कोरोना वायरस की विलक्षणता और असाधारणता जिसने दुनिया को झकझोर दिया
वर्तमान में दुनिया में कोरोना वायरस के चलते जो कुछ भी देखा जा रहा है वो पिछले एक सौ सालों के हमारे अनुभव में विशिष्ट और पूरी तरह से विलक्षण है.
कोरोना वायरस की महामारी के चलते विश्व में जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उथलपुथल मची है वो ऐतिहासिक है. कोविड-19 जो दुनिया को अपने चपेट में ले चुका है वो आधुनिक इतिहास में या बेहतर तरीके से कहें तो पिछले 100 सालों में अभूतपूर्व है. इससे पहले कि हम इसके असर को समझना शुरू कर पाते और यहां तक कि हम अभी भी इसके प्रभाव को समझने की कोशिश कर रहे हैं इतना तो साफ हो गया है कि इसने हमारे आने वाले निकट भविष्य पर इतनी गहरी छाप छोड़ दी है क्योंकि किसी भी जीवित व्यक्ति को अपने अनुभव में ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिला था.
5500 से कुछ ही कम लोग कोरोना वायरस के चलते मारे जा चुके हैं और इनमें से सिर्फ 3100 चीन के हुबेई प्रांत में मारे गए. अब तक के समय में सैकड़ों या शायद कुछ हजार युद्ध या नरसंहार, नागरिक संघर्ष, अपमान, महामारी, सूखा, भूकंप और अन्य 'प्राकृतिक आपदाएं' जो अब तक हुई हैं उनमें मृत्यु दर के आंकड़े इतने भयावह रहे हैं. प्रथम विश्व युद्ध में लगभग 4 करोड़ लोगों की मृत्यु होने का अनुमान है. इसी तरह दूसरे विश्व युद्ध में करीब 10 करोड़ लोगों के मारे जाने की बात कही जाती रही है जिनमें कि सेना के लोग, सामान्य नागरिक के साथ वो लोग भी शामिल थे जो युद्ध की वजह से पैदा हुई भूख, अकाल और भुखमरी से पीड़ित होकर मारे गए. इस तरह के आंकड़ों को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस के कारण मारे गए लोगों का जिक्र करना शायद ज्यादा हो जाए. फिर भी, यह तर्क करना जरूरी है कि वर्तमान में दुनिया में कोरोना वायरस के चलते जो कुछ भी देखा जा रहा है वो पिछले एक सौ सालों के हमारे अनुभव में विशिष्ट और पूरी तरह से विलक्षण है.
कोरोना वायरस एक केस की तरह क्यों देखा जाना चाहिए? यह कहना ज्यादा नहीं होगा कि किसी ने कभी किसी चीज की उम्मीद नहीं की थी कि कोरोनोवायरस हम लोगों पर वसंत की तरह छा जाएगा और वस्तुतः कुछ स्थानों पर रातों रात पूरे सामाजिक अस्तित्व को बदल देगा. 1994 में एक निडर पत्रकार और शोधकर्ता, लॉरी गैरेट ने पुस्तक प्रकाशित की जिसका शीर्षक, ''न्यूली इमर्जिंग डिजीज इन ए वर्ल्ड आउट ऑफ बैलेंस'' था. एड्स के दुनिया को हिलाने के दौरान और पहले व बाद में इस किताब के जरिए गैरेट ने तर्क दिया और दुनिया को इस तथ्य के प्रति जागरूक किया कि हमारा युद्ध किसके साथ है. रोगाणुओं का संसार अथक है, और यह कहना कि आधुनिक विज्ञान ने संक्रामक रोगों पर विजय प्राप्त की है ये एक कल्पना है. गैरेट ने तर्क दिया कि हरेक ये संभावना हमारे आसपास पसरी हुई थी कि कई नए और अधिक घातक रोग आगे चलकर सामने आएंगे जिनसे उभरना मुश्किल होगा. जब तक कि मनुष्य एक ऐसा दृष्टिकोण नहीं अपनाता जो गतिशीलता के प्रति अधिक ध्यान रखने वाला हो इसका उपाय मिलना कठिन है. दरअसल होमो सेपियन्स और माइक्रोब्स की दुनिया के बीच कई ऐसे तथ्य हैं जो उनके अंदरूनी और बाहरी दोनों शरीरों को प्रभावित करते हैं.
