बिहार के भागलपुर जिले में रविवार यानी 4 जून शाम को गंगा नदी पर निर्माणाधीन पुल ढह गया. इस पुल की लागत 1700 करोड़ रुपए है और यह पिछले साल भी एक बार ढह चुका है. खगड़िया अगुवानी- सुल्तानगंज के बीच गंगा नदी पर निर्माणाधीन पुल के धराशायी होने के बाद इस पर राजनीति तेज हो गयी है. उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा कि पिछली बार जब पुल गिरा तो वह विपक्ष के नेता थे और तब भी उन्होंने इसकी जांच की मांग की थी, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दोषियों पर कार्रवाई के निर्देश दिए. मुख्य विपक्षी दल भाजपा लगातार न्यायिक जांच की मांग कर रही है.
भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी में डूब गया पुल
निर्माण कार्य बिहार में, चाहे वह किसी भी तरह का हो, चाहे पुल का, रोड का या बिल्डिंग का, सब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहे हैं. एक कारण तो यह है कि रिश्वतकोरी चरम पर है. टेंडर प्रक्रिया है, उसके शुरू होने के पहले रिश्वत दीजिए, टेंडर होने पर रिश्वत दीजिए, फिर काम शुरू होने पर रिश्वत दीजिए और काम खत्म होने पर भी दीजिए. कमोबेश ये स्थिति हो गयी है कि कोई भी काम बिना रिश्वत के नहीं होता है. इसके साथ ही टेंडर का भी मामला है. अब कोई भी टेंडर मान लीजिए दस लोग डालते हैं, तो वो "बिलो हैंड" टेंडर डालते हैं, जबकि पहले लोग "अपर हैंड" टेंडर डालते थे. अब मान लीजिए कि सरकार ने किसी काम का 1000 करोड़ का टेंडर निकाला, तो उसमें 'बिलो हैंड' टेंडर में 10 परसेंट कम कर दिया तो 900 करोड़ का टेंडर हुआ. अब उस 100 करोड़ की भरपाई कहां से करेंगे? नतीजा ये होता है कि लाल बालू की जगह उसमें गंगा बालू (सफेद वाला) डाल देंगे. छड़ और सीमेंट की मात्रा कम कर देंगे. इसी से भरपाई करते हैं, जिससे अंततः क्वालिटी का नुकसान होता है. सड़क, पुल या कोई भी निर्माण हो, उसमें यही होता है. गिट्टी कम करेंगे, बालू कम करेंगे और कुल मिलाकर भागलपुर वाला यह पुल भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी में डूब गया, यही कहा जा सकता है.
टेंडर की प्रक्रिया बदले सरकार
सरकार मानक तय करती है कि कम से कम कितने में काम हो सकता है? उससे कम में तो काम होना ही नहीं चाहिए. बिलो टेंडर की प्रक्रिया को तो सबसे पहले निरस्त करना चाहिए. आज भाजपा भले आरोप लगा रही है,लेकिन 15-17 साल वह सत्ता की साझीदार रही है. टेंडर प्रक्रिया जब इस पुल की हुई होगी, तो भाजपा के मंत्री भी शामिल रहे हैं. आरोप-प्रत्यारोप चलते रहेंगे. यह भाजपा और जेडीयू की बात नही है. यह राज्य की बात है, स्टेटशिप की बात है. ऊपर से नीचे तक चरम पर भ्रष्टाचार है. उसको अगर नहीं रोकेंगे तो आगे और भी पुल गिरते रहेंगे. आप सड़कों की स्थिति देखिए, बिल्डिंग की हालत देखिए. आज से 100 साल पुराने बिल्डिंग या पुल देखिए. आज की बिल्डिंग और पुल देखिए. कोइलवर पुल हो या पुरानी विधानसभा, 100 साल पुरानी चीजों में भी दाग नहीं लगा है, लेकिन बिहार में विधानसभा की नयी बिल्डिंग देखिए. उसमें दरार आ गयी है, मार्बल फटने लगा है, और पानी आने लगा है. सचिवालय की पुरानी बिल्डिंग जो है, उसमें कुछ नहीं हुआ है. तो, सरकार को टेंडर प्रक्रिया में सुधार करना होगा, रिश्वतखोरी बंद करनी होगी, तभी इस तरह की घटनाएं रुकेंगी, वरना यही हालात आगे भी दिखेंगे.
