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'गोद में बच्चा, बेबसी और इंसाफ के लिए दिल्ली की गलियों में छानती खाक...' तलाक-ए-हसन पीड़िता बेनजीर हिना का कुछ यूं छलका दर्द

मुस्लिम समाज में तलाक की एक प्रथा तलाक-ए-हसन सही है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट अब इसकी वैधता पर सुनवाई करेगी. तलाक-ए-हसन की वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कुल 8 याचिकाएं दायर की गई थीं. इनमें से एक याचिका गाजियाबाद की रहने वाली बेनजीर हिना की है. हिना के पति ने तलाक-ए-हसन के तहत उन्हें तलाक दे दिया था. आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में उनकी याचिका पर क्या कुछ हुआ और वो खुद तलाक-ए-हसन को लेकर क्या कहती हैं. यहां बेनजीर हिना अपनी आपबीती साझा कर रही हैं...

अब से एक साल पहले 3 मई 2022 को मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर दरवाजा खटखटाया था कि जो तलाक-ए-हसन है और मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत जितनी भी एकतरफा तरीके से महिलाओं को तलाक दिया जा रहा है, उस पर बैन लगाया जाए क्योंकि मुझे तलाक-ए-हसन मिला है और इसकी जो तकलीफ और इसका गलत इस्तेमाल मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत जो मुस्लिम मर्द हैं, शौहर हैं, पूरा फायदा उठा रहे हैं अपनी पत्नियों के खिलाफ.

कुरान में तलाक का जिक्र है लेकिन तलाक-ए-हसन, तलाक ए बाइन या बिद्दत का उल्लेख कहीं नहीं है. सूरह निसा में तलाक का जिक्र किया गया है और उसमें यह बताया गया है कि अगर तलाक होगी तो कैसे होगी, जिसको मौलवियों द्वारा तलाक-ए-हसन का नाम दिया गया है.

तलाक-ए-हसन में पति के द्वारा तीन महीने के समयावधि में पत्नी को तलाक दे दिया जाता है. पहले महीने में पहला तलाक पति देगा. उसके बाद घर से पत्नी को नहीं निकालेगा और पत्नि जो है वो अगले दो महीने तक के एक्सटेंशन पर रहेगी. जैसे की पहला तलाक मान लीजिए की पति ने मई महीने में दे दिया तो पत्नी जो है अगले दो महीनों तक पति के साथ ही रहेगी. ताकि दोनों के बीच किसी सुलह पर पहुंच पाने की गुंजाइश हो. अगर मई में सुलह नहीं हो पाया था फिर से पति जून में दूसरा तलाक देगा. इसके बाद भी दूसरे महीने में सुलह नहीं हो पाई तो वह अंतिम और तीसरे महीने में तीसरा तलाक देगा और उसमें जो घर के बड़े गार्जियन होंगे चाहे वो पति के घर वाले हों या फिर पत्नी के घर वाले या जैसे कि निकाह में वकील बनता है काजी, और इस तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया में भी कोई वकील बनेगा जो यह अप्रूव करेगा इस बात की पुष्टि करके कि इतने दिनों में कोई सुलह हुआ था या नहीं, तीन महीने तक पत्नी पति के साथ रही थी और चूंकि दोनों के बीच कोई सुलह नहीं हो पाई तो अब आपसी सहमति से दोनों एक-दूसरे से अलग हो रहे हैं. ये निकाह खत्म हो रहा है.

इसके एवज में पत्नी को मेहर की रकम जोकि निकाह के समय में तय होती है उसे दे दिया जाता है. पति उस रकम की अदायगी करता है और लड़की जो अपने घर से शादी के समय में सामान लेकर आती है वो वापस उसे दिया जाता है और पति की तरफ से जो सामान निकाह में पत्नी को दिया जाता है जैसे कि कपड़े, जेवरात, पैसा और सारी चीजें जो दी जाती हैं और ये बातें कुरान में साफ-साफ लिखी हुई हैं कि शौहर ने जो चीजें माल या पैसा अपनी बीवी को दे दिया हो वो उसका है और उसकी अदायगी के साथ पत्नी बाइज्जत घर से बाहर निकलती है. ये तलाक का जिक्र हुआ है कुरान में और सूरह निसा में इसका जिक्र है, ट्रांसलेशन है लेकिन 1400 साल बाद भी आज की पढ़ी-लिखी लड़कियां और अगर मैं अपनी बात करूं चूंकि मैं एक पढ़ी-लिखी और सशक्त महिला हूं. मैं खुद से अपने पैरों पर खड़ी हुई हूं और पेशे से पत्रकार हूं. मैंने जर्नलिज्म किया है. आज भी और मैं चूंकि दुनिया की सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में रहती हूं और जहां पर मुझे अपना प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार है फिर भी मुझे इस शादी में रहना है या नहीं इसका मुझे अधिकार नहीं है.

