रोमांस का दौर मानो ऋषि कपूर के साथ बीत गया
ऋषि कपूर सत्तर-अस्सी के दशक के हीरो थे. इस दौर में फिल्मी परदे पर प्यार का एक अलग ही रूप दिख रहा था. प्यार सिर्फ छिप-छिपकर नहीं किया जाता था- खुल्लम खुल्ला भी होता था.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने ‘तुम्हारे लिए’ में कहा है - कांच की बंद खिड़कियों के पीछे, तुम बैठी हो घुटनों में मुंह छिपाए. क्या हुआ यदि हमारे-तुम्हारे बीच एक भी शब्द नहीं. बिन शब्दों के प्रेम का सिलसिला जो न समझ सकता हो, उसके लिए ऋषि कपूर की फिल्मों के क्या मायने. किसी ने कहा, ऐसा क्या था ऋषि कपूर में कि चैनलों पर सारे दिन छाए रहे. कल ही सुबह उनकी मौत की खबर आई और फिर कहीं भीतर सन्नाटा सा छा गया. उनके साथ जिए दौर का पटाक्षेप हो गया है. वह दौर, जब फिल्मों में आजाद ख्याली ने पर तोलने शुरू किए थे. जब प्रेम कहानियां परी कथाओं से निकलकर रुपहले परदे पर उतरने लगी थीं. अगर आपने मिल्स एंड बून को नही पढ़ा तो आप ऋषि कपूर की रूमानी शख्सियत के कायल नहीं हो सकते. ऋषि कपूर रूमानित के शहजादे थे. बादशाह नहीं, क्योंकि बादशाह में दंभ होता है, शहजादा सहज होता है. ऋषि कपूर सहज थे. अपनी फिल्मी कहानियों की ही तरह.
आज की नौजवान पीढ़ी ऋषि कपूर के दौर को नहीं समझ सकती. उसके लिए दो दूनी चार, स्टूडेंट ऑफ द ईयर, कपूर एंड सन्स, मुल्क के ऋषि कपूर से आगे की शख्सीयत को समझना मुश्किल है. यह वह दौर है, जब प्रेम कहानियां व्हॉट्सएप और इंस्टाग्राम की चैट पर पसर गई हैं. जूम और स्काइप के फ्रेम में फिट हो रही हैं. जब प्रेम कमिटमेंट से निकलकर कैजुअल रिलेशनशिप की आजादी में सांस ले रहा है. यह जेन जेड के दौर का इश्क वाला लव है. पर रोमांस को इस दौर तक पहुंचने के लिए जिन-जिन रुकावटों का सामना करना पड़ा, उनके बीच पुल का काम किया था ऋषि कपूर ने.
हिंदी सिनेमा प्यार के बिना मानो अधूरा ही रहता है. प्रेम कहानियों से अटी पड़ी हैं हमारी फिल्में. कभी फिल्मी प्यार हरिवंश राय बच्चन की कविता सरीखा था- प्यार किसी को करना लेकिन/ कह कर उसे बताना क्या. यह पचास और साठ के दशक का प्यार था. जब खबर होने तक खाक हो जाने का मंजर होता था. दिलीप कुमार इसी से ट्रैजिडी किंग हो गए थे. देव साहब हिंदी सिनेमा के ग्रेगरी पेक कहलाने लगे थे. राजकपूर शोमैन बन गए थे. यह इत्तेफाक था कि अपनी लीड हीरोइन्स मधुबाला, सुरैय्या और नर्गिस के साथ इन तीनों का लीजेंडरी रोमांस दिल के टूटने की कहानी बना. तब प्रेम और अर्पण वाला एंगल, प्रेम की पराकाष्ठा माना जाता था.
