संक्रांति के मौके पर सूर्य उत्तरायण हो चुका है, लेकिन नागरिकता कानून को लेकर संक्रामक हुई देश की राजनीति आज भी वहीं हैं, जहां दिसंबर के महीने में खड़ी थी... यानि 12 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून पास होने के बाद... देश में विरोध प्रदर्शन का जो सिलसिला शुरु हुआ था वो आज भी जारी है, 10 जनवरी को देश में नागरिकता संशोधन कानून लागू हुए छह दिन गुजर चुके हैं लेकिन देश के तमाम जरूरी मुद्दों को दरकिनार कर विपक्ष की पूरी रणनीति... नागरिकता कानून को लेकर सरकार को घेरने पर टिकी हुई है... क्योंकि इस कानून को लेकर जनता के एक वर्ग खासतौर पर मुस्लिम समाज में भ्रम की धुंध अब भी घने कोहरे की तरह बरकरार है... लेकिन विरोध करने वाले लोगों को नागरिकता कानून की शंकाओं को दूर करने के लिए.. अब मोदी सरकार और भाजपा अपनी सबसे मजबूत फ्रंट लाइन को मैदान में उतारने जा रही है... जिसमें सरकार के बड़े मंत्री उत्तर प्रदेश में सीएए के समर्थन में जगजागरण अभियान चलाने जा रहे हैं।


केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी 18 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में रैली करेंगी, 19 जनवरी को गोरखपुर में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रैली करेंगे... मोदी सरकार के सबसे काबिल मंत्रियों में से एक नितिन गडकरी 20 जनवरी को कानपुर में सभा करेंगे... जबकि गृहमंत्री अमित शाह 21 जनवरी को खुद राजधानी लखनऊ में नागरिकता कानून के समर्थन में जनसभा करने वाले हैं... 22 जनवरी को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह मेरठ में... और 23 जनवरी को भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा आगरा में रैली करने वाले हैं।


एक तरफ जहां मोदी सरकार नागरिकता कानून को लेकर जनता के बीच आम राय बनाने के लिए सड़कों पर उतरने जा रही है... तो दूसरी तरफ नागरिकता कानून के खिलाफ विपक्ष की रणनीति और आक्रामक हो चुकी है। जिन-जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार है उन्होंने पहले ही इस कानून को अपने राज्य में लागू ना करने की बात कह दी है। इसमें भाजपा-जेडीयू गठबंधन की सरकार वाला बिहार भी शामिल हो चुका है। दूसरी तरफ सड़कों पर हो रहे विरोध प्रदर्शनों को भी मोदी सरकार के विरोधियों का समर्थन जारी है और अब नागरिकता कानून को रद्द करने की मांग को लेकर केरल की सरकार सुप्रीम कोर्ट जा पहुंची है।


आज यही सवाल है कि क्या नागरिकता पर भ्रम का 'कोहरा' हटाने के लिए मैदान में उतरी है 'मोदी की सेना' ?... क्या विपक्ष की भीड़ के रेले का जवाब रैलियों से दे पाएगी मोदी सरकार और भाजपा? और सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक नागरिकता कानून के खिलाफ विपक्ष की रणनीति से वाकई तस्वीर बदलेगी ?


देर आए दुरुस्त आए ये बात नागरिकता कानून को लेकर मोदी सरकार पर भी लागू होती है। नागरिकता कानून को लेकर विरोध कर रहे लोगों का संदेह दूर करने के लिए अगर सरकार खुद सड़क पर उतरकर संवाद कायम करने की कोशिश कर रही है, तो इस कदम का खुले दिल से स्वागत होना चाहिये। नागरिकता कानून का विरोध करने वाले विपक्षी राज्यों का कानून लागू नहीं करने को लेकर अड़ियल रुख, संघीय ढांचे के लिए नुकसानदायक कदम हो सकता है। इस मुद्दे पर जनता को भी समझने की जरूरत है कि बजाय राजनीतिक दलों का मोहरा बनने के, जनता कानून से जुड़ी बारीकियों को समझे और फिर भी कोई विरोध है तो उसे सरकार के सामने सलीके से दर्ज कराएं।