हमारा जो कानूनी व्यवस्था है, जो क्रिमिनल लीगल सिस्टम है उसमें हर व्यक्ति को ऊपरी अदालत में अपील करने का अधिकार है. यही वजह है कि राहुल गांधी को अपील करने का समय दिया गया है. अपील के दौरान जब स्टे ऑर्डर मिल जाएगा तो जेल जाने की बात नहीं होगी. लेकिन ये मानना होगा कि इनकी सजा पर रोक लगा दी जाए तब ये नौबत नहीं आएगी. लेकिन अगर स्टे नहीं लगेगा तो उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है. लेकिन ये चूंकि लोअर कोर्ट का ऑर्डर है और इसमें बहुत सारी खामियां हो सकती हैं, उसके आधार पर सजा पर रोक लगाई जा सकती है.
चूंकि, राहुल गांधी को मानहानि के मामले में सजा सुनाई गई है, और जहां तक बात पीपुल्स रिप्रेजेंटेशन का मामला है कि क्या मानहानि के मामले के चलते इनकी सदस्यता को रद्द किया जा सकता है या नहीं? तो मैं आपको एक केस का उदाहरण देता हूं. एक मामला था लीली थॉमस बनाम इंडिया का. इसके अंतर्गत सेक्शन 8 और सब सेक्शन 3 ऑफ द पीपुल्स रिप्रेजेंटेशन एक्ट में यह स्पष्टता से लिखा गया है कि 2 साल तक की जो सजा है तो तत्काल प्रभाव से सदस्यता को खत्म किया जा सकता है.
क्या हो सकती है जेल?
लीली थॉमस के केस में जो निर्णय आया था उसमें सेक्शन 8 और सब सेक्शन चार को स्ट्रकआउट कर दिया गया था. यानी कि उसे असंवैधानिक करार दे दिया गया था. चूंकि ये जो सेक्शन 8 और सब सेक्शन 4 था वो आरोपित MLA और MP को अपने आरोपों को चुनौती देने के लिए 3 महीने का समय देता था. ऐसे में वे उसमें लोग स्टे ऑर्डर ले आते थे और उनकी जो सदस्यता थी वो बरकरार रहता था. इसे सुप्रीम कोर्ट ने लीली थॉमस के केस में असंवैधानिक करार दे दिया और कहा कि अगर किसी को 2 साल की सजा सुनाई जाती है तो उसे तत्काल प्रभाव से सदस्यता से हटाया जा सकता है. ये कानून का प्रावधान बताता है.
अगर लीली थॉमस के केस में सेक्शन 8 और सब सेक्शन चार को स्ट्रकआउट कर दिया गया है तो राहुल गांधी की सदस्यता तो बिल्कुल जानी चाहिए. चूंकि ये दोनों जो धाराएं हैं द पीपुल्स रिप्रेजेंटेशन एक्ट में उसमें लिखा गया है कि दो साल तक की सजा होने पर आरोपित को तुरंत प्रभाव से सदस्यता से मुक्त कर दिया जाएगा. देखिये, कानून ये बताता है कि अगर अपर कोर्ट स्टे लगा देती है तो सजा को नहीं माना जाता है जब तक उस पर कोई निर्णय नहीं हो जाता है, तो इसमें दाव-पेंच तो है.
जहां तक सदस्यता जाने की बात है तो कानूनी तौर पर तो स्पष्ट है कि उसकी सदस्यता जा सकती है. लेकिन ये देखने की जरूरत है कि क्या जो लोअर कोर्ट का ऑर्डर है, उसे इनऑपरेटिव कर दिया जाता है या नहीं. मुझे लगता है कि उनकी सदस्यता जानी चाहिए. क्योंकि फिर तो क्रिमिनल सिस्टम का कोई मतलब नहीं है न. मान लिया कि कोई मर्डर है और लोअर कोर्ट ओवर-टर्न कर देती है, तो सिस्टम तो ऐसे ही चलता है, न कि अगर एक कोर्ट गलती करता है तो दूसरा उसे सही करता है. उसके लिए इतनी बड़ी सजा नहीं होनी चाहिए.
छवि पर असर
ये तो नैचुरल है कि अगर किसी को सजा हो जाती है तो और उसका प्रिजम्पशन ऑफ इनोसेंट है तो उसमें तो एक सेंध लग ही जाता है. ये भी तो साफ है कि अगर आप किसी के बारे में गैर-जिम्मेदाराना टिप्पणी करते हैं और आपको कोर्ट दोषी करार देता है तो निश्चित रूप से आपकी छवि खराब होगी. लोगों की नजरों में यह कमजोर होगी. क्योंकि जो भी आप वक्तव्य देते हैं उसे पूरी जिम्मेदारी के साथ देने की जरूरत है. और अगर कोर्ट ने उन्हें सजा सुनाई है तो निश्चित तौर पर उसके कुछ पुख्ता सबूत होंगे तो मेरा मानना है कि निश्चित तौर पर राजनीतिक रूप से इनको प्रभावित करेगा. क्योंकि ये कई तरह के बयान देते रहते हैं जिसका की कोई सिर-पैर नहीं होता है. तो ये किसी भी राजनेता के करियर के लिए बहुत बड़ी बात है चूंकि किसी को आरोपित ठहराया जाना बड़ी चीज होती है किसी भी राजनीतिक भविष्य को तय करने के लिए.
निश्चित रूप से राहुल गांधी राजनीतिक करियर के लिहाज से ये एक महत्वपूर्ण निर्णय है. चूंकिं इस तरह के मामले में पहली बार गांधी-नेहरू परिवार को दोषी पाया गया है. क्रिमिनल केस में आरोपित साबित होना एक बहुत बड़ी बात होती है और ये आरोप अब इनको बाहर जाने के लिए वीजा लगाते समय इन्हें लिखना पड़ेगा कि मैं आरोपित हूं और हर साल पासपोर्ट को रिन्यू कराना पड़ेगा. चूंकि किसी भी आरोपित व्यक्ति का पासपोर्ट हर साल बनाया जाता है...तो किसी भी राजनेता की जो एक स्वच्छ छवि है और राजनीतिक करियर है उसे प्रथम दृष्टया बताने के लिए ये फैसला बहुत बड़ा आघात है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल शशांक देव सुधी से बातचीत पर आधारित है]