केरल की नई कैबिनेट में रॉकस्टार हेल्थ मिनिस्टर कहलाने वाली केके शैलजा को जगह नहीं मिली. किसी ने कहा, जब अच्छा प्रदर्शन करने वाली महिला मंत्री को दूसरा मौका नहीं मिलता तो आप जेंडर जस्टिस का दावा कैसे कर सकते हैं? यह उम्मीद नहीं की जा रही थी कि केके शैलजा को दरकिनार कर दिया जाएगा. केरल में कोविड 19 ही नहीं, केके शैलजा ने निपा जैसे वायरस को भी बखूबी काबू किया था.
स्वास्थ्य क्षेत्र में उनके किए गए कामों की दुनिया भर में तारीफ हुई है. बीबीसी, द न्यूयॉर्क टाइम्स, गार्डियन जैसे अखबारों में उनकी तारीफों के पुल बांधे गए. यूके के मैगजीन प्रॉस्पेक्ट ने उन्हें कोविड-19 एज के टॉप थिंकर्स में शुमार किया था. इसकी वजह यह है कि उन्होंने केरल में पब्लिक हेल्थ सिस्टम को बेहतरीन बनाया है. इससे कोविड-19 महामारी से लड़ना आसान हुआ है. एक समय तो वह था, जब उन्हें केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का उत्तराधिकारी माना जाने लगा था.
बस, इसी से समझा जा सकता है कि शैलजा के पर कैसे कतरे गए हैं. जाहिर सी बात है कि मुख्यमंत्री उन्हें अपने सामने टिकने नहीं दे सकते थे. एक नया नेतृत्व, वह भी औरत के रूप में. केरल का समाज तमाम प्रगतिशीलता के बावजूद बाकी दूसरे राज्यों जैसे ही पितृसत्ता का पोषण करता रहा है. सबरीमाला वाले प्रकरण ने यह साबित भी किया है. मलयालम फिल्मों के रसियाद ग्रेट इंडियन किचन और कुंबलंगी नाइट्स जैसी फिल्मों में केरल के समाज परिवार को देख चुके हैं. केरल का ही हादिया मामला बताता है कि औरतों के फैसलों पर समाज कितने सवाल खड़े कर सकता है. ऐसे में किसी महिला नेता का बढ़ता कद खतरा महसूस हो सकता था.
क्या सभी पुरुष एक सरीखे हैं- वाद चाहे कोई भी हो
आप कह सकते हैं, कि वाद चाहे कोई भी हो, पुरुष आखिर पुरुष ही होता है. इसके बावजूद कि केरल में माकपा ने तय किया था कि नई कैबिनेट में सभी नए चेहरे होंगे, केके शैलजा को एक और मौका दिया जा सकता था. आखिर, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन भी तो दूसरी बार उसी कैबिनेट का हिस्सा हैं. वह तो मुख्यमंत्री ही हैं. ऐसे में केके शैलजा को अच्छे काम का इनाम मिलना चाहिए था. लेकिन विजयन ने खुद तो कैबिनेट में जगह पा ली, शैलजा को किनारे लगा दिया. इसी से यह सवाल बार बार खड़ा होता है कि क्या औरत होने के नाते शैलजा को दूसरा मौका नहीं मिला? और पुरुष होने के नाते विजयन ने खुद यह मौका झपट लिया? क्या विचारधारा या सिद्धांत ऐसे मौकों पर धरे के धरे रह जाते हैं? प्रगतिशीलता कहीं दबी रह जाती है, और पौरुष का अहम आगे आ जाता है.
प्रभावी पदों पर प्रतिनिधित्व कम
ऐसा राजनीति में आम है.लोकसभा में इस समय केरल से सिर्फ एक महिला सांसद है, कांग्रेस की राम्या हरिदास. इस विधानसभा चुनावों में 140 विजेता विधायकों में से सिर्फ 11 महिलाएं हैं. हैरानी की बात यह है कि केरल में पंचायतों, म्यूनिसिपैलिटी और कॉरपोरेशंस में आधे से अधिक महिला सदस्य हैं. लेकिन विधानसभा और संसद के चुनावों में स्थिति पलट जाती है. चूंकि महिलाओं को चुनावों टिकट मिलता ही नहीं, तो जीतने का सवाल ही नहीं उठता.
