टी-20 वर्ल्ड कप: दोहरी हार का ठीकरा अपने सिर लेने से आखिर क्यों बच रहे हैं विराट कोहली?
बरसों पहले अपने जमाने एक गुमनाम शायर शाकिर उज्जैनी ने लिखा था- "शोहरत इंसान का दिमाग खराब कर देती है और इफ़रात में मिली दौलत उसके पैर कभी जमीन पर टिकने नहीं देती." क्रिकेट की दुनिया में इस शायर की बात कुछ हद तक इसलिये मुकम्मल बैठती है कि दुबई के मैदान पर पाकिस्तान के हाथों पहली ऐतिहासिक शिकस्त खाने के बाद विराट कोहली को उससे सबक ये लेना चाहिये था कि इन दोनों नशों की खुमारी उतारकर उस मैदान व पिच की हक़ीक़त को देखते हुए अपनी रणनीति को अंजाम दिया जाये.हालांकि उन्होंने अपनी सोच के मुताबिक रणनीति बनाई थी क्योंकि न तो रोहित शर्मा से ओपनिंग बैटिंग करवाई और न ही अपने क्रम पर वे खुद मैदान में उतरे. लेकिन उनका ये प्रयोग पूरी तरह से फ़ैल साबित हुआ. लिहाज़ा,विराट कोहली की इस नौसिखिया रणनीति पर देश के पुराने नामचीन खिलाड़ी सवाल उठा रहे हैं,तो वे गलत नहीं कर रहे हैं.अगर जीत का सेहरा टीम के सेनापति के सिर पर ही बंधता है,तो फिर हार का ठीकरा अपने सिर पर फूटने से बचने के लिए किसी कप्तान को आखिर इस तरह से मुंह छिपाकर भला क्यों भागना चाहिए?
टी-20 वर्ल्ड कप में लगातार हुई इस दूसरी हार से सवाल तो ये भी उठ रहे हैं कि इसके लिए अकेले विराट ही जिम्मेदार हैं या फिर हमारे कोच का भी कोई रोल है या फिर टीम के वो खिलाड़ी सबसे ज्यादा कसूरवार हैं,जिनका ध्यान अपने खेल से ज्यादा मल्टी नेशनल कंपनियों की चीजों को बेचने के विज्ञापन से होने वाली कमाई पर ही ज्यादा होता है? जाहिर है कि कंपनी कोई देसी हो या विदेशी, वो अपना ब्रांड अम्बेसेडर उसी को बनाती है जिसने मैदान में अपने हुनर का जलवा दिखाते हुए देश के बड़े तबके के दिलों-दिमाग में अपना एक अलग मुकाम बनाया हो. इस मामले में फिलहाल तो विराट कोहली ही अव्वल नंबर पर हैं,इसीलिये सवाल पूछने वालों के निशाने पर वे इसलिये भी सबसे आगे हैं क्योंकि वही भारतीय टीम के कप्तान हैं.
वैसे मैच हार जाने के बाद कोई भी कप्तान मीडिया से कभी इस तरह से मुंह नहीं मोड़ता,जिसका शर्मनाक उदाहरण रविवार को विराट ने दिया.ये सबके लिए खलने लायक बात ही थी और इसीलिए कपिलदेव व मोहम्मद अजहरुद्दीन जैसे नामचीन खिलाड़ियों ने इसकी मुखर होकर आलोचना भी की और ये सवाल भी उठाया कि अन्तराष्ट्रीय मैचों में कप्तानी करने के लिए विराट कोहली क्या वाकई उतने काबिल हैं? ये सवाल इसलिये भी महत्वपूर्ण है कि दुनिया में जितने भी बेहतरीन कप्तानों को अगर आज भी याद किया जाता है,तो वह इसलिये कि उन्होंने मैदान के भीतर और बाहर आकर भी अपनी परिपक्वता का परिचय दिया है,चाहे वे बाजी जीतें हों या हार गए हों.
बरसों से क्रिकेट कवर करने वाले अनुभवी पत्रकार मानते हैं कि अगर आप उस लिहाज़ से देखेंगे, तो बेशक विराट एक शानदार खिलाड़ी हैं लेकिन बतौर एक कप्तान उनमें सबसे बड़ी कमी ये है कि वे अपने से भारी टीम के खिलाफ अचूक रणनीति बनाने में या तो चूक जाते हैं या फिर ओवर कॉंफिडेंट हो जाते हैं.मैदान खेल का हो या जंग का,यदि आपने दुश्मन को कमजोर समझ लिया,तो मानकर चलिये कि आधी बाज़ी तो आप पहले ही हार गए.पाकिस्तान की हार से विराट ने कोई सबक नहीं लिया बल्कि वही गलती न्यूजीलैंड के साथ खेले गए मैच में भी दोहराई. जबकि मैच से एक दिन पहले मीडिया से बातचीत में खुद उन्होंने ये सच कबूला था कि मैच जीतने में टॉस जीतने की भी बहुत ज्यादा अहमियत है और दुबई के मैदान में ओस भी महत्वपूर्ण रोल अदा कर रही है.
