यूं तो गोवा साल के अंतिम दिनों में देश विदेश के पर्यटकों से कुछ ज्यादा ही गुलज़ार रहता है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से नवंबर में ही यह मनोहर पर्यटक स्थल विश्वभर के फिल्म प्रेमियों के लिए ऐसा आकर्षण बन गया है, जहां सभी फिल्म प्रेमी आने के लिए मचल उठते हैं. इसका कारण है यहाँ प्रति वर्ष आयोजित होने वाला भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह.


फिर इस बार तो यह फिल्म समारोह और भी खास इसलिए है कि इस बार भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का 50 वां यानि स्वर्ण जयंती आयोजन है. जिसका आयोजन 20 नवंबर से 28 नवंबर के दौरान होगा. यह स्वर्ण जयंती आयोजन कितना बड़ा होगा इस बात का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसमें भाग लेने के लिए देश विदेश से 10 हज़ार से अधिक फिल्म कलाकार, निर्माता,निर्देशक और फिल्म समीक्षकों सहित फिल्मों के और भी बहुत से प्रतिनिधि यहाँ पहुँच रहे हैं. जिसमें भारतीय सिनेमा के कई जाने माने कलाकार और अन्य लोकप्रिय हस्तियों को भी पूरे समारोह के दौरान देखा जा सकता है.


कुल 9 दिन के इस फिल्म समारोह में 76 देशों की लगभग 200 फिल्में दिखाईं जाएंगी. जिनमें इंडियन पेनोरमा के अंतर्गत भारत की विभिन्न भाषाओं के 26 फीचर फिल्में और 15 गैर फीचर फिल्में भी शामिल हैं. इंडियन पेनोरमा वर्ग का जिस फिल्म से उद्द्घाटन चर्चित गुजराती फिल्म ‘हेलारो’’ से होगा. जिसके निर्देशक अभिषेक शाह हैं.


जबकि अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह की शुरुआत इतालवी फिल्म ‘डिस्पाइट द फ़ौग’ (कोहरे के बावजूद) से हो रही है. इस फिल्म का निर्देशन यूरोप के  प्रतिष्ठित और लोकप्रिय फ़िल्मकार गोरान पासकलयेविच ने किया है. फिल्म की कहानी रोमकी पृष्ठभूमि में है. जो एक रेस्ट्रा मालिक पाओलो और एक मुस्लिम बालक मोहम्मद के इर्द गिर्द घूमती है. पाओलो एक दिन देर शाम को घर लौटते हुए देखता है कि एक बस स्टॉप के कोने में एक बालक ठंड से ठिठुरते हुए दुबक रहा है.


पाओलो को पता लगता है कि मोहम्मद नाम का वह बच्चा एक शरणार्थी है. पाओलो उसे अपने घर ले आता है. लेकिन उसकी पत्नी बलेरिया यह सब देख परेशान हो उठती है. वह इस बात पर तैयार होती है कि एक रात तो वह यहाँ रुक जाये लेकिन सुबह वह चला जाएगा. हालांकि सुबह तक बलेरिया बच्चे को देख उसे अपने यहाँ ठहराने के लिए तैयार हो जाती है. जबकि आस पास के लोग उसे अपने घर में रखने के लिए मना करते हैं. असल में यह फिल्म यूरोप के नाबालिग शरणार्थियों से जुड़ी गंभीर समस्या को उजागर करती है.


