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अपनी विरासत के फायदे और नुकसान दोनों उठा रहे हैं तेजस्वी, जनता से करना होगा जुड़ाव

बिहार में लोकसभा चुनाव में जदयू और भाजपा को काफी अच्छी संख्या में सीट मिले है. 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसका कितना फायदा होने वाला है ये देखना होगा. बिहार में जो लोकसभा चुनाव हुआ है, ठीक उसी के आधार पर आने वाले विधानसभा में चुनाव वोट पड़ने के अंदेशा है. बिहार में एनडीए को 30 सीटें मिली है. बिहार में नीतीश सरकार ने रोजगार पर काफी ध्यान दिया है आने वाले समय में भी रोजगार को लेकर काम होने का अंदाजा है. लगातार सरकार की ओर से रिक्त पदों को भरने के लिए नोटिफिकेशन जारी किया जा रहा है.

बिहार में तेजस्वी यादव की लोकप्रियता काफी बढ़ी है. जिस प्रकार का अभी तक मैंडेट देखने को मिला है उसके अनुसार तेजस्वी यादव ने नेता प्रतिपक्ष के रूप में बेहतर काम किया है लेकिन सरकार में आकर वो अच्छा करेंगे, ऐसा लोगों को अभी नहीं लग रहा है. वर्तमान की सरकार विकास की ओर लगातार काम कर रही है. लोकसभा का चुनाव में जनता ने जिस प्रकार का मैंडेट दिया है उसी प्रकार से विधानसभा में मैंडेट आने की उम्मीद लगाई जा रही है.  लालू यादव की राजनीति माय (मुस्लिम प्लस यादव) की है जबकि माना जाता है कि तेजस्वी यादव की राजनीति बाप (बहुजन, अगड़ा, अल्पसंख्यक, पिछड़ा यानी सभी) की है. तेजस्वी यादव बाप की राजनीति की बात कहते हैं लेकिन लोग उसको मानने को तैयार नहीं है.

लोकसभा चुनाव में एनडीए  

राजद का अभी भी वोट समीकरण एमवाय का ही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जोड़ी के कारण बिहार में राजद के एमवाय ग्रुप के वोटर भी अब एनडीए के पक्ष में जा रहे हैं. माना जा रहा है कि काफी संख्या में ऐसे लोग एनडीए की ओर गए हैं लेकिन इसका बड़ा इंपैक्ट आगामी विधानसभा चुनाव में पड़ेगा. लालू के नाम पर अगड़े जाति के लोग वोट देने से बचते थे अब ये देखा जा रहा है कि तेजस्वी के नाम पर अगड़े भी उनके साथ आ रहे हैं. हालांकि, जंगल राज वाला खौफ अभी तक लोगों के जहन के अंदर बैठा हुआ है जिससे लोग भयभीत हैं. इसका खामियाजा तेजस्वी यादव खुद भुगत रहे हैं, जिसके वजह से लोग राजद की ओर रूख तय नहीं कर रहे हैं.

बिहार के करीब 90 फीसद लोग ऐसा ही सोचते हैं. इंडिया गठबंधन में अंदर जितने भी दल है और नेता है उसमें मात्र एक तेजस्वी यादव ही एक नेता हैं जिस पर लोग भरोसा करते हैं. तेजस्वी यादव का अपना एक इफेक्ट है. सुपौल में काफी मेहनत करने के बाद भी वहां के कार्यकर्ताओं ने भी अपना कैंडिडेट अलग से चुना, ये भी अलग प्रकार का एक इंपैक्ट है. तेजस्वी यादव चुनाव में आने के बाद से अनुभव के आधार पर एक अच्छे वक्ता हो गए है. एक अच्छे वक्ता होने के कारण वो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर पाते हैं लेकिन लोग फिर से लोग जब पुराने अतीत को याद करते हैं तो उनको जंगलराज की याद आने से डर लगता है.

जंगलराज की विरासत और तेजस्वी

तेजस्वी यादव को लेकर जो छवि  बिहार की जनता में बननी चाहिए वो लालू यादव के कार्यकाल में हुए घटनाओं के वजह से बनने से पीछे रखता है. बिहार में पिछले कुछ समय से नेता प्रतिपक्ष काफी खाली था, लेकिन अब लगता है कि तेजस्वी यादव ने अब उन कमियों को दूर कर दिया है, क्योंकि बिहार में अभी तक विपक्ष में बोलने की वो स्थिति नहीं थी और उस लायक कोई अभी तक नहीं था.  बिहार में तेजस्वी अभी तक विपक्ष के अच्छे नेता इसलिए हैं क्योंकि उनकी टक्कर का अभी तक कोई नेता नहीं आया है, वरना तेजस्वी यादव में विपक्ष के नेता बनने के लायक भी कुछ खास नहीं है.