अपने किताब में हार्वर्ड एड्स इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और महामारी विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य के प्रोफेसर जोनाथन एम मन ने सुझाव दिया कि आधुनिक समय में महामारी के संक्रामक रोगों के तौर पर एड्स बड़े पैमाने पर उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है. अगर हवाई यात्रा एक अरब से अधिक लोगों के लिए संभव हो चुकी है तो संक्रामक एजेंटों को भी नए रूप में और नई परिस्थितियों में कहीं ज्यादा आसानी से फैलने का मौका मिल जाता है. अगर एड्स हमें एक सबक सिखाता है तो ये कहना ठीक होगा कि जोनाथन मन ने करीब 25 साल पहले इसके खतरे के बारे में आगाह कर दिया था और ये भी बता दिया था कि अगर दुनिया के किसी इलाके में स्वास्थ्य समस्या होती है तो ये जल्द ही दुनिया के कई भागों में और सबके लिए खतरा बन सकती है.
गैरैट एंड मन के अलावा शायद मुठ्ठी भर लोग दुनिया में यहां-वहां होंगे जो पूर्वज्ञान रखने वाले होंगे इसके बावजूद हम सब मानवीय अनुभवों के आधार पर देख रहे हैं कि वैश्विक घबराहट और आपदा का माहौल छाया हुआ है. कोरोना वायरस के चलते रिपोर्ट की गई पहली मौत हुबेई प्रांत में हुई जिसकी 10 जनवरी 2020 को जनसंख्या 6 करोड़ थी. इसके अलावा चीन के ही वुहान प्रांत में सभी ट्रांसपोर्टेशन को 23 जनवरी से बंद कर दिया गया और इसको बाकायदा अगले दिन से अच्छी तरह लागू कर दिया गया. इस दिन के खत्म होते होते पूरे इलाके को एक तरह से सील कर दिया गया. इसके बाद 13 फरवरी को और 20 फरवरी को सभी गैर-जरूरी सेवाओं को बंद किया गया जिसमें स्कूल भी शामिल थे. और एक पूरा घेरा इस एक प्रांत के आसपास रखा गया था, जिसमें इटली से आए कई लोग थे और ये सबसे बड़े प्रकोप का स्थल बन गया. बता दें कि वुहान हुबेई प्रांत के सबसे बड़े शहरों में से है और इसकी 1.1 करोड़ लोग यहां रहते हैं
इटली में जो कुछ भी हुआ है, वह कम नाटकीय नहीं है. जनवरी के अंत में इटली में सिर्फ 3 कोरोना वायरस के केस की पहचान हुई थी और इनमें से दो चीन के पर्यटक थे. मरीजों को आइसोलेट किया गया और इटली ने चीन से आने वाली आधी फ्लाइट्स को हटा दिया. जैसा कि इटली के प्रधानमंत्री ने दुनिया को 31 जनवरी को बताया कि यूरोप में सबसे कठोर तरीके इस वायरस को रोकने के लिए इटली द्वारा सिस्टम में लाए गए हैं. हालांकि तब तक वायरस अपना काम कर चुका था. बीमारी धीरे-धीरे लोगों को अपनी चपेट में ले रही थी बिना चेतावनी दिए, बिना पहचान में आए हुए और बिना चेहरे के ये बीमारी लोगों को गिरफ्त में ले रही थी. ये फरवरी के तीसरे हफ्ते तक चला और उस समय तक सिर्फ मुट्ठीभर केस सामने आए थे लेकिन उसके बाद कुछ ही दिनों के भीतर संक्रमित लोगों की संख्या आसमान छूने लगी.
