जीवित पिता को पानी के लिए तरसाने वाला औरंगजेब नहीं हो सकता मुसलमानों का आदर्श

कई विविधताओं के देश होने के नाते भारत संस्कृति, बोली, भाषा, परंपरा, पहनावा, खान-पान, उत्सव आदि के मानदंड पर निःसंदेह बहुत समृद्ध है. परंतु भारत की यह समृद्धि एक मोल भी चुकाती है जब आपसी संस्कृति, पंथ, धर्म और भाषा आदि का यह अंतर ‘वर्चस्व’ की लड़ाई का हिस्सा बन जाता है और इसका ताजा उदाहरण है ‘नागपुर हिंसा’! वक्फ बिल में प्रस्तावित संशोधन को लेकर एक तरफ जहां दिल्ली के जंतर-मंतर पर मुस्लिम समुदाय धरना प्रदर्शन कर रहा था वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र जो औरंगजेब की थाती को लेकर अब तक ‘कोल्ड वार’ कर रहा था, बीते सोमवार की रात नागपुर को दंगों की आग में झुलस गया. अब तक 5 एफआईआर और 50 से ज्यादा लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है और 10 थानों के क्षेत्र में बेमियादी कर्फ्यू लगा दिया गया है.
औरंगजेब को लेकर दंगा!
नागपुर में औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग को लेकर किए गए प्रदर्शन के दौरान धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए पुलिस ने विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल के कुछ पदाधिकारियों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है. नागपुर में सोमवार की रात हुई हिंसा में 12 दोपहिया वाहनों को नुकसान पहुंचा है. एक क्रेन और दो JCB को भी आग के हवाले कर दिया गया. कुछ लोगों पर तलवार से हमला हुआ है. देवेन्द्र फडणवीस ने कहा है कि, ये दंगा पूर्व नियोजित था. सीएम ने हिंसा पर विधानसभा में जानकारी दिया है कि अब तक 33 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं जिसमें 3 डीसीपी लेवल के अधिकारी घायल हैं. महल क्षेत्र में रात को तैनात महिला पुलिस के साथ छेड़छाड़ का भी आरोप दर्ज़ किया गया है.
पुलिस इलाकों में गश्त लगा रही है, एसारपीएफ की पांच टुकड़ियां भी तैनात की गई हैं. स्थिति अब नियंत्रण में दिखाई भी दे रही है. मगर नागपुर दंगों ने प्रशासन और समाज के हर वर्ग के लिए लिए कई प्रश्न तो खड़े किए ही हैं मुस्लिम समाज के लिए भी एक बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा किया है कि आखिर कब तक यह समाज औरंगजेब जैसे आक्रान्ताओं को अपना ‘पोस्टर बॉय’ मानता आएगा? क्या यह समाज अशफाक उल्लाह खान, अब्दुल कलाम आज़ाद, बिस्मिल्ला खान जैसे इस्लाम के असली नायकों को छोड़ कर जब भी अपना रहनुमा चुनेगा तो बुरहान वानी, बाबर, गाजी मियां, अलाऊउद्दीन खिलजी जैसे आतंक के पर्याय रहे व्यक्तियों को ही चुनेगा? वो भी ऐसे कि अफवाहों के चादर में लिपट कर नागपुर जैसे शहर को दंगे की भेंट चढ़ा देगा?
मुसलमान समझें उसके रहनुमा होंगे कौन?
औरंगजेब अत्याचारी था या सदाचारी, इस मामले को लेकर कई बार देश में बहस हुई है मगर छावा मूवी के आने के बाद औरगजेब के ‘असली रंग’ को जब भारतीयों ने देखा और समझा है तबसे उसके विरोध की भावना बहुत प्रबल हुई है. कई इतिहासकारों द्वारा औरंगजेब के मिथ्या महिमा मंडन के कारण भारतीय नस्लें मुगल शासन के कई पहलुओं से या तो अनभिज्ञ रहीं हैं या गलत विचार रखती हैं. मगर हर ऐसे इतिहासकार से भी सामान्य प्रश्न तो जरूर बनते हैं! जिस औरंगजेब ने सत्ता के लिए अपने पिता शाहजहां को कैद करा दिया, अपने भाई दाराशिकोह की हत्या करवायी, उसका कटा सर थाल में परोस पहले पूरे दिल्ली में घुमाया फिर अपने कैदी पिता को भेंट में भेजी, दूसरे भाई मुराद को भी विष देकर मरवा दिया वो औरंगजेब किस दृष्टिकोण से ‘इंसाफ पसंद’ और दरियादिल था? गुरु तेग बहादुर की हत्या किसके आदेश पर हुई? उनके चार पुत्रों में से दो को तलवार से और दो को जिंदा दीवार में चुनवाकर हत्या किसने और क्यों कराई? क्या ऐसे आदेश देने वाला औरंगजेब वास्तव में आदर्श बनने लायक है?
