Raj Ki Baat: अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद जम्मू और कश्मीर की आवाम ने दशकों के दर्द के बाद बारूद घुली हवा के बाद निजात पाई थी. दशकों के बाद चिनाब,  सिंधु झेलम और रावी को अपनों के लहू से लाल हो जाने के दंश से आजादी मिली थी लेकिन उस घुटन का दौर बीते पखवाड़े से फिर लौट आय़ा है. जिस तरह से कश्मीर में हिंदुओं को टारगेट कर कर के मारा जा रहा है उससे हालात भी सवालों के घेरे में हैं. सरकार भी सवालों के घेरे में है और अचानक से फैली अशांति को लेकर सवालों का सिलसिला उठ खड़ा हुआ है.


हालात ये हैं कि अक्टूबर महीने में लगभग 11 हिंदुओं की हत्या आतंकी कर चुके हैं लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि जब घुसपैठ को पूरी तरह से रोक दिया गया है. आतंकियों के पनाहगाह औऱ पनाह देने वालों की कमर तोड़ दी गई है तो फिर ये आतंकी आ कहां से गए और अब जब आ गए हैं तो इनका इलाज आखिर क्या है? आज इन्हीं सवालों के जवाब हम आपको राज की बात में बताने जा रहे हैं.


राज की बात ये है कि पाकिस्तान से आने वाले आतंकियों का सिलसिला सेना ने रोका तो आतंक को फैलाने के लिए आस्तीन के सपोलों ने अपने पत्थरबाजों का प्रमोशन कर दिया. जी हां, सही सुन रहे हैं आप. राज की बात ये है कि कल तक जो पत्थरबाज थे वो आज बंदूक थाम कर हिंदुओं की टारगेटेड किलिंग के धंधे में कूद गए हैं. हालांकि इन्हें पकड़कर ठोका भी जा रहा है लेकिन सबसे बड़ी चिंता का सबब ये बन गया है कि इसके पीछे दिमाग किसका काम कर रहा है, आर्थिक मदद किससे मिल रही है और पत्थरबाजों को बंदूकधारी बनाने का बीड़ा उठा किसने रखा है. राज की बात ये है कि इन सवालों का जवाब तलाशने के लिए अभूतपूर्व इनवेस्टिगेशन का दौर शुरु किया जा चुका है.


राज की बात ये है कि आंतक की इस नई हरकत और पौध को जड़ से खत्म करने के लिए इन हाइब्रिड आतंकियों की डिजिटल कुंडली की पड़ताल शुरु की जा चुकी है. पहली पड़ताल तो ये है कि कश्मीर के पत्थरबाजों के बीते 5 साल के कॉल डिटेल्स को खंगाला जा रहा है ताकि ये पता किया जा सके कि किस किस के संपर्क में वो अब तक रहे हैं और इस समय सबसे ज्यादा रहनुमाई उन्हें किसकी मिल रही है.


जांच का दूसरा चरण इंटरनेट सर्फिग पर आधारित है जिसके जरिए ये जानने की कोशिश की जा रही है कि कश्मीर ने इन पत्थरबाजों की ये बंदूक वाली हाईब्रिड पौध इंटरनेट के जरिए क्या क्या तलाशती रही है या फिर किससे संबंध साधती रही है.


ये जांच पड़ताल इसलिए जरूरी है क्योंकि आतंकियों को पकड़कर मार देना सेना के लिए कोई बड़ा काम नहीं है. बड़ा काम ये है कि ब्रेनवॉश कर रहे लोगों को पकड़ा जाए, हाइब्रिड आतंकियों के इस नेटवर्क को पकड़ा जाए. इस काम में कामयाबी मिलने का दौर भी शुरु हो गया है जिसका उदाहरण है दिल्ली और यूपी से पकड़े गए आतंकियों की फेहरिस्त जो स्लीपर सेल के तौर पर बड़े निशाने को साधने के साइलेंट ऑपरेशन में लंबे समय से लगी हुई थी.


राज की बात यहां ये भी है कि भले ही ड्रैगन के दम पर फुदकते पाकिस्तान के घुसपैठ की हरकतों को भारत ने रोक डाला है लेकिन उसके फेंकी गई फंडिंग से अपने देश में न जाने कितने सपोले आस्तीन का सांप बनकर फुफकार रहे हैं और बहुत ऐसे हैं जो डसने की फिराक में छिपे बैठे हैं. बस इसी नेटवर्क को तलाशने और ध्वस्त कर देने का सबसे बड़ा ऑपरेशन शुरु हो चुका है.



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