इटली के बारे में जैसा कि कई लोग भूल जाते हैं कि वो बूढे़ लोगों का शहर है, इसमें प्रजनन दर नकारात्मक है और जनसंख्या घटती जा रही है. कोरोनोवायरस की चपेट में उनमें से सबसे अतिसंवेदनशील बुजुर्ग आए हैं और संक्रमित होने की वजह से जो जानें गई हैं उनमें भी सबसे ज्यादा बुजुर्ग ही हैं. इटली में अब 17,000 से ज्यादा पुख्ता कोरोना वायरस के केस हैं और करीब 1200 से ज्यादा लोगों की यहां मौत हो चुकी है. इसके चलते सबसे पहले लैम्बॉर्डी के उत्तरी क्षेत्र को गंभीर पाबंदियों के अंतर्गत लाया गया और इसके बाद 9 मार्च कोस पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया गया जिसके बाद कुछ जरूरी सेवाओं जैसे फार्मेसी और सुपरमार्केट को छोड़कर बाकी सबकुछ बंद कर दिया गया.
इटली की मशहूर सड़कें और फेमस पिज्जा की दुकानें अब वीरान हैं. हालांकि दुनिया के सबसे मशहूर पर्यटन स्थलों में से एक इटली अब दुनिया के लिए संकेत स्थापित करता दिख रहा है. पिछले कुछ दिनों में करीब 20 देशों में यूनिवर्सिटीज, स्कूल, एम्यूजमेंट पार्क और म्यूजियम के साथ साथ पब्लिक गैदरिंग्स को भी बंद किया जा रहा है. कई मामलों में तो इसे एक महीने से भी ज्यादा समय के लिए शटडाउन किया गया है. ये पूरी तरह संभव है कि आगे आने वाले दिनों में अमेरिका, यूरोप, भारत, खाड़ी देशों और कई अन्य देशों के कुछ अहम शहरों में लॉकडाउन जैसी स्थिति देखी जााएगी. जैसे कि स्कूल, यूनिवर्सिटीज के साथ साथ पब्लिक और निजी संस्थानों को बंद किया जा रहा है ठीक उसी तरह से आर्ट गैलरियों, सरकारी ऑफिसेज आदि को भी बंद किया जाएगा.
इसी स्थिति में कोविड-19 की विलक्षणता देखने को मिल रही है क्योंकि लड़ाईयों के चरम के दौर के दौरान, आपदाओं और राष्ट्रीय इमरजेंसी के दौरान भी स्कूल और यूनिवर्सिटीज मुश्किल से इतने लंबे समय के लिए बंद किए जाते हैं. हमारा अंतर्मन कहता है कि ऐसे आपदा के समय में हम सबको समुदायों में एकजुटता दिखाने के लिए मिलकर सामने आना चाहिए लेकिन मौजूदा वायरस की स्थिति ये मांग करती है कि इस समय गंभीर आइसोलेशन को अपनाया जाए और सामाजिक कार्यों से दूर रहा जाए.
अगर मैंने कोविड-19 को किसी जीवित व्यक्ति के अनुभव में न देखे जाने की बात कही है तो वो इसलिए कि साल 1918-19 में जो महामारी फैली थी जिसे भ्रामक रूप से ''स्पेनिश इन्फ्लुएंजा" का उपनाम दिया गया था उसके बारे में स्पष्ट और विश्वसनीय जानकारी सामने नहीं आई थी. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि लड़ाई के दौरान इसका असर नहीं देखा गया. उस समय ऐसा कहा गया था कि इस महामारी ने 20 मिलियन लोगों की जान ली है. हालांकि रिसर्चर्स ने पिछले दो दशकों में ऐसा बताया है कि इसके चलते मरने वाले लोगों की संख्या 50- से 100 मिलियन के बीच रही है. अगर ऐसा है तो इस महामारी ने प्रथम विश्व युद्ध से ज्यादा लोगों की जान ली है.
और जहां तक इसके भारत में असर करने की बात है तो इसने पहले से ही गरीबी, बीमारी, खरोब पोषण और मेडिकल सुविधाओं के अभाव को झेल रहे इस राष्ट्र को काफी नुकसान पहुंचाया. अनुमान लगाया जाता है कि इस फ्लू से कुछ 18 मिलियन भारतीय लोगों की मौत हो गई थी.