बिहार की राजनीति के अंदर पप्पू यादव और कन्हैया कुमार दो ऐसे नेता हैं, जिनको मौका दिया जाए तो वो काफी बेहतर काम कर सकते हैं. 2020  में तेजस्वी यादव के नाम पर चुनाव लड़ा गया था उस समय विपक्ष को अच्छी सीटें मिल गई थीं उसके बाद वो मुख्यमंत्री बनने से रह गए. वो वोट तेजस्वी यादव के नाम पर वोट नहीं मिला था, बल्कि एनडीए से अलग होकर रहने वाले दल तेजस्वी के खेमे में चले गए थे उस कारण से वहां पर उनको अधिक वोट पड़ा था. जिस प्रकार से नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लोग है उनकी तरह तेजस्वी यादव के साथ में लोग नहीं है. माना जाता है कि तेजस्वी यादव का आम आदमी में कनेक्शन नहीं है. उनको भी उसी तरह का कुछ करने की जरूरत है, जिस प्रकार से राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सबसे मिले.

एनडीए ने बिहार में कम की मेहनत 

तेजस्वी यादव आलीशान घर में बैठकर राजनीति करते हैं अगर वो राहुल गांधी की तरह क्षेत्र में जाकर और आम लोगों से कनेक्शन रखें तो ठीक कर सकते हैं. जब तक राहुल गांधी घर से राजनीति करते थे तब तक उनका प्रभाव काफी कम था जैसे ही उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा निकाली तो उसका प्रभाव पड़ा, जिस कारण लोकसभा चुनाव में काफी अच्छी बढ़त मिली है. जिस प्रकार नीतीश कुमार, प्रशांत किशोर, राहुल गांधी यात्रा निकाल कर लोगों तक पहुंच रहे हैं उसका असर सामने देखने को मिल रहा है उसी प्रकार तेजस्वी यादव को भी यात्रा के दौरान हर कोने तक पहुंचकर लोगों से मिलना चाहिए उससे उनका प्रभाव समाज में आगे बढ़ेगा और राजनीति में काफी अच्छा कर पाएंगे. 

इस चुनाव के अनुसार पब्लिक नेता से जुड़ाव चाहता है उसका घमंड और अहंकार नहीं देखना चाहता. विकास का काम कम हो लेकिन जनता से कनेक्ट वाला नेता चाहिए होता है ताकि समय पड़ने पर वो उसकी बात सुन सके.  तेजस्वी यादव घर की चाहरदीवारी से बाहर नहीं निकल पाए हैं अभी तक जो प्रभाव है उनके पिता का बनाया हुआ है. बिहार में पिछली लोकसभा चुनाव में एनडीए को 40 में से 39 सीट मिला था इस बार के चुनाव में 30 सीटें मिली है जबकि इस बार बिहार में लोकसभा के चुनाव को बिहार में तेजस्वी यादव ही लीड कर रहे थे. बिहार के इस लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव तो फेल रहे ही लेकिन इसमें एनडीए के नेता भी जनता से जुड़ने के मामले में कमजोर रहे, वरना पूरे 40 सीटों पर जीत मिलती.

पीएम ने की मेहनत 

पीएम नरेंद्र मोदी ने जितनी सभाएं की और जनता से जुड़े उतने स्तर पर लोकल के नेता और सांसद मेहनत नहीं किए. अगर उन्होंने मेहनत की होती, लोगों से जुड़ाव रखते तो बिहार में एनडीए और काफी बेहतर काम कर पाती. नरेंद्र मोदी को दो बार पटना में रुकना पड़ा, दो बार रोड शो करना पड़ा क्योंकि वो चुनाव प्रधानमंत्री पद के लिए था.इसलिए नरेंद्र मोदी ने जदयू वाले सीट पर भी जाकर प्रचार और रोड शो किए. भाजपा के अंदर से शायद ये खबर रही होगी कि उनके वहां के सांसद ने पांच सालों के कार्यकाल में कुछ काम नहीं किया. ऐसी सूचना के बाद खुद पीएम ने प्रचार की कमान संभाली और रोड शो से लेकर प्रचार तक किया. अगर पीएम ऐसा नहीं करते तो बिहार में एनडीए की सीटें और भी कम हो सकती थी.

अगर स्थानीय नेता काम किए होते और जनता से उनका जुड़ाव होता तो पीएम नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती. बिहार में एक बार और बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए रास्ता तो दिख रहा है, हालांकि इस बार इतना आसान नहीं होगा, इसके लिए जमकर मेहनत करनी पड़ेगि. बिहार में चुनाव को लेकर रोडमैप तैयार हो चुका है, पर्यटन विभाग से लेकर उद्योग विभाग में रिक्त पड़े पदों को भरने का काम शुरू कर दिया गया है. सरकार जिस रोडमैप पर काम कर रही है अगर वो कागज पर ही रह गया तो फिर नुकसान होने की संभावना ज्यादा हो जाती है. लालू यादव की राजनीति से तेजस्वी यादव की राजनीत थोड़ी अलग. है वो अपनी परंपरागत स्थिति से हटकर कुछ अलग राजनीति करने का मन रखते हैं और वो उसपर आगे बढ़ चुके है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

       

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