ऑस्ट्रेलिया को चीन से निपटने के लिए लेनी ही होगी भारत की मदद, नई दिल्ली को नहीं कर सकता नजरअंदाज
![ऑस्ट्रेलिया को चीन से निपटने के लिए लेनी ही होगी भारत की मदद, नई दिल्ली को नहीं कर सकता नजरअंदाज The defense strategic review of Australia places India at important place and that is the strategy which should work against China ऑस्ट्रेलिया को चीन से निपटने के लिए लेनी ही होगी भारत की मदद, नई दिल्ली को नहीं कर सकता नजरअंदाज](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/04/25/46684cbd83a94bf9e35f1fa467758f1a1682427092112702_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
ऑस्ट्रेलियाई प्रतिरक्षा के क्षेत्र में डिफेंस स्ट्रेटेजिक रिव्यू (डीएसआर) सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों में एक है और यह ऑस्ट्रेलिया की प्रतिरक्षा को फिर से चुस्त-दुरुस्त करने का प्रयास भी है. 21वीं सदी में उभरते हुए सुरक्षा चुनौतियों के बीच यह दस्तावेज ऑस्ट्रेलिया के रणनीतिक चिंतन को दिखाता है.
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह ऑस्ट्रेलियन प्रतिरक्षा का सबसे अधिक महत्वपूर्ण ओवरहॉल है. इसलिए अगर आप इस पूरे दस्तावेज को देखें तो कुछ बातें रेखांकित करने लायक हैं. पहली बात, प्रतिरक्षा के क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया खुद को आत्मनिर्भर बनाना चाह रहा है. ख़ासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरती चुनौतियों से निबटने के लिए वह ये कर रहा है.
ये चुनौतियां अमेरिका के घटते महत्व की वजह से भी बढ़ी हैं, जिसकी वजह से रणनीतिक स्थिरता अब उतनी नहीं रही. सैन्य शक्ति से लैस चीन के उदय के साथ ही प्रजातांत्रिक देशों के लिए भविष्य के बारे में सोचना जरूरी हो गया है, इसलिए ऑस्ट्रेलिया अपने हितों की रक्षा के लिए तैयारी तो कर ही रहा था. यह केवल रक्षा से नहीं, अपितु राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित है. डीएसआर राजनीतिक, रणनीतिक, आर्थिक और डिप्लोमैटिक नीतियों की भी बात करता है, केवल प्रतिरक्षा की ही नहीं. दक्षिण चीन महासागर में आक्रामक और विस्तारवादी चीन के रवैए से ऑस्ट्रेलिया का चिंतित होना स्वाभाविक है, क्योंकि देर-सवेर आंच तो प्रशांत क्षेत्र में भी पहुंचेगी ही.
भारत के लिए सुनहरा अवसर
अगर आप इस पूरी नीति को भारत के संदर्भ में देखें तो दो बातें समझ में आती हैं. एक तो ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका के साथ अपनी सामरिक गतिविधियां जारी भी रखी हैं और बढ़ाई भी हैं. दूसरे वह नए रणनीतिक साझेदार भी तलाश रहा है. जापान और भारत के साथ उसकी बढ़ती हुई भागीदारी इसी संदर्भ में देखने की जरूरत है. ये दोनों ही देश क्वाड के भी सदस्य हैं.
डीएसआर से एक और बात ये पता चलती है कि ऑस्ट्रेलिया की नई प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिए कई पुरानी परियोजनाओं को ठंडे बस्ते में डाला जाएगा. इनमें ऑटोमेटिक रायफल या फिर हथियारों की सप्लाई करने वाली गाड़ियों की खरीद भी शामिल है. ऑस्ट्रेलिया दरअसल चीन के खतरे को देखते हुए अब मिसाइल और लंबी दूरी के हथियारों पर जोर दे रहा है. यह अपनी वायुसेना और नौसेना की शक्ति बढ़ाना चाहता है. इसीलिए ऑस्ट्रेलिया हाई मॉबिलिटी आर्टिलरी रॉकेट (HIMARS) सिस्टम खरीदने पर जोर दे रहा है. अभी ऑस्ट्रेलिया के पास केवल 40 किलोमीटर तक मार करने वाली मिसाइल है. अब वह 500 किमी, 1000 किमी तक मार करनेवाली मिसाइल चाह रहा है. गैर-परंपरागत सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए भी ऑस्ट्रेलिया कमर कस रहा है. संक्षेप में कहें, तो वह अपनी स्ट्राइकिंग पावर बढ़ा रहा है, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना चाहता है और परंपरागत सहयोगियों के साथ ही नए रणनीतिक साझेदार भी चाहता है.