‘मार्घे एंड हर मदर’ से होगा समापन
फिल्म समारोह के समापन की फिल्म ‘मार्घे एंड हर मदर’ भी एक खास फिल्म है. हालांकि यह फिल्म भी इतालवी भाषा की है लेकिन इसका निर्देशन ईरान के चर्चित फ़िल्मकार मखमलबफ ने किया है. मखमलबफ इससे पहले कई ईरानी फिल्म बनाकर अच्छा खासा नाम कमा चुके हैं और उन्हें न्यू वेव की दूसरी पीढ़ी के अग्रणी फ़िल्मकारों में गिना जाता है. लेकिन इतालवी में यह उनकी पहली फिल्म है.
एक इंडियन प्रीमियर के रूप में दिखाई जाने वाली मखमलबफ़ की यह फिल्म एक 6 साल की लड़की मार्घे और उसकी सिंगल मदर कलाऊडिया की कहानी है. माँ को किराया न दे पाने पर मकान मालिक उनसे घर खाली करा देता है तो माँ के सामने मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ता है. ऐसे में वह मार्घे को पड़ोस के एक घर में एक वृद्द महिला के घर छोड़ जाती है. उसके बाद कई तरह की विषम परिस्थितियाँ आती हैं.


देखा जाये तो समारोह की उद्द्घाटन और समापन दोनों फिल्में दुनिया भर की वह तस्वीर पेश करती हैं जहां कहीं धर्म के विवाद पर तो कहीं देशों की सीमा  या घर परिवारों में तनाव के कारण बच्चों की जिंदगी पर घातक प्रभाव पड़ रहा है.


एशियाई फिल्मों पर रहेगा फोकस
भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह की शुरुआत सन 1952 में हुयी थी तब एशिया में कहीं भी कोई बड़ा फिल्म समारोह नहीं होता था. इसीलिए हमारे इस समारोह को एशिया का सबसे पुराना या यूं कहें कि एशिया का पहला अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह माना जाता है. इसलिए इस बार एशियाई फिल्मों पर फोकस भी यहाँ रखा गया है.



इसके अंतर्गत ‘एशिया की आत्मा’ के विशेष वर्ग में चीन, जापान, श्रीलंका, सिंगापोर, ताइवान की चर्चित फिल्में- फिलिंग्स टू टेल, समर इज द कोलडेस्ट सीजन, टैन इयर्स इन जापान, अदर हाफ और वेट सीजन भी दिखाई जाएंगी. साथ ही रूस की 8 फिल्मों का भी अलग से विशेष प्रदर्शन समारोह में होगा. जिसमें तारकोवस्की की प्रसिद्द फिल्म ‘ए सिनेमा प्रेयर’ भी शामिल है.


67 वर्षों में 50 आयोजन
भारतीय अंतराराष्ट्रीय फिल्म समारोह का पहला आयोजन मुंबई में 1952 में हुआ था. इससे अब 2019 में यह समारोह का 67 वां वर्ष है. लेकिन शुरुआत में यह नियमित नहीं था. जिससे समय समय पर एक आयोजन से दूसरे आयोजन में कुछ बरसों का अंतराल होता रहा. पहले के बाद दूसरा फिल्म समारोह 9 वर्ष के अंतराल के बाद 1961 में संभव हो सका. इस कारण 67 वर्षों में कुल 50 आयोजन ही हो सके.
शुरू में यह आयोजन गैर प्रतियोगी भी था. इससे कुछ विदेशी फ़िल्मकारों ने अपनी फिल्में समारोह में भेजने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. यह देखते हुए जब सन 1965 में तीसरे फिल्म समारोह का नई दिल्ली में आयोजन हुआ तो तब से इसे प्रतियोगी समारोह बना दिया गया. जिसमें सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए स्वर्ण कमल पुरस्कार की स्थापना की गयी. जबकि समारोह का नियमित आयोजन 1974 से आरंभ हुआ.


स्वर्ण कमल फिल्मों का पुनरावलोकन
इसलिए जब यह समारोह अपने आयोजन की स्वर्ण जयंती मना रहा है तो सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, सूचना प्रसारण सचिव अमित खरे और फिल्म समारोह निदेशालय ने इस समारोह को विशिष्ट बनाने के लिए बहुत सी तैयारियां की हैं. मुझे स्वयं भी इस बात का गर्व है कि मैं दसवें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह से इसे करीब से देख रहा हूँ. उन पर नियमित लिख रहा हूँ.


