नयी दिल्लीः कितना अजीब संयोग है कि ठीक दो दिन पहले यानी 23 मई को दुनिया में 'वर्ल्ड रेसलिंग डे' मनाया जा रहा था, लेकिन उसी दिन कुश्ती में भारत का नाम चमकाने वाला पहलवान सुशील कुमार दिल्ली पुलिस के हवालात की सलाखों के पीछे बंद था. हैरानी नहीं होना चाहिए कि भारतीय कुश्ती के इतिहास में अब लोग इसे काले दिन के रुप में याद करें. अखाड़े की मिट्टी से लेकर ओलंपिक के गद्दों पर अपने दांवपेंच से भारत को मेडल दिलवाने वाला खिलाड़ी अगर अचानक किसी के कत्ल का आरोपी बन जाये, तो यह सिर्फ खेल-जगत ही नहीं बल्कि पूरे देश के खेलप्रेमियों के लिए शर्मसार होने की हालत होती है.


खेल-जगत का चमकता सितारा जब जुर्म की दुनिया में अपना पहला कदम रखता है, तो उसके पीछे दौलत की भूख या आपसी रंजिश ही बड़ी वजह होती है और तब शोहरत की चकाचौंध भी उसके लिए कोई मायने नहीं रखती. अपने जूनियर साथी पहलवान सागर धनखड़ की हत्या का असली मकसद तो पुलिस की तफ्तीश में ही पता लगेगा लेकिन अब तक इस मामले से जुड़ी जो कहानियां सामने आ रहीं हैं,उनसे यह यकीन करना मुश्किल है कि बाकी लोगों को सबक सिखाने के लिए उसने इतना बड़ा कदम उठाया.


दिल्ली के नजफगढ़ इलाके के गांवों के लोग सुशील की इस करतूत से हैरान भी हैं और ग़मज़दा भी. इसलिये कि यहां के बापरौला गांव के अखाड़े में महज 14 बरस की उम्र से ही उन्होंने सुशील को कुश्ती के दाव सीखते देखा है. गांव की मिट्टी से पहलवान बने इस लड़के ने जब 2008 के पेइचिंग ओलंपिक में गद्दे पर खेली गई कुश्ती में कांस्य पदक जीता, तो  किसी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. कई दिनों तक गांवों में लड्डू बंटते रहे. यहीं से सुशील की किस्मत का सितारा चमका जिसने उसे रातों-रात शोहरत की बुलंदी पर पहुंचा दिया. वह खेल के ऐसे ब्रांड एम्बेसडर बन गए कि लोगों ने अपने बच्चों को पहलवान बनाना शुरू कर दिया. उसके बाद 2010 की वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने के बाद तो सुशील पर मानो पैसों की बारिश होने लगी. राज्य सरकारों ने लाखों रुपये ईनाम में दिए, तो कॉरपोरेट जगत ने भी उन्हें हाथो-हाथ लिया और वह कई विज्ञापनों में आने लगा.


कुश्ती के महाबली कहे जाने वाले सतपाल पहलवान ने जिस सुशील को अपना शिष्य बनाकर ओलम्पिक में कामयाबी दिलाई, उन्होंने ही 2011 में उसे अपना दामाद बना लिया. दरअसल, अक्टूबर 2010 में दिल्ली में हुए कामनवेल्थ खेलों में सुशील ने गोल्ड मेडल जीता, तो उसके तुरंत बाद सतपाल पहलवान ने एलान कर दिया की वे अपनी बेटी सावी की शादी सुशील से करने वाले हैं. तब तक सुशील शोहरत के साथ खासी दौलत का भी मालिक बन चुका था. शादी के बाद लंदन ओलंपिक में सुशील को शिरकत करनी थी, लिहाजा एक आशंका बनी हुई थी कि कहीं यह शादी उसकी कामयाबी का रोड़ा न बन जाए. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और तब सुशील ने वहां सिल्वर मेडल जीतकर एक बार फिर खुद को बेहतर साबित कर दिखाया. बताते हैं कि अपने शिष्य से दामाद बने सुशील को इस कामयाबी तक पहुंचाने के लिए तब सतपाल पहलवान ने शादी के बाद भी अपनी बेटी को उससे अलग रखा था.


यह सच है कि अखाड़े में नाकाम रहने वाले पहलवान भी कमाते हैं लेकिन या तो उनका इस्तेमाल चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियां करती हैं. या वे बैंकों के कर्ज वसूली एजेंट बन जाते हैं या फिर दिल्ली-हरियाणा के पब-क्लब में बाउंसर बन जाते हैं. सुशील के साथ तो ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी, फिर उसने जुर्म का रास्ता क्यों पकड़ा? इसका जवाब उसे जानने वाले ही देते हैं कि पिछले कुछ समय से उसका साथ गलत संगत में जुड़ गया था. इनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली-हरियाणा के कुछ प्रमुख  गैंगस्टर्स के नाम लिये जा रहे हैं. वैसे एक और हैरानी की बात है कि पिछले एक साल में दिल्ली पुलिस ने दो दर्जन पहलवानों के खिलाफ हत्या की कोशिश, धमकाने व मारपीट करने के मामले दर्ज किए हैं.