मथुरा में सर्वे कराने का फैसला स्वागतयोग्य, जो भी कर रहे विरोध, उनका इसमें है निहित स्वार्थ
![मथुरा में सर्वे कराने का फैसला स्वागतयोग्य, जो भी कर रहे विरोध, उनका इसमें है निहित स्वार्थ The highcourt has granted permission for survey of Mathura Idgah and this will reveal new facts मथुरा में सर्वे कराने का फैसला स्वागतयोग्य, जो भी कर रहे विरोध, उनका इसमें है निहित स्वार्थ](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/12/15/31d313fbf0f15a19f324de21037772dd1702643791012702_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मस्थान और उससे सटी ईदगाह मस्जिद का सर्वे कराने का आदेश दिया है. कोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में कार्रवाई को आगे बढ़ाते हुए यह कहा है कि एडवोकेट कमिश्नर वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के जरिए शाही ईदगाह मस्जिद का सर्वेक्षण कर सकेंगे. 18 दिसंबर को अगली सुनवाई होगी. इसमें सर्वेक्षण की रूपरेखा तय होने की उम्मीद है. इस फैसले के खिलाफ ईदगाह कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है.
मथुरा का फैसला स्वागतयोग्य
मथुरा के संदर्भ में जो फैसला आया है, उसे मैं ऐसा फैसला मानता हूं जो न्याय की मदद करनेवाला है. किसी भी विषय में अगर न्याय करना हो, तो तथ्यों का ज्ञान आवश्यक है. वो तथ्य क्या हैं, यह जानने के लिए कोर्ट ने कमीशन बनाया. यह आश्चर्यजनक है कि मुसलमानों ने उसका विरोध किया. उस परिसर में क्या है, किसके चिह्न हैं, प्रकृति क्या है, यह तो जांच से पता चलेगा. जांच में दोनों पक्षों के वकील भी रहेंगे, दोनों के सामने जांच होगी. दोनों पक्ष के काबिल लोग वहां मौजूद होंगे, इसलिए इस पर शोर क्यों मच रहा है, यह भी मेरी समझ के बाहर है. हालांकि, मैं प्रसन्न हूं और मुझे लगता है कि अब सत्य सामने आएगा. सत्य ये है कि वह ईदगाह एक मंदिर को तोड़कर उसके अवशेषों पर बनायी गयी है और उसके अंदर एक मंदिर है, इसके पर्याप्त चिह्न मिलेंगे. सर्वे की जरूरत हमें इसलिए पड़ी कि मामला कोर्ट के सामने है. ये जमीन कृष्ण जन्मभूमि की है और वहां मंदिर बनना चाहिए.
ईदगाह उनकी स्वतंत्र पूजा की जगह है और उसमें छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए, ये उनका कहना है. इसलिए, सर्वे की जरूरत पड़ी. जांच की आवश्यकता हुई. जहां तक प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट है, तो वह किसी जांच को रोकता नहीं है. उसमें तो लिखा है कि किसी भी पूजा-स्थल की जो प्रकृति 1947 में बनी रही है, वही बनी रहेगी. अब वह प्रकृति क्या है...एक्ट यह नहीं कहता कि जो स्थान जिस काम के लिए इस्तेमाल हो रहा है. तो, अगर वहां नमाज भी हो रही है, तो भी वह मस्जिद नहीं है. उदाहरण के लिए, अगर यह सिद्ध हो गया कि काशी में जो मिला है, वह शिवलिंग है तो उस स्थान की प्रकृति मस्जिद तो नहीं हो सकती. इसलिए, 1947 के एक्ट में भी अगर हम जाएं, तो भी उसकी जांच तो जरूरी है.