1918-19 के इन्फ्लूएंजा महामारी को सच माना जाए तो कोविड -19 के तहत होने वाली मृत्यु दर इसके आंकड़ों से काफी दूर है. आधुनिक दवाओं ने निश्चित तौर पर काफी तरक्की कर ली है और सदी के दौरान दवाओं के क्षेत्र में सुधार हुआ है. हालांकि इसके बावजूद अभी तक ये समझ आ चुका है कि ये खतरनाक वायरस केवल सामाजिक आइसोलेशन और क्वारंटीन के द्वारा ही फैलने से रोका जा जा सकता है. जैसा कि नोरफोक के सांसद हॉलकोम्ब इनगेल्बि ने अपने पुत्र को 26 अक्टूबर 1918 को पत्र लिखा था कि अगर घर के किसी सदस्य को फ्लू हो जाए तो मरीज को आइसोलेट कर दो, खाना दरवाजे के जरिए दो. साफ है कि यह इलाज करने के लिए एक तरीका उस समय भी था और आज भी इस घातक बीमारी को रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
गंभीरतापूर्वक देखा जाए तो 2 लाख लोग ब्रिटेन में मारे गए, वहीं अगर अमेरिका को देखें तो वहां मृतकों की संख्या इससे तीन गुना ज्यादा थी. लोकल अथॉरिटीज को सर्जन जनरल ने कड़ी तरह से सुझाव दिया था कि अगर किसी समुदाय को महामारी से ग्रसित होने का डर है तो सभी सामूहिक मिलन समारोहों को रोक देना चाहिए. अमेरिका के तीसरे सबसे बड़ी शहर फिलाडेल्फिया के मेयर ने इस सुझाव को अनदेखा कर दिया था. हालांकि चौथे सबसे बड़े शहर सेंट लुईस ने स्कूल, कैबरे. लॉज, सोसाइटीज, सार्वजनिक अंतिम संस्कार, ओपन एयर बैठकों और डांस हॉल को अगले आदेश तक बंद कर दिया था. इसके असर से ही सेंट लुईस इस महामारी से काफी हद तक बचा और जब बीमारी चरण पर थी तो सेंट लुईस की तुलना में फिलाडेल्फिया में मृत्यु दर पांच गुना अधिक थी.
साल 1918-19 में आई इन्फ्लूएंजा की महामारी में अभी भी कुछ रहस्य छुपे हुए हैं. हम इसी तरह कोविड-19 के बारे में तुलनात्मक रूप से बहुत कम जानते हैं, हालांकि चीनी वैज्ञानिकों ने जनवरी के मध्य तक दुनिया के साथ अपने जीनोम अनुक्रम को साझा किया. लेकिन ऐसा लगता है कि इसे रोकने के लिए सामाजिक अलगाव के प्रोटोकॉल को मानना ही होगा और क्वारंटीन और आइसोलेशन ही इसके प्रसार को रोकने के लिए महत्वपूर्ण होंगे और अंत में इसे नियंत्रण में लाया जा सकता है.
कोरोना वायरस को कम आंकना बेहद आसान काम है जैसा कि अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा कि यह कुछ ऐसा है जिसे चमत्कारिक ढंग से गायब कर दिया जाएगा. लेकिन यह भी हो सकता है कि लाखों लोग जो संक्रमित हो सकते हैं और जो मर सकते हैं, उनके बारे में अनदेखी करना इस महामारी को और बढ़ा सकता है. भले ही हम इस तथ्य को अस्वीकार करने के इच्छुक हैं, लेकिन ये साफ तौर पर इशारा करता है कि कोरोनोवायरस उन महत्वपूर्ण सवालों को सामने लाता है जो चारों ओर घूम रहे हैं और उन्हें अधिक खुले तौर पर संबोधित किया जाना चाहिए.
ये तीन सवाल हैं कि ''सोशल आइसोलेशन" के प्रभाव क्या हैं? गरीब और कम वेतन वाले श्रमिकों पर वायरस का क्या असर होगा? "बंद" सीमाओं का देशों पर क्या असर होगा? सामाजिक नियंत्रण, वैश्वीकरण और लोगों के सामाजिक जीवन को नियंत्रण करने के मॉडल के क्या प्रभाव होंगे, जाहिर है कि इन सब सवालों का हमें और अन्य लोगों को भी अब नए सिरे से सामना करना होगा.
विनय लाल UCLA में इतिहास के प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं. साथ ही वो लेखक, ब्लॉगर और साहित्यिक आलोचक भी हैं.
वेबसाइटः http://www.history.ucla.edu/
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)