अपने बेटे औरंगजेब द्वारा 7 सालों के कैद में रखे जाने के बाद और बूंद- बूंद पानी को तरसाए जाने के बाद शाहजहाँ ने अपने बेटे को अंतिम पत्र में लिखा था:
"ऐ पिसर तू अजब मुसलमानी, ब पिदरे जिंदा आब तरसानी,
आफरीन बाद हिंदवान सद बार, मैं देहदं पिदरे मुर्दारावा दायम आब"
अर्थात्
हे बेटे! तू भी गज़ब का मुसलमान है जो अपने जीवित पिता को पानी के लिए भी तरसा रहा है. शत-शत बार प्रशंसनीय हैं वे 'हिन्दू' जो अपने मृत पूर्वजों को भी पानी देते हैं! जिस पिता के शब्द अपने पुत्र के लिए ऐसे हों वो क्या वास्तव में मानव होने के किसी गुण को धारण करता भी होगा क्या?
अंतर्मन में झांकना होगा मुसलमानों को!
मुसलमान समाज को समझना होगा कि उनके असल प्रेरणा कौन हैं जिन्होंने समाज और देश को एक नये सुंदर आयाम दिया है. क्रूर और आतंकियों को अपना रहनुमा बनाकर वो अपने समाज के साथ भी अन्याय ही कर रहे हैं. उन्हें समझना होगा क्यों किसी आतंकी के मारे जाने पर लाखों लोगों के हुजूम को सुपुर्दे खाक में शामिल होना है? क्यों एक आतंकी के कब्र के नाम पर फैलाए गए अफवाह पर सालों से जिसके साथ रह रहें उनके साथ दंगे फसाद करने है? क्यों पुलिस प्रशासन पर कभी सम्भल में तो कभी नागपुर में हमले किए जाते हैं? जिस संविधान की दुहाई देकर ये लोग अपने अधिकारों के रक्षा के लिए संसद से सड़क तक उतर आते हैं, कानून हाथ में लेकर कानून के रखवालों पर ही हमला कर कौन से कानून और संविधान के तहत ये गैर-कानूनी, गैर-इस्लामिक और गैर-सामाजिक काम करते हैं?
गैर मुस्लिमों पर जजिया कर लगाने वाला औरंगजेब सर्व-धर्म सद्भाव रखने वाला कैसे हो सकता है? काशी विश्वनाथ मंदिर से लेकर मथुरा, सम्भल, भोजशाला जैसे हजारों साल पुराने मंदिरों को तोड़ने का आदेश देने वाला न्यायप्रिय कैसे हो सकता है? यह तो सामान्य समझ रखने वाला व्यक्ति भी समझ जाएगा. फिर कुछ राजनैतिक दलों और इस्लाम धर्म के कुछ ठेकेदारों को यह सामान्य सी बात समझने में कठिनाई क्यों आ रही?
क्रूरता का महिमा मंडन करके आखिर कब तक इसे आधुनिक भारत का आदर्श बताया जाता रहेगा जिसके लपेट में वर्तमान पीढ़ी तो जल ही रही भावी पीढ़ियों के लिए भी दोजख का दरवाजा खोला जा रहा है! क्रूरता और मजहबी कट्टरता क्या हश्र करती है, इसका ताजा उदाहरण बांग्लादेश है और पाकिस्तान साढ़े सात दशकों से रहा है. समझ की परतों में इतनी जंग भी नहीं लगनी चाहिए कि सच्चाई की आवाज़ ही दिमाग तक ना पहुंचे. किसी भी समाज का वर्तमान और भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि उसके आदर्श कौन हैं! जर्मनी का आदर्श हिटलर और भारत का आदर्श अगर रावण होता तो ये देश आज बुलंदियों पर नहीं होते. बस भारत के एक विशेष वर्ग को भी यही समझने की जरूरत है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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