भोपाल में शिवाजी नगर का मकान नंबर ई-101/15, एक छोटे से लोहे के गेट के पार हल्का सा हरा भरा लॉन, मुख्य दरवाजे पर लटका डरावना बजूका, जो इशारों में कहता है भाई संभल कर. घर के पहले कमरे में ही दीवार पर लगी दो पेंटिंग की बगल की आधी दीवार को घेर कर बना किताबों का शेल्फ.


शेल्फ पर नजर दौड़ाने पर ही दिखती हैं लियो टालस्टाय की अन्ना कारेनिना, फ्योदोर दोस्तो ये व्स्की की अपराध और दंड, एंटोन चेखव की कहानियां, डी एच लारेंस की वुमन इन लव, एलविन टाफलर की फयूचर शाक, मारिया पूजो की गॉडफादर, सर आर्थर कानन डायल के शरलॉक होम्स के पूरे उपन्यास के साथ कुछ उर्दू के दीवान. इस शेल्फ पर भी एक लकड़ी के लंबे से शिल्प में खुदा बजूका है जो कहता है मेरे मालिक की किताबों को छूना मना है.


इस कमरे में इन लेखकों को छोड़ते ही दूसरे कमरे में आते हैं तो यहां की दीवार से सटा कर रखा हुआ है एक शानदार पुराना पियानो जिसके ऊपर अब इस घर के मालिक की मुस्कुराती तस्वीर है. दीवार पर मुगले आजम के निर्माता के आसिफ की बड़ी सी अच्छे फ्रेम में जड़ी फोटो दिखती है तो दूसरी तरफ एंटोन चेखब का छोटा सा पोर्ट्रेट भी लटका है.


गावस्कर और सचिन तक की आटो बायोग्राफी अलमारियों से झांक रहीं हैं


इन सबके बाद सोफों और कुर्सियों से जो जगह बची है तो वहां भी किताबों का रैक है जिसमें नजर दौड़ाने पर दिखते हैं पुराने और नये अनेक नामचीन कवि और शायर नज़ीर अकबराबादी, अहमद फराज़, अख्तरुल इस्लाम के साथ हमारे भोपाल के राजेश जोशी, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, केदारनाथ सिंह, रघुवीर सहाय जैसे दिग्गजों के साथ आज के शायर इरशाद कामिल भी. इन कवि और शायरों की किताबों के पड़ोस में इतिहास और क्रिकेट की किताबें भी दिखती हैं. गैरी सोबर्स से लेकर सनी गावस्कर और सचिन तक की आटो बायोग्राफी अलमारियों से झांक रहीं है.


इस कविता क्रिकेट की आवाजों से भरे कमरे से दो कमरे छोड़ कर ही है वो जगह जो संगीत प्रेमियों के लिये किसी खजाने से कम नहीं है और सच कहूं तो इसे देखना भी कुछ दिनों पहले तक सिर्फ कम लोगों को ही नसीब होता था. कमरे में चारों तरफ उंचे उंचे शेल्फ हैं जिनमें भरे हैं हजारों रिकार्ड्स और आडियो कैसेट. कोई भी शेल्फ खोलिये मुस्कुराते हुये फिल्मी नान फिल्मी गानों के कैसेट और एलपी रिकार्डस आपको दिखेंगे.


ढेर सारी कथा कहानियां कविताएं इसी कमरे में लिखीं जाती रहीं हैं


इन कैसेट को चलाने वाला बड़ा सा कैसेट प्लेयर और ग्रामोफ़ोन रिकार्ड्स को चलाने वाला पुराना चाबी वाला प्लेयर भी आपका इंतजार कर रहे हैं. अगर इस घर का मालिक खुश हो गया तो वो कोई दुर्लभ रिकार्ड आपको सुना देगा वरना देखिये छूना मना है साहब हमने आपको पहले ही बता दिया है. रिकॉर्ड और कैसेट से भरे इस कमरे में एक कोने में आगरा घराने के उस्ताद फैयाज खान का पोर्ट्रेट है तो दूसरी ओर दो चोटी डालकर खडीं लता मंगेशकर हैं तो किताबों के रैक पर भारत पाकिस्तान के विवादित नगमा निगार सआदत हसन मंटो अपनी पत्नी सफिया के साथ बड़ी सी तस्वीर में फैमिली फोटो खिंचवाते दिखते हैं.