मैं आप सबको एबीपी लाइव के मंच से सभी को बताना चाहती हूं कि मेरा तलाक कैसे हुआ है. 7 दिसंबर 2021 को मैं अपने शौहर के घर में थी और उस वक्त हमारे बेटे की उम्र तकरीबन तीन महीने की थी. वह एक नवजात शिशु था. 7 दिसंबर 2021 को हम लोगों के बीच काफी लड़ाई-झगड़ा हुआ और उसमें उन्होंने मुझे कहा कि तुम निकल जाओ मेरे घर से. उसके बाद मैं वहां से निकलकर अपने पिता के घर आ गई. वहां मैं अपने बीमारियों से जूझी और 10 दिन के बाद मेरा पैंक्रिएटिक सर्जरी हुआ. मेरा बच्चा मेरे पिता के घर में ही था. मेरे पिता के घर से मेरे शौहर को फोन गया कि आपकी पत्नी बीमार है और बच्चा भी बीमार चल रहा है लेकिन वो नहीं आए.

उसके बाद तकरीबन चार महीने के बाद मुझे तलाक-ए-हसन का एक लेटर प्राप्त होता है. दिल्ली में जहां पर मैं एक किराए के घर में रहती थी. तलाक-ए-हसन का यह पहला लेटर था जिसमें एक आदमी जिसका नाम गुलाम मोहम्मद अख्तर होता है और उसके बारे में यह लिखा होता है कि वह दिल्ली में एक एडवोकेट है और जंगपुरा में उसका कार्यालय है. जबकि मेरे पति भी दिल्ली में एक एडवोकेट हैं, उनके पास एक संवैधानिक लाइसेंस है और वो दूसरे पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए खड़े होते हैं और जब बात अपनी बीवी की आई तो वो अन्याय करने पर उतर आए.

इस तरह के लेटर में वह (गुलाम मोहम्मद) कहता है कि मेरे क्लाइंट युसूफ नकी के बदले मैं तुम्हें तलाक दे रहा हूं और तकरीबन यह 12 से 13 पन्नों का नोटिस था और इसमें मेरे पति युसूफ नकी के हस्ताक्षर नहीं थे. मुझे यह समझ हीं नहीं आ रहा था की ये कौन गुलाम मोहम्मद अख्तर है, जो कह रहा है कि मैं तुम्हें अपने क्लाइंट के बदले तलाक दे रहा हूं. ये कैसा तलाक है. चूंकि मैं खुद मुसलमान हूं और शरीयत में आती हूं तो मुझे मालूम था कि पति यानी शौहर बीवी को तलाक दे सकता है. लेकिन मेरे साथ तो ऐसी चीज हो गई कि कोई तीसरा व्यक्ति बीच में आ गया और मुझे तलाक दे दी. ये चीज मुझे हजम नहीं हो रही थी. पेरेंट्स को बताया तो उन्होंने कहा कि तलाक तो बैन हो चुका है और ये कौन है तुम सो जाओ...सुबह एफआईआर दर्ज कराएंगे.

क्योंकि तब मैं दफ्तर से रात को ही घर लौटी थी और मुझे वो लेटर मिला था. उस वक्त रमजान भी चल रहा था. मुझे रात भर नींद नहीं आई, मेरा बच्चा (अली)  रो रहा था और मेरी तो एक दम से सुध-बुध गुम हो गई थी. कुछ समझ ही नहीं आ रहा था. इसके बाद मैंने गूगल पर सर्च करना शुरू कर दिया कि ये तलाक-ए-हसन क्या बला है.