बालू और दारू के चक्कर में राज्य बर्बाद
नीतीश कुमार की जो छवि है, वह तो अलग मसला है. वह किसी डिपार्टमेंट को काम दे रहे हैं. जैसे, अभी वह तेजस्वी यादव के पास है. पहले नंदकिशोर यादव के पास था, प्रेम कुमार के पास था. घर के मुखिया को तो क्या पता होता है कि घर का बेटा क्या कर रहा है, नीतीश कुमार तो काम कर रहे हैं. जो लोग विभाग देखते हैं, नौकरशाह हैं, उन पर जिम्मेदारी जानी चाहिए. हालांकि, नीतीश कुमार की भी कमोबेश जिम्मेदारी बनती है. अगर अच्छाई उनके खाते में जाती है, तो बुराई भी तो जाएगी ही. उनकी भी जिम्मेवारी बनती है, क्योंकि नीति-निर्धारक तो वही होते हैं. उनकी जो छवि थी, उसको थोड़ा दाग तो लगा है. इस पर उनको ध्यान देना चाहिए. इसकी न्यायिक जांच हो और कड़ी व कठोर कार्रवाई होनी चाहिए. यह कोई छोटी बात नहीं है, 1700 करोड़ रुपयों का नुकसान हुआ है. अगर वह कार्रवाई नहीं करते हैं तो भ्रष्टाचार बढ़ता ही जाएगा. सरकार को अभी से ध्यान देना चाहिए और भ्रष्टाचारियों के मन में भय होना चाहिए, तभी ऐसी घटनाएं रुकेंगी वरना लगातार नुकसान होता रहेगा.
इस पर राजनीति तो होगी ही. विपक्षी दल भ्रष्टाचार के आरोप लगाएंगे ही. सरकार अगर गंभीर है, ठीक से जांच करती है, कार्रवाई करती है, जो भी भ्रष्ट लोग हैं, इंजीनियर, ठेकेदार और विधायक कोई भी हों, उन पर कार्रवाई होगी तो विपक्ष के पास बोलने को कुछ नहीं रहेगा. वो आरोप लगाते रहेंगे, लेकिन सरकार को अपना काम करना चाहिए. बिहार में लोगों ने नियम-कानून बनाकर बालू को सोना बना दिया. कहीं बालू की कमी नहीं है. आप भागलपुर से लेकर कहीं भी जाएं, बालू प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. आप छपरा से भागलपुर जाइए, बालू का ढेर लगा है, टीला बना हुआ है. सैकड़ों ट्रक बालू लेकर जाते रहते हैं. डीएम, एसपी, थानेदार सब देखते हैं. सरकार बस दिखावे के लिए छापा मारती है. यह पूरा काम मिलीभगत से होता है. कई बार तो सरकारी अधिकारी पैसा भी लेते हैं और छापा भी मार देते हैं. उसी का रिएक्शन होता है, जब पत्थरबाजी वगैरह होती है. साल में चार से छह महीने तो बालू की निकासी बंद होती है. इससे उसकी कालाबाजारी बढ़ गयी है और डेवलपमेंट के काम भी प्रभावित हुए हैं.
एक्शन मोड में वापस आएं मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार जो 2005 से 2015 तक का जो मूड था, वह एक्शन मोड में रहते थे. वह लगातार कार्रवाई करते थे. कुछ भी हो, तत्परता से उसका निपटारा करते थे. उनको उसी मोड में वापस आना पड़ेगा. फिलहाल, तो बिहार सरकार का पूरा ध्यान केवल बालू और दारू पर है, इसलिए बाकी चीजों की अनदेखी हो जा रही है. भ्रष्टाचार हो, पुल गिरना हो या बाकी कोई भी एजेंडा हो, सबने बैकसीट पकड़ लिया है. दारू और बालू के चक्कर में राज्य का बहुत घाटा हो रहा है. नीतीश कुमार को 2024 के चुनाव में बीजेपी को टक्कर देनी है तो त्वरित कार्रवाई करनी होगी, भ्रष्टाचार मुक्त बिहार बनाना होगा.
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