देश की राजधानी दिल्ली के सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार और लापरवाही से अक्सर लगने वाली आग की ताजा घटना पर अब सियासत तो गरमायेगी लेकिन उन 27 बेगुनाह लोगों के मौत की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा? शायद नहीं, कोई भी नहीं. न तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार और न ही दिल्ली नगर निगम यानी MCD की सत्ता पर काबिज बीजेपी.
दोनों ही एक-दूसरे को लापरवाही का दोषी ठहराते रहेंगे लेकिन कोई भी इस अहम मुद्दे पर ध्यान नहीं देगा कि शॉट सर्किट होने से आग लगने की इतनी भयानक घटनाएं बार-बार क्यों होती है और उस बिल्डिंग में अगर उसके बचाव के उपाय मौजूद नहीं हैं तो उसके लिये आखिर कौन जिम्मेदार है? दरअसल, दिल्ली एक राज्य तो है लेकिन उसके पास पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है. मतलब ये कि यहां 70 विधायकों वाली चुनी हुई सरकार के अधिकार आधे-अधूरे यानी एक दिव्यांग वाले हैं. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार है लेकिन दिल्ली नगर निगम यानी MCD में बीजेपी का शासन है और दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है. राजधानी का बिल्डर माफिया इसी का फायदा उठाता रहा है क्योंकि उसे इसकी जरा भी फिक्र नहीं होती कि शॉट सर्किट से लगने वाली आग उसका कुछ बिगाड़ भी सकती है.
दिल्ली में अवैध अतिक्रमण पर बुलडोज़र चलाने वाले MCD के अफ़सर अगर अपने काम के प्रति इतने ही गंभीर होते तो दिल्ली में आग लगने की घटनाओं से इतने बेगुनाह लोगों की मौत कभी न होती जो शुक्रवार को मुंडका मेट्रो स्टेशन के नजदीक वाली बिल्डिंग में हुई है. बेशक फायर डिपार्टमेंट दिल्ली सरकार के अधीन है लेकिन किसी भी आवासीय या व्यवसायिक इमारत का नक्शा एमसीडी ही पास करती है. बहुमंजिला और व्यवसायिक इमारतों के मामले में पहले ये देखा जाता है कि उसके मालिक ने दमकल विभाग से लाइसेंस लिया भी है कि नहीं.
लेकिन दिल्ली नें पिछले कई दशक से भ्रष्टाचार का ये खेल खुलेआम चल रहा है कि जिस बिल्डिंग को व्यवसायिक काम के लिए इस्तेमाल किया जाना है उसका बिल्डर भी दमकल विभाग से बगैर कोई NOC लिए एमसीडी अफसरों को पैसों की भेंट चढ़ाकर अपना नक्शा पास करा लेता है. दिल्ली में बिल्डर माफिया, पुलिस और प्रशासन का ये गठजोड़ आज से नहीं बल्कि 90 के दशक की शुरुआत से ही चलता आ रहा है. उसका ही नतीजा है कि देश-दुनिया का सबसे ऐतिहासिक स्थल समझा जाने वाले चांदनी चौक का पूरा इलाका अब रिहायशी नहीं बचा. हर चप्पे पर आपको सिर्फ दुकानें ही नजर आएंगी और शीशगंज गुरद्वारे से आगे बढ़ते ही अगर आप सबसे छोटी-सी दुकान की कीमत पूछेंगे तो हैरान रह जाएंगे और सोचेंगे कि इतने पैसों में तो एक साथ चार फ्लैट खरीद सकते हैं. ये सब उसी बिल्डर माफिया की देन है जो पहले सस्ती कीमत पर मकान खरीदता है और फिर वहां मार्किट बनाकर हर दुकान को बेचने का रेट तय करता है. उसे इससे कोई मतलब नहीं कि वहां आग से बचाव के इंतजाम हैं या नहीं क्योंकि वह उन तीनों विभागों के अफसरों को मोटी रकम देकर इतना खुश कर देता है कि कोई छोटा कारिंदा वहां फटक भी नहीं सकता.
