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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

इंटरनेशनल साजिश, गैंगवार और हत्या... राजधानी के हाई सिक्योरिटी वाले तिहाड़ जेल में ऐसे बेखौफ खेल खेलते हैं गैंगस्टर

एशिया की सबसे सुरक्षित मानी जानेवाली जेल यानी तिहाड़. इसमें बंद गैंगस्टर सुनील उर्फ टिल्लू ताजपुरिया की हत्या गैंगवॉर में हो गई. इस हत्या के बाद से ही तिहाड़ की सुरक्षा व्यवस्था पर कई सवाल उठ रहे हैं और जेल प्रशासन पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है. आखिर, जेल में बंद इन कैदी अपराधियों के पास हथियार कहां से आते हैं, इनको वह सारी सुविधाएं और वातावरण कौन मुहैया कराता है, जिसके बाद वह खुद को कानून से भी ऊपर समझते हैं. इस पूरी व्यवस्था की वह ढीली पेंच कौन है, जो पूरे सिस्टम को ही हिला दे रहा है. 

एकाध घटना का मतलब नहीं कि तिहाड़ असुरक्षित

तिहाड़ की खासियत ये है कि यह दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी जेल है. सबसे सुरक्षित और मॉडल जेल भी है. मॉडल इस मामले में है कि जब पूरी दुनिया से प्रतिनिधि भारत की जेलों के मॉडल को समझने-देखने आते हैं, तो उन्हें तिहाड़ ही दिखाते हैं. यह एक लंबा परिसर है, जेलें आपस में जुड़ी हुई हैं और महिला जेल 6 नंबर भी वहीं पर है. दूसरा परिसर हम जानते हैं कि रोहिणी-मंडोली है. अब वहां पर अगर गैंगस्टर्स आपसे में गैंगवार करते हैं, एक की मौत हो जाती है तो स्वाभाविक तौर पर जेलों की सुरक्षा का पूरा जो मामला है, वह दिमाग में आता ही है. मीडिया इन सवालों को उठा भी रहा है, पहले भी उठाता रहा है. तिहाड़ जेल को करीब से देखने पर एक बात समझ में आई कि यहां सुरक्षा कई परतों में है. माना जाता है कि ये सुरक्षा परतें अभेद्य हैं. जेल की सुरक्षा राज्य का विषय है और तिहाड़ को जब बनाया गया, तभी सोचा गया कि इस जेल को सबसे सुरक्षित रखना है. इसी के आधार पर और भी कई जेलों को बनाया गया या फिर इन्हें सुधारा गया. 

टिल्लू गैंगस्टर जैसी घटनाएं जब होती हैं तो सारा फोकस उसी पर जाता है. ऐसा लगता है मानो सारी चीजें ही तिहाड़ में असुरक्षित हैं. ऐसा नहीं है. ये घटना बहुत बड़ी और चिंताजनक है, यह जेल की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल भी खड़े करती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जेल की सारी व्यवस्था चरमरा गई है. दूसरी बात ये है कि ऐसा भी नहीं है कि सारे बंदी जो हैं वे बहुत सुरक्षित हैं या सारा जेल स्टाफ भ्रष्ट है. कुछ लोग जरूर भ्रष्ट हैं, जिनकी वजह से कड़ी टूटती है. अब सवाल ये है कि वह कड़ी पकड़ेगा कौन? इस तरह की घटनाएं किसी जेल स्टाफ के संलिप्त हुए बिना तो संभव नहीं है. जब चार्ल्श शोभराज भागा था, तो उसने अपनी बर्थडे पार्टी ऑर्गैनाइज की थी. उसी के बहाने वह निकल गया, लेकिन उसका माहौल बहुत समय से बन रहा था. इस बार की घटना अधिक चिंताजनक इसलिए है कि बहुत दिनों से तिहाड़ में कुछ न कुछ ऐसा हुआ, जिससे सुरक्षा को और कड़ा बनाया गया, फिर भी यह घटना हो गई. इसका सीधा मतलब यह है कि कोई न कोई कड़ी कमजोर हुई है, जो किसी एक ग्रुप को नाजायज फायदा देने की कोशिश कर रही है. 