मथुरा का मामला अयोध्या जैसा ही
यह मसला अयोध्या से अलग नहीं है. अयोध्या में भी राम-चबूतरे पर पूजा होती थी. प्रश्न ये है कि जिसको कृष्ण-जन्मस्थान माना जाता है, वहां मंदिर होना चाहिए कि नहीं? और, केवल इसके नीचे ही नहीं, अगर मंदिर की कुछ दीवारें या हिस्सा उसके लिए इस्तेमाल कर दी गयी हों, तो...। इसलिए, एक बार उन तथ्यों को सामने आना चाहिए, फिर कानून अपना काम करेगा. ऐसा लगता है कि अगर कोई घाव है, तो उसका इलाज होना चाहिए. ऑपरेशन लंबा हो या छोटा, करना चाहिए. यह मुद्दा तो जीवित है ही, एक लंबे समय से. यह कभी मरा नहीं है. यह तनाव का कारण है और इसको टालते रहने से तनाव टलता रहेगा, तो इसको हल होना चाहिए. जहां तक यह सवाल आता है कि गिरजाघर टूटा है या कोई और धार्मिक स्थल, तो उसकी भी जांच हो जाए. हालांकि, ऐसा हुआ नहीं है. इस विवाद के प्रत्येक छोटे-बड़े मुद्दे का हल सुप्रीम कोर्ट करती है. इंतजामिया कमेटी भी अब सुप्रीम कोर्ट जाएगी. होना होगा, तो वहीं सब कुछ होगा. मैं समझता हूं कि अयोध्या में सर्वे हुआ था, वाराणसी में एएसआई ने किया है तो यह एक नजीर है, प्रेसिडेंट है, तो अधिक दिक्कत नहीं होनी चाहिए. कोर्ट आनेवाले वर्षों में इसको हल करे, इसकी जल्द सुनवाई करे, मुझे ऐसी उम्मीद है और मुझे लगता है कि कोर्ट देर नहीं करेगी. वह जल्द ही इसकी सुनवाई कर देगी.
हिंदू बस मांग रहे हैं अपना अधिकार
जो लोग यह बोलते हैं कि हिंदू अपना अधिकार मांग रहे हैं, तो वो कानून-व्यवस्था का मजाक बना रहे हैं, तो यह उनका स्वार्थ बोल रहा है. यदि कोई यह तय कर ले कि उसे तो विरोध करना ही है, तो फिर वह विरोध ही करेगा, उसके लिए कोई तर्क काम नहीं करेगा. ये तो मेमने और भेड़िए की बात हो गयी, जब पानी जूठा करने की बात हुई थी. मेमने ने तो कहा था कि वह भेड़िए के बाद खड़ा है, तो पानी तो भेड़िए की ओर से बहकर आएगा, तो वह जूठा नहीं कर सकता है. भेडि़ए ने कहा था कि ठीक है, फिर कोई और बात होगी. उस पर बाद में सोचेंगे, पहले तुझे खा लेता हूं. जैसा कि इनका मन है, जिन्होंने इन तनावों को जिंदा रखने की कसम खा रखी है, उनके ही ये तर्क हो सकते हैं.
मंदिर से जुड़े लोग तो खुश हैं कि अब सही तथ्य सामने आएगे, अगर तथ्य ये है कि मंदिर को तोड़कर नहीं बनाया गया था, तो ईदगाह वहीं रहेगी. जो लोग कह रहे हैं कि ईदगाह तो मंदिर तोड़कर नहीं बनाया गया था, उनको तो खुश होना चाहिए. अभी तो प्रक्रिया चल रही है. सुप्रीम कोर्ट ने भी तो बिना किसी हिचक के सर्वे पर रोक लगाने से मना कर दिया है. हमें उम्मीद है कि हिंदू पक्ष काशी और मथुरा दोनों को वापस पाएगा. हमने तो सोच लिया है कि हम कानूनी तरीके से काम करेंगे. इस पर हम कोई आंदोलन नहीं करेंगे, हमें तो संवैधानिक दायरे में काम करना है और जो भी फैसला होगा, उस पर हम अमल करेंगे.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]
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