कपिलदेव के मुताबिक "अगर मैं कप्तान होता,तो ऐसे हालात में अपनी टीम का बेटिंग आर्डर कभी नहीं बदलता.इस हार में रोहित शर्मा से ओपनिंग न करवाना और ख़ुद विराट का बाद में बेटिंग करने का फैसला टीम इंडिया के लिए एक तरह से आत्मघाती साबित हुआ."
क्रिकेट में चाहे टेस्ट मैच हो,वनडे हो या फिर टी-20 लेकिन जब बात वर्ल्ड कप की होती है,तो वह देश की आन-बान और शान का मसला बन जाता है,जहाँ समूचा देश टीम इंडिया के जीतने की मन्नतें कर रहा होता है.क्रिकेट के प्रति लोगों की ऐसी दीवानगी और उनके इस इमोशन का ऐसा नज़ारा भारत के सिवा शायद ही किसी और देश में देखने को मिलता हो. लिहाज़ा,ऐसे माहौल में मैच हार जाने के बाद ही टीम के कप्तान की तरफ से आई इतनी जबरदस्त निराशा भरी प्रतिक्रिया सबको चौंकाने वाली भी है. कपिलदेव ने भी विराट कोहली के इस बयान पर हैरानी जताई, जिसमें उन्होंने कहा कि "हम इतने बहादुर नहीं थे कि न्यूजीलैंड से जीत पाते." बात सही भी है कि किसी भी टीम का एक अनुभवी, मंजा हुआ और परिपक्व कप्तान मैच हारने के बाद शायद ही कभी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करेगा ये उसने कभी ऐसा किया होगा. कपिलदेव की इस बात में बेहद वजन है कि ये सिर्फ 11 खिलाड़ियों की हार-जीत का सवाल नहीं है,बल्कि पूरे देश की बात है क्योंकि वी आपके साथ खड़ा है,लिहाज़ा ऐसी बात कहकर तो आप पूरे देश को ही दुनिया के सामने कमजोर साबित कर रहे हो.पूर्व कप्तान अजहरुद्दीन ने तो साफ कह दिया कि "किसी भी हार की जिम्मेदारी कप्तान पर ही आती है और अगर वो इससे बचने के बहाने खोजता है,तो फिर ये टीम इंडिया के सिलेक्शन बोर्ड को सोचना चाहिए कि वह इंटरनेशनल टूर्नामेंट में कप्तानी के लायक है भी या नहीं"
हालांकि अब ये एक बड़ी बहस का मुद्दा बनता जा रहा है कि विराट कोहली से क्या कप्तानी छीन ली जानी चाहिए. फैसला तो बीसीसीआई को करना है लेकिन जहां तक टॉस जीतने की बात है,तो वे इस मामले में तो अब तक अनलकी ही साबित हुए हैं क्योंकि जितनी बार सिक्के ने उनका साथ नहीं दिया,तकरीबन हर बार वे मैच हार ही हैं.
वर्ल्ड कप में इस दोहरी हार के बहाने सचिन तेंदुलकर की वो बात याद आ जाती है,जब वे एक मैच में बगैर कोई रन बनाए जीरो पर आउट हो गए थे.जबकि वे उस वक़्त भारतीय क्रिकेट के सबसे बुलंद सितारे बन चुके थे.तब उनसे इस बारे में जो सवाल पूछा गया था,उसका ऐसा जवाब देना ही किसी खिलाड़ी की महानता का सबसे बड़ा सबूत होता है. तब सचिन ने कहा था- "मेरे लिए क्रिकेट खेलने जाना मन्दिर जाने के बराबर है.लेकिन टेस्ट मैच खेलते हुए मेरा हर रोज बेस्ट दिन नही हो सकता है क्योंकि कभी 100 तो कभी जीरो पर भी मैं आउट हो सकता हूं.लेकिन हर जीरो मुझे 100 पार कर लेने का एक नया सबक सिखाकर जाता है."
विराट कोहली भी इस हार के लिए अपनी कमियों-खामियों को इसी ईमानदारी से अगर स्वीकारते, तो लोग अपना सारा गम भूलकर आज उनकी भी वाहवाही कर रहे होते.
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