कैदियों का खाली समय ही है जड़

तिहाड़ जेल में हमेशा कोई वीआईपी, शातिर अपराधी, ह्वाइट कॉलर अपराधी वगैरह हमेशा रहे हैं. हमारी गलती है कि हम सोचते हैं कि वह जेल में जाते ही पहले दिन सुधार गृह चला गया. ऐसा होता नहीं है. जो शातिर अपराधी है, वह जेल में अपराध करके ही आया है. ये समाज हमेशा छोटे अपराधियों को इतनी शह देता है कि वे बड़े अपराधी बनते हैं, फिर समाज सोचता है कि वह जेल जाते ही सुधर जाएंगे, पर ऐसा होता नहीं है. कुछ अपराधी तो जेल में आने के बाद बड़े अपराधी बने. अगर जेल के अधिकारी और स्टाफ सतर्क नहीं हैं, ईमानदार नहीं है तो वो ब्रीडिंग ग्राउंड बना देते हैं, फिर वो जब जेल में होते हैं और बाहर आते हैं, तो बिल्कुल बदल चुके होते हैं. दूसरी बात यह है कि वहां सॉलिटरी कनफाइनमेंट या बंदियों को अलग रखने की भी व्यवस्था है. बहुत शातिर, बहुत चालाक बंदी बिल्कुल अलग रखे जाते हैं. हम लेकिन एक बात पर ध्यान नहीं देते. जेल में बहुत से अपराधियों के पास बहुत खाली समय होता है और चिंता की बात वहां होती है. ये जो खाली समय है, वह उनकी प्लानिंग और योजना का समय होता है. जब वो अपनी प्लानिंग में सफल हो जाते हैं, तो मीडिया के लिए वह चटपटी खबर होती है, लेकिन सोचने की बात यह है कि एक अपराधी जेल में भी प्लॉटिंग और प्लानिंग कर ले जाता है. अंडरट्रायल जो होते हैं और वो कन्विक्ट की तुलना में ज्यादा ही हैं, उनमें से भी कुछ. हरेक नहीं, लेकिन बहुतेरे यह योजना बनाने लगते हैं कि आगे चलकर वे और बड़े अपराधी बनेंगे. समाज को भी अलर्ट होना चाहिए कि जब वे छोटे अपराधियों को शह देते हैं तो यह उम्मीद न करें कि जेल में जाकर वे बिल्कुल सुधर कर ही आएंगे. 

जेल और पुलिस-प्रशासन को करना होगा भ्रष्टाचार-मुक्त

पुलिस ये मानती है कि मानवाधिकार आयोग या मानवाधिकार से जुड़ी बहुत सारी बातों से ही उसको काम करने की पूरी आजादी नहीं मिलती. पुलिस बल भी यह दावा नहीं कर सकता कि वह भ्रष्टाचार से पूरी तरह मुक्त है. एक बात कई राज्यों की पुलिस और जेलों के साथ काम करने के बाद समझ में आती है. अपराधी पर नजर रखने की हमारी प्रवृत्ति घटी है, दूसरे जो विक्टिम है, जो पीड़ित है, वह बहुत डरता है. वह अपराध के दौरान डरता है, पुलिस स्टेशन जाने के दौरान डरता है, शिकायत करने के दौरान डरता है और अपराधी के जेल जाने के बाद भी डरता है. हमारी पूरी व्यवस्था आज भी पीड़ित को पूरी तरह सुरक्षा नहीं दे पाई है. यह भी देखना होगा कि गैंगवार का माहौल कहां बन रहा है? समाज में गैंगवार अचानक नही होते. जब ये अपराधी बन रहे होते हैं, तो समाज को पूरा पता होता है कि कौन उस तरह की प्रवृत्ति रखता है? एक उदाहरण देखा जाए. कोरोना काल में भी जिनको अपराध करना था, वे अपराध कर रहे थे. उस समय उनको जल्दी रिहा कर दिया गया कि कोरोना ना फैले. हालांकि, कितनी बार राज्यों की पुलिस ने जाकर यह देखा कि उन लोगों ने अपराध की दुनिया को छोड़ा या वहीं रम गए. कई बार जब लोग जेलों से लौटते हैं तो बड़े कशीदे काढ़ते हैं कि जेल में तो कुछ नहीं हुआ. इसका सच-झूठ उन पर छोड़ दिया जाए. सवाल यह है कि जब वे जेल को इंजॉय करने लगते हैं, तो इसका मतलब है कि कहीं न कहीं कोई चूक है. मीडिया की गलती है कि वह सनसनी और बड़े अपराधियों को तवज्जो देती है. वह छोटे अपराधियों को कवर नहीं करती. उसी तरह पॉलिटिशियन्स की भी गलती है. वो अपना मसल पावर बढ़ाने और रसूख बनाने के लिए इनको पालते हैं. 

हरेक राज्य का प्रिजन मैनुअल अलग है. कुछ कैदियों को काम से मुक्ति मिल जाती है लेकिन बाकी कैदियों को काम करना पड़ता है. जेल के सुधार के साथ बंदियों को जोड़ा जा सकता है. जेल में लकड़ी का या हाथ का भी काम करवाया जा सकता है. दीवाली के दीयों से लेकर होली के रंग तक बनवाए जा सकते हैं. बहुतेरी छोटी जेलें हैं, जहां कोई काम नहीं करवाया जाता है. हरियाणा की जेलों में बंदियों के खाली समय का बहुत सही उपयोग किया जा रहा है. इससे उन्हें एक कौशल भी मिलता है. इससे होता ये है कि खाली दिमाग, शैतान का घर नहीं बनता है. जेल के अधिकारियों की ट्रेनिंग भी बहुत जरूरी है. बाहरी दुनिया को लेकर भी उनको सजग रहना चाहिए. वीआईपी कल्चर को खत्म करना होगा और जेलों को बदलना होगा. 

[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]

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