इस बार स्वर्ण जयंती मौके पर समारोह में कुछ ऐसी चुनिन्दा फिल्मों का भी पुनरावलोकन रखा गया है जिन्हें पिछले 49 फिल्म समारोह के दौरान स्वर्ण कमल पुरस्कार मिला. इस पुनरावलोकन में स्वर्ण कमल प्राप्त 8 देशों की 8 फिल्मों का प्रदर्शन होगा.
इन फिल्मों में 1965 में पहला स्वर्ण कमल जीतने वाली लेस्टर जेम्स पेरिज के निर्देशन में बनी श्रीलंका की फिल्म ‘गेमपेरालिया’ को देखना तो और भी सुखद लगेगा. इसके अतिरिक्त जेम्स आइवरी की सुप्रसिद्द फिल्म द बास्टोनियस के साथ इस वर्ग में द किंग ऑफ मास्क, एट फाइव इन द आफ्टरनून और कजाक की फिल्म तुलपान आदि भी इस पुनारावलोकन की शान बढ़ाएँगी.
स्वर्ण जयंती फिल्म समारोह को लेकर जो अन्य विशेष आकर्षण इस बार समारोह में रखे गए हैं उनमें दुनिया भर की 50 महिला निर्देशकों की 50 फिल्में भी गोवा में दिखाई जाएंगी. साथ ही ऐसी 12 फिल्में भी इस बार के लिए खास तौर से चुनी गईं हैं जिनके प्रदर्शन को इस बरस 50 हो गए हैं.


इसके अतिरिक्त 50 बरसों को लेकर हाल ही में सूचना प्रसारण सचिव अमित खरे ने एक रेडियो जिंगल भी जारी किया. यह जिंगल ऑडियो के साथ विजुअल में भी है, जिसे भरत नाट्यम नृत्यांगना गीता चंद्रन पर फिल्माया गया है. जिसकी अवधारणा भरत मुनि के नाट्य शास्त्र के उपयोग करते हुए 9 रसों के अनुरूप है.


रजनीकान्त और अमिताभ बच्चन को भी सम्मान
यह दिलचस्प है कि जहां भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के आयोजन का यह 50 वां पर्व है वहाँ महानायक अमिताभ बच्चन ने भी इसी माह फिल्मों में अपने 50 वर्ष पूरे किए हैं. यह भी संयोग है कि उनकी पहली फिल्म ‘सात हिन्दुस्तानी’ की शूटिंग गोवा में ही हुयी थी और अब 50 बरस बाद गोवा में ही उन्हें विशेष गौरव मिलने जा रहा है.



उधर पिछले दिनों ही अमिताभ बच्चन को फिल्मों के सर्वोच्च भारतीय पुरस्कार दादा साहब फाल्के देने की भी घोषणा हुई है. इसलिए अमिताभ बच्चन की 6 यादगार फिल्मों का समारोह में विशेष प्रदर्शन किया जाएगा. इन फिल्मों में जहां उनकी दीवार और शोले जैसी सुपर हिट अविस्मरणीय फिल्में हैं तो ब्लैक, पा, पीकू और बदला जैसी वे फिल्में भी हैं जो पिछले कुछ बरसों में ही प्रदर्शित हुईं और इनमें अमिताभ बच्चन का अभिनय बेमिसाल रहा. यहाँ तक ब्लैक, पा और पीकू के लिए तो अमिताभ बच्चन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.