इसमें कोई शक नहीं कि केरल जैसे राज्य में महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काफी काम किया गया. वाम मोर्चा महिलाओं की स्थिति सुधारने की बात भले करता हो लेकिन उनकी राजनीति में भी पुरुषों का ही बोलबाला है. प्रभावी और फैसला लेने वाले पदों पर औरतों की संख्या कम रही है. पोलित ब्यूरो में वृंदा करात के अलावा कोई बड़ा नाम नहीं रहा.
पश्चिम बंगाल मे 34 साल सत्ता में रहने वाली कम्युनिस्ट सरकार में 2001 में 33 कैबिनेट सदस्यों में से सिर्फ दो महिलाएं थीं और 2006 में सिर्फ एक. केरल की पिछली वाम मोर्चा सरकार में 19 कैबिनेट सदस्यों में से सिर्फ दो महिलाएं थीं, और इनमें से एक थीं केके शैलजा. इसके अलावा वाम मोर्चा की किसी सरकार में कोई महिला मुख्यमंत्री या गृह मंत्री भी नहीं रहीं. सोचने की बात यह है कि महिला सशक्तीकरण के लिए अगर महिला काम नहीं करेगी, तो आप प्रतिनिधित्व की बात कैसे कर सकते हैं.
केके शैलजा को हटाकर गलत दिशा में कदम बढ़ाया गया है
यहां मिसाल तब कायम होती, जब केके शैलजा को नई सिरे से, नई जिम्मेदारी दी जाती है. विजयन एक नया कदम उठा सकते थे- कि शैलजा को अपनी जगह मुख्यमंत्री बना देते. आखिर हाल के विधानसभा चुनावों में शैलजा ने मत्तानूर विधानसभा सीट को 58,812 वोटों के अंतर से जीता था. यह पिनराई विजयन के जीत के अंतर से ज्यादा था. धरमादम विधानसभा क्षेत्र पर विजयन का जीत का अंतर 48,051 वोट थे. अगर ऐसा किया जाता तो ममता बैनर्जी के बाद देश को दूसरी महिला मुख्यमंत्री मिल जाती. आखिर शैलजा के काम के नाम पर माकपा ने केरल में काफी वोट बटोरे हैं.
लेकिन अगर विजयन इतना बड़ा दिल नहीं रखते तो भी शैलजा को दूसरा मौका देकर पार्टी को फायदा पहुंचा सकते थे. शैलजा में राष्ट्रीय स्तर का नेतृत्व संभालने की भी क्षमता है. इस समय पश्चिम बंगाल में पार्टी के पैर उखड़ चुके हैं और वह त्रिपुरा में लगातार संघर्ष कर रही है. ऐसे में उनके काम को दूसरे राज्यों में प्रचारित करके, पार्टी अपनी खोई शोहरत हासिल कर सकती थी. कोविड जैसी महामारी ने बताया है कि पूरे देश में हेल्थ सेक्टर पर खास ध्यान दिए जाने की जरूरत है. शैलजा ने हेल्थ सेक्टर में बेहतरीन काम किया है. क्या इसका लाभ पार्टी नहीं उठा सकती थी?
अब पार्टी व्हिप बनाकर केके शैलजा की लकीर छोटी कर दी गई है.मलयाली इतिहासकार और फेमिनिस्ट देविका जे ने एक आर्टिकल में कहा है कि विजयन को इनसिक्योर मैसकुलैनिटी यानी असुरक्षित पुरुषत्व की मिसाल कायम नहीं करनी चाहिए. केरल में ऐसे शैतान पहले ही बहुत से हैं. और दूसरी औरतों को मौका देने के नाम पर एक अनुभवी महिला को शीर्ष तक पहुंचने से रोकना भी नहीं चाहिए. यह ठीक वैसा ही है, जैसे पानी भरा घड़ा कुएं से घर तो ले आए लेकिन दहलीज पर ही उसे गिराकर तोड़ दिया. केके शैलजा की वापसी, वाम मोर्चे पर महिलाओं के यकीन के लिए जरूरी है, जिसने बड़े पैमाने पर केरल में एलडीएफ की वापसी का रास्ता खोला है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)