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दुनिया से असमय अलविदा होकर 'स्तब्ध' कर गए उस्ताद जाकिर हुसैन

कल रात हम लोग सोने की तैयारी कर ही रहे थे कि दिव्‍या ने यह कह कर चौंकाया कि उस्‍ताद जाकिर हुसैन नहीं रहे. सब लोग सन्‍न रह गए क्‍यों कि हम सभी उनके प्रशंसकों में हैं. उस्‍ताद के बीमार होने और हृदय की बीमारी के इलाज के लिए अस्‍पताल में भर्ती होने की सूचना तो कुछ दिन पहले मिली थी लेकिन वह चले जाएंगे,ऐसा विश्‍वास नहीं था. सुबह अखबार पढ़ा तो खबर थी कि उनकी हालत क्रिटिकल है और आइसीयू में हैं. सूचना विभाग की जल्‍दबाजी से उनके न रहने की खबर प्रसारित हो गई थी. कुछ बड़े लोगों ने शोक समवेदना भी व्‍यक्त कर दी थी. खबर पढ़कर संतोष हुआ कि उस्‍ताद के ठीक होने की उम्‍मीद है. लेकिन जब बेटे राहुल टहल कर आए और मैने बताया कि ऐसी खबर छपी है तो उसने कहा कि नहीं आज सुबह वह नहीं रहे. मन फिर बुझ गया. 

उस्‍ताद जाकिर हुसैन भारतीय संगीत के प्राण थे. वह इन दिनों कैलीफोर्निया में रह रहे थे और वहीं लोगों को तबला सिखाते थे और अपने कार्यक्रम भी करते थे लेकिन वह यहां के यभारतीय संगीत प्रेमी के हृदय में थे.मेरी उनसे कभी मुलाकात नहीं हुई लेकिन पहले भी और जब से मैने तबला बजाना सीखना शुरू किया तबसे उनसे अधिक परिचित हुआ. उनके न जाने कितने इंटरव्‍यू देखे और न जाने कितने कंसर्ट के वीडियो देखे. उनके इंटरव्‍यू से पता चलता है कि उन्‍होंने यह मुकाम पाने में कितनी तपस्‍या की थी. वह अंत तक अपने को संगीत का पुजारी और छात्र ही मानते थे. जब कभी उन्‍हें कोई उस्‍ताद कहता तो वह कहते,नहीं मुझे जाकिर हुसैन ही कहें.

जन्‍म के बाद उनके पिता उस्‍ताद अल्‍ला रखा खां ने जिन्‍हें उस्‍ताद के शागिर्द अब्‍बा जी कहते हैं,उनके कान में तबले के जो बोल सुनाये,उसकी गूंज उनके दिल दीमाग में आखिरी समय तक गूंजती रहीं. वह तबला बजाते नहीं थे, तबले से बात करते थे. उनका तबला उनसे बात करता और जैसा वह चाहते,वैसा बोल निकलता. वह तबले से जो संगीत निकाल देते थे,वैसा दुर्लभ था. अन्‍य बहुत से तबला वादक और उसके उस्‍ताद हैं लेकिन जाकिर हुसैन एक ही हैं. 

वह हृदय के बहुत निर्मल थे और कोई भी बात छिपाते नहीं थे. वह हर बात निष्‍छलता और बाल सुलभता से कह देते. तबला और संगीत में उनकी जान बसती थी. उनके दोनों अन्‍य भाई भी चोटी के संगीतज्ञ हैं और एक तबला भी बजाते हैं लेकिन जितना उन्‍होंने लोगों के हृदय पर राज किया,वैसा स्‍थान अन्‍य भाइयों को नहीं मिला. 

वह एक अच्‍छे गुरु थे. उनके न रहने पर बीबीसी ने एक कार्यक्रम प्रसारित किया जिसमें उनका इंटरव्‍यू है. उसमें दिखाया गया है कि वह कैसे छात्रों को तबला सिखा रहे हैं और उसका आनंद उठा रहे हैं.कोरोना काल में जब सब तरह के आयोजन बंद हो गए,पूरी द‍ुनिया में हाहाकार मचा था और मृत्‍यु का अदृश्‍य छाया सर्वत्र पसरा था तब भी उन्‍होंने ऑनलाइन लोगों से संपर्क बनाये रखा और तबले के रहस्‍य बताते रहे. न जाने कितने वीडियो उस समय के हैं जिनमें वह तबले के गुर बता रहे हैं. 
मैने जिनसे तबला सीखा श्री शिवशंकर बनर्जी, वह तो उस्‍ताद के अनन्‍य भक्‍त हैं और अपने छात्रों को उस्‍ताद के बोल और उनके वादन की बारीकियां ही बताते हैं.

उनका कोई वीडियो ऐसा नहीं होगा जिनमें उस्‍ताद का कोई बोल या उनके वादन का कोई रहस्‍य न बताया गया हो. पिछले दिनों जब मेरी पुस्‍तक ‘ तबला कैसे सीखें’ प्रकाशित हुई तो मैं शिवशंकर बनर्जी जी के आवास पर गया और बातचीत में यह प्रश्‍न उठा कि जितने भी बड़े तबला वादक हैं,उन्‍हेांने अपने अनुभव पर किताबें नहीं लिखीं. इनमें जाकिर हुसैन भी हैं.

इससे एक नुकसान संगीत का यह होता है,उनका ज्ञान उनके साथ ही चला जाता है. जहां तक मेरी जानकारी है,उस्‍ताद पर दूसरों ने तो किताबें लिखी,कॉफी टेबल बुक भी है, लेकिन उन्‍होंने खुद कोई पुस्‍तक नहीं लिखी. जो कुछ है,वह वीडियो और इंटरव्‍यू के रूप में ही है. यदि कोई उन्‍हें संकलित कर सके तो यह उस्‍ताद जाकिर हुसैन के प्रति श्रद्धांजलि होगी. उस्‍ताद कहीं गए नहीं हैं. वह तबलों के बोल के रूप में अमर हैं. वह देश,धर्म, जाति से अलग महान पुरूष हैं. ऐसे लोग सदियों में अवतरित होते हैं.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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