यूं तो गोवा फिल्म समारोह में हर वर्ष किसी फिल्म हस्ती को शताब्दी फिल्म पुरस्कार से सम्मानित करने की परंपरा भी रही है. यह सम्मान दक्षिण फिल्मों के सबसे लोकप्रिय और दिग्गज कलाकार रजनीकान्त को भी मिल चुका है. लेकिन स्वर्ण जयंती के मौके पर भी भारत सरकार ने रजनीकान्त के भारतीय सिनेमा में किए गए असाधारण योगदान के लिए ‘विशेष आईकोन पुरस्कार’ से नवाजा जाएगा. जिसके लिए रजनीकान्त को 10 लाख रुपए का नगद पुरस्कार भी मिलेगा.


इसाबेल हूपर्ट को लाइफटाइम अचीवमेंट
इस बार गोवा में समारोह में आए व्यक्तियों के लिए वह लम्हा भी बेहद शानदार और यादगार रहेगा जब उन्हें अपने सम्मुख फ्रांस की अपने जमाने की सर्वाधिक लोकप्रिय अभिनेत्री इसाबेल हूपर्ट को देखने का सौभाग्य प्राप्त होगा. क्योंकि इस बार समारोह में इसाबेल एनी मेडेलीन हूपर्ट को लाइफटाइम अचीवमेंट एवार्ड से सम्मानित किया जा रहा है.


इधर समारोह में दिखाई जाने वाली 200 से अधिक फिल्मों में कई फिल्में ऐसी हैं जिनका प्रथम प्रदर्शन इसी समारोह में होगा. उधर ऑस्कर प्राप्त कुछ विशेष फिल्में भी समारोह का विशेष आकर्षण रहेंगी. इसके लिए भी ऑस्कर पुनरावलोकन के नाम से अलग खंड रखा है. जिसमें फ्रांसिस फोर्ड कोपोला की द गॉड फादर, विक्टर फ्लेमिंग की गोन विद द विंड, माइकल कर्टिस की कैसाब्लेंका, विलियम वायलर की बेन हूर और बेस्ट इयर्स ऑफ अवर्स लाइफ, डेविड लीन की लौरेंस ऑफ अरेबिया, रोबर्ट वॉइज़ की द साउंड ऑफ म्यूजिक,  जोनाथन डैम की द साइलेंस ऑफ द लेम्ब्स और रोबर्ट जेमेकिस के फॉरेस्ट गम्प जैसी फिल्में हैं. इन फिल्मों ने बेस्ट फिल्म का ऑस्कर तो जीता ही साथ ही कुछ अन्य पुरस्कार भी इन फिल्मों ने प्राप्त किए.


प्रतियोगिता वर्ग की कुछ खास फिल्में
फिल्म समारोह कोई भी हो, उस समारोह का प्रतियोगिता वर्ग सभी के लिए खास आकर्षण का केंद्र रहता है. फ़िल्मकारों के लिए इसलिए कि उनकी फिल्म को कोई पुरस्कार मिले और दर्शकों-समीक्षकों के लिए इसलिए कि उनकी नज़र में जो अच्छी फिल्म या अच्छे कलाकारों का जो आकलन था उसमें वे कितने खरे उतरे.



इस बार 50 वें फिल्म समारोह में प्रतियोगिता वर्ग में जो खास फिल्में हैं उनमें दो भारतीय फिल्म भी स्वर्ण कमल की दौड़ में आगे हैं. इनमें एक अनंत महादेवन के निर्देशन में बनी मराठी फिल्म ‘माई घाट –क्राइम नंबर 103/ 2005’ और दूसरी फिल्म मलयालम की ‘जल्लीकट्टू’ है. जबकि आस्ट्रिया की ‘लिलियन’, तुर्की की ‘क्रोनोलोजी’, चीन की ‘बैलून’, फ्रांस, मलेशिया और इन्डोनेशिया की ‘साइंस ऑफ फिक्शंस’ और फ्रांस- स्विट्ज़रलैंड की ‘पार्टिक्लस’ भी इस वर्ग की अहम फिल्में हैं.