मैं अपने दोस्तों के जरिए मुस्लिम एडवोकेट्स को फोन कर रही हूं कि यह जानने के लिए ये तलाक-ए-हसन क्या चीज है. फिर मुझे इसके बारे में थोड़ी-थोड़ी जानकारी मिलने लगी. लेकिन किसी ने भी ये नहीं कहा कि इसे कोई तीसरा शख्स भी दे सकता है. फिर मैंने बहुत सारे मुस्लिम एडवोकेट्स से केस लड़ने की बात कही तो किसी ने मेरी एक नहीं सुनी. सभी ने कहा कि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत आता है और हम इसके खिलाफ खड़े नहीं हो सकते हैं. तो आप समझ सकते हैं कि मैं रमजान के महीने दिल्ली की सड़कों पर खाक छान रही थी और मेरी गोद में मेरा छोटा सा बच्चा भी था. तब मैंने अपने स्तर से बहुत रिसर्च किया और फिर मैंने 2017 वाले सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पढ़ना शुरू किया जिसमें मुझे पता चला कि उसमें केवल तलाक-ए-बिद्दत को बैन किया गया था.

तीन तलाक तो बैन हुआ ही नहीं है और भारत में तलाक के तो बहुत ही प्रकार के हैं जो प्रैक्टिस में हैं. तब मुझे तलाक के प्रकारों के बारे में जानकारी हुई. जिसमें तीन तलाक, तलाक-ए-बिद्दत, तलाक-ए-हसन आता है, तलाक-ए-एहसन, तलाक-ए-बाइन, तलाक-ए-कियाना, तलाक-ए-सून्नत आता है तो ये छह प्रकार के तीन तलाक के बारे में मुझे जानकारी हासिल हुई. यानी कि 2017 में जिस तलाक को बैन किया गया वो तो ठीक है लेकिन जो कॉरेस्पॉन्डेंस से तलाक देने की प्रक्रिया है, तीन महीने वाला तलाक है अभी भी वो हिंदुस्तान में प्रचलन में है. मुझे तलाक-ए-हसन का दो नोटिस मिल चुका था और तीसरा मुझे मेरे घर पर नहीं मिला था.

मेरे पति ने मुझे जीमेल किया मेरे ई-मेल आईडी पर, उसको भी वो मान रहे हैं. अभी भी हिंदुस्तान में तीन तलाक की प्रथा ई-मेल और डाक के द्वारा कायम है. इसके बाद मैं 3 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर जा पहुंची जहां पर पीआईएल याचिका के जरिए मैंने तलाक-ए-हसन पर बैन लगाने की अपील की. मैंने ये भी कहा कि तलाक के जितने भी प्रारूप हैं, उन सब पर बैन लगाइए, सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत को बैन करने से काम नहीं चलेगा.

मतलब मैं आपको बताऊं कि हिंदुस्तान के अंदर ऐसी धांधली चल रही है. मेरा केस तो ये था कि मैंने लड़ाई झगड़े के दौरान ये हुआ था. उसके बाद से मैं अपने मायके में थी. ऐसी बहुत सारी लड़कियां मेरे संपर्क में आईं जब उन्हें यह पता चला कि कोई बेनजीर दिल्ली में रहती है और वो इन तलाक के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय गई है. जब मेरे संपर्क में लड़कियां आईं तो यह पता चला कि पति यह कह कर जा रहा है कि मैं दिल्ली से बाहर जा रहा हूं किसी काम से और फिर वो बाहर से ही इस तरह का लेटर भेज दे रहा है. किसी को दुबई से, किसी का पति कनाडा से भेज दे रहा है. किसी को जम्मू-कश्मीर से पत्र मिल रहा है कि अब तुम्हारे साथ सारे संबंध खत्म हो गए. तलाक-ए-बिद्दत में कम से कम पति, पत्नी के सामने तो होता था कुछ कहने और सुनने के लिए लेकिन ये तो इतना गंदा है कि इसमें आप अपने शौहर को तलाशते फिरो.

सुप्रीम कोर्ट ने मेरी याचिका को स्वीकार कर ली, लेकिन अगस्त 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपने अंतर्गत लिया कि चीजें गलत हो रही हैं और इसकी सुनवाई अब होगी. सुप्रीम कोर्ट में डेट पर डेट आते गए. फिर हम लोअर कोर्ट गए और वहां अपने और बच्चे के लिए मेंटेनेंस का केस डाला. दहेज से प्रताड़ित थे, तो निचली अदालत में 498A के तहत केस किया. लोअर कोर्ट में मेरे पति ने मेरे ऊपर अनर्गल आरोप लगाए. उन्होंने कोर्ट में ये पागल हो गई है, इतना तक कहा. लोअर कोर्ट से मामला खारिज हो गया. फिर मैंने न्याय हासिल करने की पूरी तरह से ठान ली.