भारत के लिए यह एक सुनहरा अवसर है. रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलिया को जापान और भारत जैसी प्रमुख शक्तियों के साथ व्यावहारिक सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया है. हिंद महासागर में चूंकि ऑस्ट्रेलिया की महत्वपूर्ण भूमिका है, इसलिए ऑस्ट्रेलिया को भारत और जापान के साथ संबंधों में विस्तार देने की जरूरत है. यह महत्वपूर्ण भूमिका इसलिए है क्योंकि इस महासागर में उसकी सबसे लंबी समुद्री रेखा है. इसमें गौर करनेवाली बात ये है कि ऑस्ट्रेलिया अपनी रक्षा पंक्ति को बेहतर तो करेगा ही, साथ ही लाइकमाइंडेड जो प्रजातांत्रिक देश हैं, उसके साथ साझेदारी बढ़ानी होगी. कोविड-19 के बाद जिस तरह चीन और ऑस्ट्रेलिया में तनातनी हुई थी, उस वक्त ऑस्ट्रेलिया ने यह मांग की थी कि महामारी के ऑरिजिन का पता लगाया जाए और चीन ने जिस तरह प्रतिक्रिया दी, उसके बाद ही ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच संबंध प्रगाढ़ होते चले गए.
ऑस्ट्रेलिया के लिए भारत स्वाभाविक साझेदार
इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात है सामरिक साझेदारी की. यानी, आप एक दूसरे के बेस पर जाकर रीफ्यूलिंग कर सकते हैं, हथियारों की मरम्मत वगैरह कर सकते हैं, एक-दूसरे से सहायता ले और दे सकते हैं. यह एक बड़ी बात है. ऑस्ट्रेलिया ने शुरुआती हिचक के बाद अक्टूबर 2022 में क्वाड ज्वाइन कर लिया. इसके बाद ज्वाइंट मिलिटरी एक्सरसाइज हुआ. इन्होंने अपना फोकस इसी पर बनाया हुआ है और डिफेंस के क्षेत्र में काफी काम हुआ है. आप देख सकते हैं कि इसका दलगत भेदभाव ऑस्ट्रेलिया में नहीं है. स्कॉट मॉरिसन की सरकार ने भी भारत के साथ अपने अच्छे संबंध बनाए हुए थे और एंथनी अल्बेनीज की सरकार में भी जो पहला बड़ा स्टेट विजिट भारत के लिए हुआ, वह रिचर्ड मॉब्सन का था, जो डिफेंस मिनिस्टर थे.
एंथनी अल्बेनीज के शपथ-ग्रहण के साथ ही ऑस्ट्रेलिया के डिफेंस मिनिस्टर का भारत दौरा कुछ तो कहता है. आखिर न तो ट्रेड मिनिस्टर ने विजिट किया, न ही कल्चर मिनिस्टर ने, न ही किसी और मंत्री ने. उन्होंने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने की बात की. डिफेंस स्ट्रक्चर को बढ़ाने की बात की. भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच रक्षा और रणनीतिक सहयोग बढ़ता जा रहा है. स्कॉट मॉरिसन के समय शुरू हुआ टू प्लस टू का डायलॉग लगातार बढ़ ही रहा है. डिफेंस और डिप्लोमैसी के दो डी इससे सध रहे हैं. कैबिनेट मिनिस्टर्स का विजिट लगातार बढ़ रहा है, प्राइम मिनिस्टर के दौरों की बारंबरता अधिक हो रही है. इसमें एक जो ध्यान देने की बात है कि अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच लंबे समय से डिफेंस में सहयोग चल रहा है, अभी भारत के साथ अमेरिका के संबंध बहुत अच्छे दौर में है और भारत भी अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी लगातार बढ़ा रहा है. तो, यह त्रिकोणीय संबंध तो बढ़ेगा ही.
ऑस्ट्रेलिया के डीएसआर में भारत को महत्वपूर्ण स्थान मिलना एक तरह से ऑस्ट्रेलिया का कंपल्शन है. भारत एक उभरती हुई ताकत है. उसे एक इकोनॉमिक पावरहाउस के तौर पर देखा जा रहा है. ग्लोबल मामलों में भारत एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी माना जा रहा है. भारत एक भरोसेमंद सहयोगी है और यह ग्लोबल स्टैबिलाइजर माना जा रहा है. अभी जो विदेश मंत्री हैं भारत के, उन्होंने समय-समय पर भारत के हितों को बहुत ढंग से वैश्विक मंच पर रखा है. अब भारत के लिए सबकी आंखों में आदर है और अगर वैश्विक रंगमंच पर घटनाओं को अंजाम देना है तो भारत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)
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