, तो उस पर दो कानून क्यों होने चाहिए, दो झंडे क्यों होने चाहिए? आज सुप्रीम कोर्ट ने उस पर मुहर लगा दी है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक आज भारत में एक विधान, एक निशान और एक संविधान है. इससे अधिक स्वागत योग्य बात क्या होगी, इसका स्वागत करना चाहिए. 

अब इस तरह के शब्दों का प्रयोग करना कि 370 नासूर था, घाव था, ये सब थोड़ा अधिक होगा, लेकिन हां एक अलगाव तो दिखता था. लगता था कि कश्मीर अलग है और हम अलग हैं. आज सब कुछ एक लग रहा है. कश्मीर हमारा है, हम कश्मीर के हैं और कश्मीर के तमाम भाई-बहनों को भी इसका स्वागत करना चाहिए. काम तो पहले ही यह हो जाना चाहिए था. हमारे यहां कहा भी गया है- शुभस्य शीघ्रम्. अब हरेक सरकार को तो कठघरे में खड़ा नहीं कर सकते. अब यह मानना चाहिए कि जो हुआ, जब हुआ, अच्छा हुआ. इस समय पुराने बुरे दिनों को क्यों याद किया जाए. यह एक बड़ा काम था.

लोग मानते थे कि 370 हटेगा तो गृहयुद्ध होगा. इसके लिए मैं नरेंद्र मोदी को बधाई देना चाहूंगा कि 370 भी हट गया और कश्मीर भी शांत है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी. मैं देश के प्रधानमंत्री को भी बधाई देता हूं और विपक्षी नेताओं को भी यह कहूंगा कि उनका कोई काम ऐसा नहीं होना चाहिए, जो देश के खिलाफ हो. अनुच्छेद 370 का हटना देश के हित में है, इसलिए अब आगे बढ़ने का काम करें, भारत को विश्वगुरु बनाने की दिशा में काम करें और इस फैसले का सम्मान करें, पूरे भारत की जनता को इस मौक पर फिर से बधाई देता हूं. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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