भारत का महत्वाकांक्षी चंद्रयान-3 बस कुछ ही घंटो में चांद पर उतरने वाला है. जहां हर भारतीय इस महान क्षण को देखने के लिए उत्सुक है, वहीं पूरी दुनिया, मंगलयान के बाद एक और भारतीय तकनीकी करिश्मे को देखने के लिए दम साधे बैठी है. अगर भारत यह मिशन सफलतापूर्वक कर लेता है, तब वह दुनिया का पहला ऐसा देश होगा, जो चांद के दक्षिणी श्रुव पर Soft Landing करेगा. भारत 2 बार पहले ही चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर Crash Landing कर चुका है. आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि चंद्रयान-1 और 2, दोनों ही चांद के दक्षिणी ध्रुव के इलाके में ही crash land हुए थे. दो दिन पहले ही रूस का Luna-25 भी चांद के दक्षिणी ध्रुव में ही crash land हुआ है. चंद्रयान-3 की सफलता के लिए हरेक देशवासी दुआ कर रहा है, उसके सकुशल उतरने की प्रार्थना कर रहा है.
मून मिशन कितने प्रकार के?
मून मिशन यानी चंद्रमा पर धरती से भेजा गया सैटेलाइट या आदमी, कुल मिलाकर जिसे चंद्रमिशन कहते हैं, वह कई प्रकार के होते हैं. ऐसा नहीं है कि हरेक रॉकेट या सैटेलाइट मानव को लेकर जाएगा, सतह पर उतरेगा ही. इसमें विभिन्न भेद होते हैं. जैसे, पहला ऑर्बिटर होता है, जिसमें प्रोब या सैटेलाइट चाँद के चारों ओर चक्कर लगाता है. दूसरा इम्पैक्टर होता है. यह चाँद की सतह पर जा कर टकराता है. फिर फ्लाई बाई होता है. यह उपकरण चांद के आस-पास से हो कर गुजरता है, यह मिशन सौर मंडल के दूसरे ग्रहों पर शोध के लिए होते हैं, और वहां जाते हुए यह चांद के आसपास से हो कर गुजरते हैं. इसके अलावा लैंडर होता है, जो उपकरण चाँद की सतह पर उतरता है. रोवर नाम का उपकरण चांद की सतह पर घूमता है, तसवीरें लेता है और मिट्टी या पत्थर जैसी वस्तुओं को संकलित करता है. इसके अलावा ) चालक दल मिशन भी होता है, जिसमें चालक दल को एक स्पेस-शटल में बैठा कर चांद पर भेजा जाता है. यह लोग वहां से चीजों के सैंपल लेते हैं और वापस धरती पर लौट जाते हैं.
रूस-अमेरिका ने बंद कर दिए थे मून-मिशन
अमेरिका और रूस, दोनों ने ही 50 के दशक से ही चांद पर मिशन भेजने शुरू कर दिए थे. इन्होंने चालक दल मिशन भी भेजे, लेकिन धीरे धीरे इन्होने मिशन भेजने बंद कर दिए या बहुत कम कर दिए. इन दोनों देशों के अलावा भारत, चीन, जापान और यूरोपियन स्पेस एजेंसी, इटली, इजराइल, और यहां तक कि UAE भी चाँद पर अलग अलग तरह के मिशन भेज चुके हैं, हालांकि सफलता बहुत कम को मिली है.जब 50 के दशक में 'स्पेस रेस' शुरू हुई थी, तब चांद ही हमारा सबसे निकटतम लक्ष्य था, इसीलिए वहां सबसे ज्यादा मिशन भेजे जाते थे. लेकिन समय के साथ साथ मनुष्य की प्राथमिकताएं बदली और हम अंतरिक्ष में और आगे जाने लगे, दूसरे ग्रहों, तारा मंडलों, और सौर मंडलों पर शोध करने लगे. यही एक बड़ा कारण था कि हमारा ध्यान चांद से हट गया. हालांकि अमेरिका इस बीच लगातार मून मिशन भेजता रहा, लेकिन 70 के दशक के पश्चात चालक दल मिशन नहीं भेजा गया. चांद को लेकर जो पुनः उत्सुकता बढ़ी है, उसके पीछे भारत के चंद्रयान -1 का बहुत बड़ा हाथ है, क्योंकि चंद्रयान-1 से ही चाँद पर पानी उपलब्ध होने की सम्भावना को बल मिला था.
भारत मून-मिशन क्यों भेज रहा है?
भारत ने सबसे पहले 2008 में चंद्रयान -1 भेजा था, जिसमे NASA का एक उपकरण लगा हुआ था, जिसका नाम था "Moon Mineralogy Mapper". इस मिशन के 2 मुख्य लक्ष्य थे. पहला तो ISRO की तकनीकी क्षमताओं को परखना था और दूसरा, चांद पर पानी की खोज करना था. इस मिशन के दोनों लक्ष्य पूरे भी हुए. जहां भारत दुनिया में तीसरा देश बना, जिसने चाँद की सतह पर Crash Landing की, वहीं भारत दुनिया का पहला देश बना जिसने चांद के दक्षिण ध्रुव की सतह को छुआ. इसके अतिरिक्त चंद्रयान-1 की सबसे बड़ी उपलब्धि थी, चांद पर पानी के अस्तित्व को खोजना. NASA के उपकरण ने चांद पर ऐसे कई क्षेत्रों को देखा, जहाँ बर्फ या पानी के भण्डार होने की सम्भावना थी. इस बड़ी खोज को सत्यापित करने और इसे और आगे बढ़ाने के लिए ही भारत ने चंद्रयान-2 मिशन भी भेजा, जिसमें एक लैंडर भी था, जो चाँद की सतह पर उतर कर वहां की भूगर्भीय परिस्थितियों का आंकलन करता, लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारन वह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर crash land हुआ. अब चंद्रयान -3 भी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर जा रहा है. और ऐसा माना जा रहा है कि ISRO ने पिछले मिशन में रही कमियों को दूर कर लिया है, और इस बार लैंडर (विक्रम) के सॉफ्ट लैंडिंग करने के अच्छे अवसर हैं, वहीं रोवर (प्रज्ञान) भी कहीं बेहतर तैयारी के साथ भेजा गया है, जो चांद से बड़ी ही बहुमूल्य जानकारियां हमें भेजेगा.