उधर समारोह में अपने डेब्यू (प्रथम प्रदर्शन) के प्रतियोगिता वर्ग की फिल्मों में अल्जीरियाई फिल्म अबु लीला, कोरियाई फिल्म रोमेंग, अमेरिकी फिल्म माय नेम इज सारा, रोमन फिल्म मौन्स्टर्स के साथ भारतीय फिल्म हेलारो और  उबारे भी इस वर्ग की प्रमुख फिल्म हैं. जिनमें विजेता फिल्म को रजत मयूर का पुरस्कार मिलेगा.


इस फिल्म समारोह का एक अहम हिस्सा कैलाइडोस्कोप वर्ग भी है. जिसमें बेहतरीन फिल्मों की खूबसूरत बानगी देखने को मिलती है. इस बार इसके अंतर्गत विश्व सिनेमा की 20 फिल्में प्रदर्शित की जाएंगी. इन फिल्मों में पैरासाइट,एंड देन वी डांस्ड, बाकुराव, पैट्रिक और आई वाज एट होम बट’ जैसी वे फिल्में हैं जो विश्व के कई बड़े अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में कई बड़े पुरस्कार अपनी झोली मे समेट चुकी हैं. ऐसी फिल्मों का एक ही मंच पर देखने का मौका सभी के लिए बड़ी बात है.


13 फ़िल्मकारों को दी जाएगी श्रद्दांजलि
इस फिल्म समारोह में एक यह परंपरा भी चली आ रही है कि इसमें फिल्म से जुड़े उन प्रमुख भारतीय व्यक्तियों को भी याद किया जाता है जिनका इस वर्ष निधन हो गया है. इसके लिए उनकी कोई न कोई फिल्म भी समारोह में दिखाई जाती है.



इस बार जो फ़िल्मकार दुनिया को अलविदा कह गए उनमें सुप्रसिद्द संगीतकार खय्याम, राजश्री प्रॉडक्शन के फ़िल्मकार राज कुमार बड़जात्या, अभिनेत्री विद्या सिन्हा और रुमा गुहा ठाकुरता, अभिनेता-निर्देशक गिरीश कर्नाड, अभिनेता -लेखक कादर खान, फ़िल्मकार मृणाल सेन और एक्शन निर्देशक वीरू देवगन भी हैं. समारोह में इनकी उमरावजान, नदिया के पार, रजनीगंधा, गणशत्रु, हम, भुवनशोम और एजेंट विनोद आदि फिल्में दिखाई जाएंगी.


यह फिल्म समारोह यूं तो विशेष आमंत्रित व्यक्तियों, मान्यता प्राप्त फिल्म समीक्षकों, फिल्म प्रतिनिधियों के साथ टिकट खरीद कर आने वाले दर्शकों के लिए होता है. लेकिन भारतीय पेनोरमा की कुछ फिल्मों सहित कुछ अन्य भारतीय फिल्मों का प्रदर्शन सभी दर्शकों के लिए मुफ्त में भी रहेगा.


क्लासिक इंडियन कॉमेडी की रहेगी धूम
इसके अंतर्गत वहाँ जोगर्स पार्क में 8 क्लासिक कॉमेडी फिल्में दिखाई जाएंगी. जिनमें चलती का नाम गाड़ी, पड़ोसन, अंदाज़ अपना अपना, हेरा फेरी, चेन्नई एक्स्प्रेस, बधाई हो और टोटल धमाल फिल्में हैं. वहीं मीरमार बीच पर सुपर-30, गली बॉय, उरी जैसी हिन्दी फिल्मों के साथ मराठी फिल्म आनंदी गोपाल, गुजराती फिल्म हेलारो, कोंकणी फिल्म नाचोम –इया कंपासा, तेलुगू फिल्म एफ-2 भी सभी आम दर्शक निशुल्क देख सकते हैं.


कुल मिलाकार लगता है कि इस बार फिल्मों का यह महाकुंभ शानदार रहने वाला है, बशर्ते समारोह की व्यवस्था ठीक ठाक रहे.


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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)