करीब एक साल के बाद सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस के पास ये मैटर लगा था और 4 मई को चीफ जस्टिस ने कहा कि अब वो इसके संवैधानिक वैधता पर बात करने के लिए तैयार हैं. वो सुनने के लिए तैयार है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत भारत में कितने तरह के तलाक प्रचलित हैं. उन्होंने सुनवाई के लिए अगली तारीख 12 मई को दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इस चीज को समझने के लिए एक टेबल मंगवाई है कि तलाक की कौन-कौन सी पिटीशन आई हैं.

इस तरह से हमने अपनी लड़ाई में पहली सीढ़ी पार की है. सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि गलत हुआ है और वैधता के लिए सुनवाई को तैयार हो गई है. मुझे इससे एक उम्मीद जगी है. अभी तक हर जगह मेरे पति और उनके वकील की तरफ से मेरा मजाक बनाया जा रहा था, अब मुझे न्याय की आस जागी है. मुझे पूरा भरोसा है कि जिस तरह से तलाक-ए-बिद्दत असंवैधानिक करार दिया गया था, उसी तरह से मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत जितने भी गलत तरीके से महिलाओं को तलाक दिए जा रहे हैं, वे सभी असंवैधानिक करार दिए जाएंगे और ये जल्दी होगा.

मेरी जैसी कई और भी लड़कियां हैं, जो इस तरह से पीड़ित हैं, लेकिन सारी की सारी सुप्रीम कोर्ट तक नहीं पहुंच सकती हैं. जिस 8 पिटीशन की आपने बात की है, उनमें से एक तलाक ए अहसन वाली हैं, जो पुणे की रहने वाली मैकेनिकल इंजीनियर हैं. जिनको तलाक-ए-बाइन, तलाक-ए-कियाना मिला है, वो महिला कर्नाटक की डॉक्टर हैं. इनमें से कोई पेशे से टीचर, कोई शेफ है. कहने का मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन देने वाली ये सभी लड़कियां बहुत पढ़ी-लिखी हैं.

जिन भी मुस्लिम महिलाओं को ग़लत तरीके से तलाक दिया गया है, उनकी आवाज मैं हूं. ऐसी महिलाओं को कहा जाता है कि यही इस्लाम है, यही कुरान है, यही दीन है. उनको कहा जाता है कि अगर आपने अपने शौहर के खिलाफ आवाज उठा ली तो उनको कहा जाता है कि आप इस्लाम से खारिज हो गई हैं, आप अब मुसलमान नहीं रहीं. महिलाओं से उनके धार्मिक अधिकार छीनने के लिए कई ठेकेदार बैठे रहते हैं. उनको चारदीवारी में कैद कर लिया जाता है. मेरे पति ने मुझे फोन, व्हाट्सअप, हर सोशल मीडिया से ब्लॉक कर दिया था. फिर मैं उनके घर गई, तो पता चला कि ताला लगाकर वो गायब हैं, ताकि तीन महीने की जो इद्दत की अवधि है, उसमें शौहर बीवी के हाथ नहीं लगे. इस अवधि के खत्म होने के बाद मेरे पति ने लोअर कोर्ट में मेंटेनेंस वाले मामले में ये एफिडेविट दिया कि उनकी दूसरी शादी हो गई है और मैं बहुत गरीब हूं और बच्चे की मां मुझे डबल कमाती है. मैं बच्चे को सिवाय दो हजार रुपये के अलावा कुछ नहीं दे पाऊंगा. इस तरह की मनमानी चल रही है.

मैं एक बात कहना चाहती हूं कि हमने चैलेंज न तो कुरान को दिया है, न ही दीन को दिया है. हमने चैलेंज मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तहत जो ये गलत तरीके से तलाक की व्यवस्था चल रही है, उसको सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. महिलाओं का शोषण हो रहा है, इसको चुनौती दी है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ये कर रहा है और करवा भी रहा है. मेरे मामले में वो सुप्रीम कोर्ट में एक साल से मेरे शौहर की रहनुमाई कर रहा है. मेरे वकील के साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का एक जत्था खड़ा होता है, जो दिए गए तलाक का समर्थन कर रहा है. जब तक इस तरह के सारे तलाक बैन नहीं हो जाते हैं, तब तक मैं इस तरह से पीड़ित हर महिला की आवाज बनकर सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई जारी रखूंगी.

(यह आर्टिकल सुप्रीम कोर्ट में तलाक-ए-हसन के खिलाफ याचिका दायर करने वाली बेनजीर हिना से बातचीत पर आधारित है. ये उनका निजी विचार है.)

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