हालांकि मुंडका की बिल्डिंग में लगी आग में जान गंवाने वाले लोगों की मौत के बाद पुलिस ने इसके दोनों मालिकों को गिरफ्तार कर लिया है. लेकिन ये सच तो जांच के बाद ही सामने आएगा कि उनके पास दमकल विभाग का लाइसेंस था भी या नहीं. शुरुआती ख़बरों से पता चलता है कि वो एक वेयर हाउस गोदाम था जहां कई सारे पुरूष-महिलाएं काम करते हैं. लेकिन हैरानी की बात ये है कि उस बिल्डिंग में कोई इमरजेंसी एग्जिट गेट भी नहीं था. अगर बिल्डिंग मालिक के पास फायर ब्रिगेड का एनओसी था तो फिर ये माना जायेगा कि वहां लगे अग्निशमन उपकरण या तो काम नहीं कर रहे थे या फिर उनकी मियाद ही खत्म हो चुकी होगी. इसलिए कि अगर वक़्त रहते उनका इस्तेमाल किया गया होता तो वह आग पहली मंजिल से तीसरी मंजिल तक पहुंचने में इतना भयावह रुप नहीं ले पाती. लिहाजा, इन मौतों के लिए जितने दोषी उस बिल्डिंग के मालिक हैं, उससे भी ज्यादा कसूरवार एमसीडी के वे अफसर भी हैं जिन्होंने फायर ब्रिगेड से एनओसी मिले बगैर इस कुख्यात इमारत के नक्शे को अपनी मंजूरी दी.
केजरीवाल सरकार और एमसीडी भले ही अब एक-दूसरे पर दोषारोपण करते रहें लेकिन इस अग्निकांड ने सरकार के दमकल विभाग की लापरवाही की भी पोल खोल दी है. स्थानीय निवासियों के मुताबिक फायर ब्रिगेड के मौके पर पहुंचने से काफी देर पहले ही ग्राम सभा की मार्फत उन्होंने क्रेन मंगवाई और तकरीबन सौ लोगों को उस बिल्डिंग से सुरक्षित बाहर निकाला. जरा सोचिए कि उन्होंने सही वक़्त पर ये मदद उपलब्ध न कराई होती तो इस अग्निकांड में मरने वाले बेगुनाह लोगों का आंकड़ा कहां पहुंच गया होता.
वैसे बता दें कि राजधानी में दिल दहलाने वाले अग्निकांड की ये कोई पहली घटना नहीं है. 25 साल पहले हुए उपहार अग्निकांड को तो दिल्ली वाले आज तक नहीं भूल पाये हैं. दक्षिण दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा हॉल में 'बॉर्डर' फिल्म देखने के दौरान लगी भीषण आग में 59 लोगों की जान चली गई थी. यह घटना 13 जून, 1997 को हुई थी. सिनेमाघर के ट्रांसफॉर्मर रूम में शो के दौरान ही अचानक आग लग गई थी जो तेजी से हॉल के अन्य हिस्सों में फैल गई थी. घटना की जांच के दौरान पता चला था कि सिनेमाघर में आग से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं थे. उसके बाद अगर याद करें तो सवा तीन साल पहले करोलबाग के होटल में लगी भीषण आग को भी शायद ही कोई भूला हो. करोलबाग में गुरुद्वारा रोड स्थित होटल अर्पित पैलेस में 12 फरवरी 2019 को आग लग गई थी. आग लगने की इस घटना में करीब 17 लोगों की मौत हो गई थी. उसमें से कुछ तो आग से बचने के लिए होटल की तीसरी मंजिल से कूद गए थे लेकिन वे भी बच नहीं पाए.
इसलिये बड़ा सवाल ये है कि ऐसे अग्निकांड की घटनाओं को रोकने के लिए उस बिल्डिंग के मालिक के साथ ही उन अफसरों की भी तत्काल गिरफ्तारी क्यों नहीं होनी चाहिये जिन्होंने पैसों के लालच में आकर उसे इंसानों का कसाई बनने का लाइसेंस दे डाला?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)