सुप्रीम कोर्ट आज 'बुलडोज़र' पर ब्रेक लगायेगा या फिर हरी झंडी दिखायेगा?
देश की सर्वोच्च अदालत ने आज यानी गुरुवार को एक बड़ा फैसला लेना है कि इस देश में कानून का राज बुलडोज़र से चलेगा या फिर फिर संविधान से? देश के सबसे बड़े सूबे उत्तरप्रदेश में पिछले दिनों हुई हिंसा के आरोपियों की संपत्ति को बुलडोजर से ध्वस्त करने की कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका दायर की गई थी,उस पर आज सुनवाई होनी है,जिसे लेकर अल्पसंख्यक समुदाय को पूरी उम्मीद है कि उन्हें इंसाफ़ मिलेगा.
हालांकि ये याचिका तो जमीयत उलेमा ए हिंद ने दायर की है.लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि इसी मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के तीन रिटायर न्यायाधीशों समेत 12 लोगों ने चीफ जस्टिस को लेटर लिखकर कहा है कि यूपी में लोगों के संवैधानिक अधिकार से उन्हें वंचित किया जा रहा है.लोगों को अवैध तरीके से हिरासत में लिया जा रहा है और बुलडोजर चलाया जा रहा है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट संज्ञान ले.जाहिर है कि आज होने वाली सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत उस याचिका के साथ ही इस चिट्ठी पर भी गौर करेगी.
गौर करने वाली सबसे अहम बात ये भी है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिखने वाले तीनों रिटायर जस्टिस में कोई भी मुस्लिम नहीं है.इसलिये कोई भी राजनीतिक दल ये नहीं कह सकता कि इसे कोई मज़हबी जामा पहनाया जा रहा है.लिहाजा,ये एक राज्य सरकार की उस मनमानी को उजागर करने वाला ऐसा गंभीर कानूनी मसला है,जिसका हक संविधान ने उसे दिया ही नहीं है.जाहिर है कि हर प्रदेश में कानून-व्यस्था कायम रखने की जिम्मेदारी वहां की पुलिस पर ही होती है,जो उस सरकार के निर्देशों का आंख मूंदकर पालन करती है,बगैर ये सोचे-समझे कि वो किस गैर कानूनी या असंवैधानिक काम को अंजाम दे रही है.
दरअसल,बीजेपी से निलंबित प्रवक्ता नुपूर शर्मा के विवादित बयान के बाद 3 जून को कानपुर से हिंसा भड़कने का जो सिलसिला शुरू हुआ था,उसने यूपी के आधा दर्जन से भी ज्यादा शहरों और देश के दूसरे राज्यों को भी अपनी चपेट में ले लिया.उसके बाद ही यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने सख्त एक्शन लेते हुए अपने पुलिस-प्रशासन को ये निर्देश दिए कि दोषी दंगाइयों की संपत्तियों को बुलडोज़र से ध्वस्त कर दिया जाये.
इसीलिये मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी अर्जी में कहा है कि किसी भी प्रॉपर्टी को बिना किसी नोटिस के ध्वस्त नहीं किया जा सकता है. ध्वस्तीकरण के लिए एक तय प्रक्रिया है और तय कानूनी प्रावधान और प्रक्रिया के तहत ही संपत्ति को ध्वस्त किया जा सकता है. इस याचिका में यूपी में बुलडोजर कार्रवाई पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई है.उसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच को आज सुनवाई करनी है.
दिल्ली हाइकोर्ट के वकील और मानवाधिकार के मुद्दों पर मुखर आवाज़ उठाने वाले रवींद्र कुमार सवाल उठाते हैं कि," कोई दंगा करने-भड़काने या किसी अन्य तरह का जुर्म करने का दोषी कौन है,इसका फैसला किसी राज्य की सरकार और उसका हर फरमान मानने वाली पुलिस करेगी या फिर देश की अदालतें करेंगी? अगर सरकार को ही न्यायपालिका की भूमिका में आने का इतना ही शौक़ है,तो फिर इस देश में कोर्ट की जरुरत ही क्या है? फिर तो सुप्रीम कोर्ट से लेकर देश की सारी निचली अदालतों में ताले लगा देना चाहिए." उनके मुताबिक "यूपी सरकार की बुलडोज़र कार्रवाई करने का फैसला संविधान व कानून के खिलाफ है.ये न्यायपालिका के अधिकार-क्षेत्र को जबरदस्ती हड़पने और न्यायपालिका को अपनी मर्जी से चलाने का एक खतरनाक संदेश देने की कोशिश भी है.लेकिन मेरा मानना है कि न्यायपालिका संविधान के प्रावधानों के मुताबिक आगे बढ़ेगी,न कि कार्यपालिका के किसी अनुचित दबाव में आएगी."
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को जिन 12 लोगों ने चिट्ठी लिखकर संज्ञान लेने की गुहार लगाई है,उनमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जस्टिस बी.सुदर्शन रेड्डी, जस्टिस वी. गोपाला गौडा और जस्टिस एके गांगुली का नाम है.इसके अलावा दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर चीफ जस्टिस एपी शाह समेत तीन हाई कोर्ट के रिटायर जस्टिस और सीनियर वकील शांति भूषण समेत छह वकील भी शामिल हैं.उस चिट्ठी में कहा गया है कि यूपी में अवैध तरीके से लोगों को हिरासत में लिया गया है और लोगों के घरों पर बुलडोजर चलाए जा रहे हैं और पुलिस की कार्रवाई अवैध और बर्बर तरीके से हो रही है. मामले में तुरंत संज्ञान लिए जाने की जरूरत है. देखना ये है कि आज सुप्रीम कोर्ट बुलडोज़र को हरी झंडी दिखाता है,या फिर अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए इस पर हमेशा के लिए ब्रेक लगाता है?
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