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ठेकेदारी से बाहर निकल कर ही खड़ा हो सकता है दलित अस्मिता का संघर्ष
भारत में दलित समाज अगर कल तक दक्खिन टोले में सिसक रहा था तो आज भी वो पूरब में हंसता-खिलखिलाता समाज नहीं गढ़ पाया है. मतलब तब सिसक रहा था अब भी हाशिए पर खड़ा पूरब टोले की ओर टकटकी लगाए देख रहा है.
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व्यालोक पाठक
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