चंद्रयान 2 और 3 ISRO के लिए तकनीकी प्रदर्शक हैं, इनमे कई प्रकार की तकनीकों को जाँचा परखा जायेगा. चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करना आसान नहीं है, क्यूंकि वहां गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव अलग होता है. वहीं दक्षिणी ध्रुव एक बेहद ठंडा और अंधेरा इलाका है, जहाँ बड़े बड़े गड्ढे हैं. ऐसे में अगर भारत यह मिशन सफलतापूर्वक पूरा करता है, तो यह माना जाएगा कि ISRO के पास भविष्य के जटिल और चालक दल वाले मिशन को करने लायक तकनीकी क्षमता है. वहीं अगर भारत को वहाँ पानी और अन्य खनिज मिलते हैं, तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि हो जायेगी. भविष्य में इनका खनन भी किया जा सकता है, जिसमें भारत की बड़ी भूमिका होगी.
चाँद का दक्षिणी ध्रुव इतना खास क्यों है?
अभी तक जितने भी मून मिशन हुए हैं, उनमे से आशिकांश चांद की भूमध्य रेखा के आस पास हुए हैं . यह इलाका सामने से दिखता है, यहाँ की सतह सपाट है, और यहाँ के तापमान, मौसम आदि की जानकारी हमें आसानी से मिल जाती है, इसलिए यहाँ कोई भी मिशन अपेक्षाकृत आसानी से हो जाता है. वहीं चांद का दक्षिणी ध्रुव एकदम अलग इलाका है. यहां करोड़ों-अरबों वर्षों से सूरज की रोशनी नहीं पहुंची है, यह इलाका अंधेरे में डूबा रहता है, इसलिए इसे स्थाई छाया वाला क्षेत्र कहते हैं. चांद के ध्रुवीय क्षेत्र में बने गड्ढे अरबों वर्षों से सूर्य की रोशनी के बिना बहुत ठंडी अवस्था में बने हुए हैं. यहां की मिट्टी में जमा चीजें अरबों सालों से वैसी ही हैं, और यही कारण है कि यहाँ कई प्रकार के खनिज और अन्य तत्वों के मिलने की सम्भावना है. ISRO इन तत्वों की पड़ताल के लिए ही दक्षिण ध्रुव पर उतरना चाहता है. ISRO यहां लैंडर और रोवर उतारकर मिट्टी और वातावरण की जांच करने का प्रयास करना चाहता है. दक्षिणी ध्रुव के पास की मिट्टी में जमे हुए बर्फ़ के अणुओं की पड़ताल से कई रहस्यों का पता चल सकता है, जैसे सौर मंडल कैसे बना होगा, चंद्रमा और पृथ्वी के जन्म का क्या रहस्य हैं, चंद्रमा का निर्माण कैसे हुआ और इसके निर्माण के दौरान क्या स्थितियां थीं, यह जाना जा सकता है.
सफल हुआ मिशन, तो भारत बनेगा बड़ी ताकत
इसके अलावा इस मिशन का एक और बेहद महत्वपूर्ण पक्ष है मिशन की लागत. चंद्रयान-3 की लागत मात्र 77 मिलियन डॉलर है, जो होती है करीब 620 करोड़ रूपए .वहीं अमेरिका द्वारा भेजे गए सबसे सस्ते मून मिशन की लागत थी 2.9 बिलियन डॉलर, जो होती है लगभग 25,000 करोड़ रूपए. यानी भारत के मून मिशन अमेरिका से लगभग 40-45 गुणा सस्ते होते हैं. NASA के पास बेहिसाब फंडिंग होती है, लेकिन फिर भी उसने अपने स्पेस मिशन कम कर दिए हैं, और अधिकतर काम Private players जैसे SpaceX को दे दिए हैं, उसका एक बड़ा कारण लागत ही है. भविष्य में यह लागत ही बहुत बड़ा निर्णायक कारण बनेगी स्पेस मिशन के पीछे. तकनीकी दक्षता तो ISRO के पास है ही, साथ में कम लागत होने पर हर देश अपने स्पेस मिशन के लिए ISRO से ही संपर्क करेगा. चंद्रयान -3 की सफलता भारत को अंतरिक्ष मिशन और शोध के क्षेत्र में एक बहुत बड़े खिलाडी के तौर पर स्थापित कर देगा, जो ना मात्र तकनीकी तौर पर दक्ष है, बल्कि कम लागत में उच्च गुणवत्ता के समाधान प्रस्तुत करता है. चंद्रयान-2 लैंडिंग के दौरान नाकाम हो गया था, इसलिए ऐसी विफलताओं से बचने के लिए चंद्रयान-3 उन्नत तकनीक से लैस है. इसरो के चेयरमैन सोमनाथ ने तो ये भी कह दिया है कि सब कुछ खत्म हो जाए, फिर भी चंद्रयान की चंद्रमा पर सुरक्षित लैंडिंग होगी.
एबीपी न्यूज भी पूरे देश के साथ चंद्रयान-3 की सफल लैंडिग की प्रार्थना करता है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]