बस अब एक कमरा और है जिसे आपको मैं दिखाना जरूरी समझता हूं ये है वो कमरा जिसमें इस घर के मालिक सुबह पांच बजे बंद हो जाते थे तो तीन साढ़े तीन घंटे बाद ही निकलते थे. ढेर सारी कथा कहानियां कविताएं इसी कमरे में लिखीं जाती रहीं हैं. दास्तान ए मुगले आजम पंद्रह साल में लिखी गयी तो जहान ए रूमी, कशकाल, बॉम्बे टाकी, कविता संग्रह बाकी बचे जो और सातवां दरवाजा के अलावा पिछले चौदह साल से दैनिक भास्कर के रसरंग का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला कॉलम आपस की बात यहीं इसी कमरे में डूब कर लिखा जाता रहा है. टेबल के ऊपर कंप्यूटर प्रिंटर के ऊपर फिर ढेर सारी कुछ खास किताबें रखीं हैं.


बस आप नाम जान लीजिये अकबरी दरबार, जहांगीरनामा, अप्सरा, रामचंद्र गुहा की इंडिया आफ्टर गांधी, एमजे अकबर की ब्लड ब्रदर, रफीक जकारिया की इंडियन मुस्लिम, आरफन पामुक की इस्तांबुल, गोपीचंद नारंग की उर्दू गजल पर लिखी किताबें और उर्दू के कुछ बेहद पुराने से दीवान. यहां रहने वाले परिवार ने बताया कि घर में तकरीबन दस हजार बेशकीमती किताबें, तीस से बत्तीस हजार रिकार्ड्स और कैसेटस और अनेक पेन ड्राइव और हार्ड डिस्क भी हैं जिनमें ना जाने क्या क्या दुर्लभ चीजें सहेज कर रखीं गई हैं.


इस विराट व्यक्तित्व का नाम है राजकुमार केसवानी


अब आप पूछोंगे कि पूरा घर तो घुमा दिया मगर घर के मालिक का नाम पता नहीं बताया तो कैसे बताऊं कि ये उस पत्रकार का मकान है जिसे अपने जीवन की सबसे बड़ी स्टोरी करने पर 1985 में उन दिनों का सबसे बड़ा बीडी गोयनका अवार्ड मिला तो उस वक्त उसने खुश होने की जगह दुखी मन से कहा कि मुझे इस अवार्ड की कोई खुशी नहीं है अगर मेरी रिपोर्ट पढ़कर सरकार उस हादसे को टाल सकती तो वो ज्यादा बड़ा अवार्ड होता. मेरे प्यारे शहर के हजारों लोगों ने गैस कांड में अपनी जान गंवाई है. मैं उस हादसे को टाल नहीं पाया फिर किस बात का अवार्ड. ये पत्रकार अपने छोटे से अखबार रपट और राष्ट्रीय अखबार जनसत्ता में लगातार लिखता रहा कि भोपाल मौत के मुहाने पर बैठा है इसे बचा लीजिये हुजूर.


तो साहब ये घर उस पत्रकार लेखक का है जिसने तीस साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सात जून 2010 को भोपाल की अदालत में गैस कांड के आठ आरोपियों पर दो दो साल की सजा और तुरंत जमानत मिलने का फैसला सुनने के बाद भरी अदालत में मजिस्ट्रेट की तरफ बेहद गुस्से में चिढ़कर हाथ उठाकर कहा कि जज साहब ये गलत कर रहे हैं आप. ये इंसाफ नहीं किया आपने. अदालत में सनाटा छा गया था और फिर उनको हम उनके साथियों ने तकरीबन धकियाते हुए बाहर निकाला मगर उनकी धाराप्रवाह गालियां अदालत के फैसले और फैसला देने वाले पर बाहर भी जारी थीं.


अपना शहर, अपने लोग, अपनी जुबान और अपने पेशे से इस कदर बेइंतहा प्यार करने वाला इस शख्स को एनडीटीवी के रवीश कुमार ने अपना उस्ताद लिखा है. कविता कहानी शायरी अनुवाद अखबार और टीवी पत्रकारिता से लेकर फिल्मों तक हिंदी उर्दू और अंग्रेजी में समान अधिकार से लिखने वाले इस विराट व्यक्तित्व का नाम है राजकुमार केसवानी जो पिछले दिनों हम सबको छोड़कर अनंत में चले गये. अब कौन करेगा हमसे आपस की बात. अलविदा केसवानी जी, आपकी जय जय.