ऋषि कपूर सत्तर-अस्सी के दशक के हीरो थे. इस दौर में फिल्मी परदे पर प्यार का एक अलग ही रूप दिख रहा था. प्यार सिर्फ छिप-छिपकर नहीं किया जाता था- खुल्लम खुल्ला भी होता था. बॉबी का राज और कर्ज का मॉन्टी खुद के शायर हो जाने और दर्दे दिल के जागने का दावा कर सकता था. झूठा कहीं का अजय अनीता से गलबहियां करते हुए जलने वालों को जलने की दुहाई दे सकता था. प्रेमरोग का देवधर अपने प्रेम रोगी होने पर मदमस्त होकर नाच सकता था. सागर का रवि चांद खिले चेहरे और घनेरी जुल्फों वाली मोना से भरी महफिल में उसका नाम पूछ सकता था. यह प्रेम की मर्यादा भरी दीवानगी थी कि कभी कभी का विक्की अपनी मंगेतर को हासिल करने के लिए शहरों की दूरियां तय कर लेता है, पर किसी वहां किसी को इस बात का पता नहीं चलने देता. ये वादा रहा का विक्रम चेहरा बदलने के बाद कुसुम बनी सुनीता को सिर्फ एक गीत से पहचान तो लेता है, पर कुसुम का फायदा नहीं उठाता. बदलते रिश्ते का मनोहर शादीशुदा सावित्री के सुख के लिए खुद को खलनायक साबित कर देता है. आपने अगर हम दिल दे चुके सनम के अंत की तारीफ की हो तो पहले इस फिल्म को जरूर देखिए. इसी तरह सरगम का अनाथ राजू गूंगी हेमा की ताल पर बाद तक ढपली तो बजाता रहता है, पर उसकी सुखी और संपन्न ससुराल देना चाहता है.
रोमांस के इतने रंग, इतने अलग-अलग किरदारों में ऋषि कपूर ने जिए थे. उनकी फिल्मों में प्रेम के अद्वितीय रिश्ते बनते-उतरते रहते थे. आपको मालूम होता था मानो उनके मन की उलझने, आपके मन को उलझाती हैं. उनकी बनावट, गठन, जिंदगी के कोई बंधे बंधाए नियम नहीं थे. कहीं कोई कसाव नहीं, हर तरह एक स्वच्छंद खुलाव, एक बिखरी हुई अनियमितता. हर किरदार सुनहरी तरुणाई से भरा, पैंजी के फूलों सा शोख सुंदर.
ऋषि कपूर के साथ रोमांस करने वाली हीरोइनों की लंबी फेहरिस्त है. यह उनकी अदाकारी का कमाल था कि वह शुरुआती फिल्मों में नीतू सिंह से मोहब्बत करते हुए भी उतने ही अच्छे लगे, जितने रीना ऱॉय, पदमिनी कोल्हापुरे, टीना मुनीम, पूनम ढिल्लों और बाद की श्रीदेवी, जया प्रदा, जूही चावला और दिव्या भारती के साथ. कितनी हीरोइनों ने उनके साथ डेब्ल्यू किया- जया प्रदा, राधिका, शोमा आनंद, काजल किरण, सोनम, जेबा बख्तियार, अश्विनी भावे, रंजीता, नसीम, गौतमी. प्रेम कहानियां बदलती गईं, नायिकाएं बदलती गईं, पर ऋषि कपूर का रोमांटिक अवतार जस का तस रहा. उन्होंने कभी इस अहंकार को अपने पास फटकने नहीं दिया कि नई हीरोइन के साथ काम नहीं करना.
ऋषि कपूर का जिंदगीनामा रूमानी चित्रों से भरा हुआ है. ऐसे चित्र कितने ही दर्शकों को बीते दिनों में ले जाते हैं. प्रेमिल दिनों के उस नॉस्टैलजिया में जब उदासी भरी लंबी रातें, धूप में निकली सुबहें, अलसाई सी न खत्म होने वाली दुपहरी और अंधरों में डूबी शामें हुआ करती थीं. इन सबके बीच चित्रपट एक स्वप्न जैसे होते थे. वह दौर ऋषि कपूर के साथ बीत गया है.
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