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आर्मी चीफ को आखिर क्यों कहना पड़ा कि 'टारगेट किलिंग' भी बन गई है नई चुनौती?

Army Day: अपने देश की सीमाओं की रक्षा करना और सीमा पार से दुश्मन मुल्कों की गतिविधियों से निपटना तो हमारी सेना के लिए शाश्वत चुनौती रही है.लेकिन सेना प्रमुख मनोज पांडे ने एक नई चुनौती का सामना करने और उससे निपटने की तरफ ध्यान दिलाया है,जो बेहद गंभीर मसला है.

उनके मुताबिक कुछ नए आतंकी संगठन अपनी प्रेजेंस यानी मौजूदगी दिखाने के लिए टारगेट किलिंग कर रहे हैं. ज़ाहिर है कि ऐसी घटनाएं कश्मीर घाटी में ही हो रही हैं, लिहाज़ा सेना व अन्य सुरक्षा बलों के लिए इससे निपटना बड़ी चुनौती इसलिये भी है कि केंद्र सरकार अगले कुछ महीने में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी में है.

हमारा पड़ोसी पाकिस्तान तो कभी नहीं चाहता. साथ ही घाटी में रहने वाले और आतंकियों के समर्थक कुछ नेता भी नहीं चाहते कि राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली के लिए शान्तिपूर्ण तरीक़े से चुनाव सम्पन्न हो जाएं. शायद यही वजह है कि पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई ने टारगेट किलिंग के लिए कुछ नए आतंकी संगठनों का ईजाद किया है. खुफिया एजेंसियों के सूत्रों की मानें, तो इसमें ऐसे नौजवानों को भर्ती किया गया है जिनका आतंकी वारदातों का कोई पुराना इतिहास नहीं है. यही कारण है कि ऐसी वारदातों में शामिल रहे कुछ आतंकी अब तक सुरक्षा बलों के हत्थे नहीं चढ़ पाये हैं.

दरअसल, पाकिस्तान की करतूतें तो अपनी जगह हैं, जिससे वो बाज भी नहीं आने वाला है लेकिन इन चुनावों का असली डर उन दो सियासी घरानों को सता रहा है, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर को सिर्फ अपनी मिल्कियत समझते हुए ही अब तक वहां राज किया है. इन दोनों पार्टियों के मुखिया को लगता है कि अनुछेद 370 निरस्त होने और विधानसभा सीटों का परिसीमन होने के अलावा राज्य से बाहर रहने वाले नागरिकों को वोट देने का अधिकार मिल जाने के बाद राज्य के सियासी हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं.                 

इसलिये राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि इन बदले हुए हालात का फायदा बीजेपी को मिलने के आसार दिखाई दे रहे हैं और बहुत हद तक संभव है कि गुलाम नबी आजाद की पार्टी के साथ मिलकर बीजेपी राज्य की सत्ता पर भी काबिज़ हो जाये.
           
जम्मू क्षेत्र में तो बीजेपी बेहद मजबूत स्थिति में है लेकिन घाटी में उसे जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई आजाद की पार्टी को मिलने वाली सीटें कर देंगी. इस सियासी गणित की हकीकत से फारुख व उमर अब्दुल्ला भी वाकिफ़ हैं और महबूबा मुफ़्ती भी. यही वजह है कि इन दोनों पार्टियों ने घाटी में सक्रिय तमाम क्षेत्रीय दलों को भी आज़ाद के खिलाफ एकजुट कर दिया है.

लेकिन रविवार को सेना दिवस के मौके पर सेना प्रमुख ने खासतौर पर टारगेट किलिंग की चुनौती का जो ज़िक्र किया है,उसके बेहद गहरे व गंभीर मायने हैं. हाल के दिनों में खुफिया एजेंसियों ने कश्मीर घाटी के सुरक्षा-हालात को लेकर गृह मंत्रालय को जो इनपुट्स दिए हैं, वे थोड़े चौंकाने वाले हैं. इसमें ये आशंका जताई गई है कि प्रदेश में विधानसभा चुनावों की तारीख़ का ऐलान होते ही टारगेट किलिंग की वारदातों में बढ़ोतरी हो सकती है. ये भी संभावना है कि नए आतंकी संगठन कुछ राजनीतिक दलों के लोगों को भी अपना निशाना बना सकते हैं, ताकि चुनाव प्रक्रिया को बाधित किया जाए.

हालांकि सेना प्रमुख पांडे ने ये भरोसा जताया है कि हम अन्य सुरक्षाबलों के साथ मिलकर इस चुनौती से निपट रहे हैं.लेकिन देखना ये होगा कि हमारे सुरक्षा बल आतंकियों के नापाक मंसूबों को कितनी जल्द नेस्तनाबूद करते हैं?

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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