20वीं शताब्दी के प्रारंभ तक कलकत्ता क्रांतिकारियों का एक बड़ा गढ़ बन चुका था. लार्ड कर्जन ने 1905 में बंगाल विभाजन करके इसपे क़ाबू करने की योजना बनायी, जिसे देशभक्तों ने विफल कर दिया, लेकिन धर्म के आधार पर एक फांक उभर आयी थी. 1947 में विभाजन के समय बंगाल के मुस्लिम बहुल इलाक़े नए देश पाकिस्तान का भाग बने, यही पूर्वी पाकिस्तान कहलाया. 


यह समझना बहुत जरूरी है कि पूर्वी पाकिस्तान के बाशिंदे अपनी दो गहरी पहचान से कभी समझौता नहीं करते. एक उनका मुस्लिम होना और उससे अधिक महत्वपूर्ण उनका बंगाली होना. यही बंगाली पहचान और पाकिस्तान की अलोकतांत्रिक नीति और क्रूर तरीकों ने इस पूर्वी पाकिस्तान को 1971 में एक नए राष्ट्र बांग्लादेश के बनने में प्रमुख कारण बने. 


बांग्लादेश में राजनीति संकट


आज बांग्लादेश के 2024 के राजनीतिक संकट की जड़ें इतिहास में हैं. यह बहुत स्वाभाविक था कि जब 1971 में बांग्लादेश के किए पूर्वी पाकिस्तान में संघर्ष प्रारंभ हुआ तो नागरिकों का बड़ा तबका तो एक स्वतंत्र देश के लिए इसमें जुड़ा, लेकिन एक छोटा लेकिन शक्तिशाली तबका ऐसा भी था जो पाकिस्तान के भीतर ही संतुष्ट था. बांग्लादेश के बनने के बाद भी वे अल्पसंख्यक ही सही घरेलू राजनीति में महत्वपूर्ण बने रहे. शेख हसीना, एक लंबे समय से उसी बहुसंख्यक तबके में लोकप्रिय रही हैं और उनसे असंतुष्ट तथा वे लोग जो परंपरा से उस अल्पसंख्यक तबके से थे, वही कमोबेश विपक्ष बना.


स्वतंत्रता सेनानी के परिवार को सरकारी नौकरी में 30% आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बना क्योंकि इसका सीधा फ़ायदा शेख़ हसीना के परम्परागत वोटर्स को मिल रहा था. इससे छात्रों में असंतोष बढ़ता ही जा रहा था. न्यायालय ने इस आरक्षण को घटाकर 5% कर तो दिया लेकिन तब तक शेख़ हसीना अपने शासन के तरीक़ों से ही इतनी अलोकप्रिय हो चुकी थीं कि आंदोलनकारी इतने से संतुष्ट नहीं थे.


ऐसे हालातों के पीछे कौन


क्या इन सबके पीछे चीन है? आजकल के विश्व राजनीति में लगभग अधिकांश देश, अधिकांश देशों से कई स्तरों पर जुड़े होते हैं, लेकिन यह बिल्कुल तथ्य है कि दक्षिण एशिया में सबसे सशक्त समझे जाने वाले नागरिक समाज के तगड़े समर्थन के बिना ऐसे आंदोलन संभव नहीं हैं. हुआ यही है कि उस अल्पसंख्यक तबके को शेख हसीना के कुशासन (मंहगाई, इन्फ्लेशन, बेरोजगारी आदि) की वजह से अधिकांश बहुसंख्यक तबके का भी साथ मिल गया. मुस्लिम से अधिक बंगाली पहचान ने इस आंदोलन में बांग्लादेशियों को एकजुट कर दिया है.


भारत के लिए चुनौतियां हैं क्योंकि शेख़ हसीना सरकार सामान्यतया भारत की पक्षधर रही है, लेकिन आंदोलन के कारणों कों समझते हुए यह कहा जा सकता है कि बांग्लादेश में बनने वाली कोई अगली लोकतांत्रिक सरकार भारत से अपने संबंधों में सततता बनाए रखेगी. इसलिए भारत सतर्क रहते हुए ठीक वही स्टैंड रखना चाहिए जो यूके, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने बनाया है और वो है बांग्लादेश में हमेशा लोकतांत्रिक शक्तियों और लोकतांत्रिक सरकार को समर्थन देना.


क्या होगा इसके आगे 


अब सवाल ये है कि अब बांग्लादेश में क्या होगा ? सेना ने अंतरिम सरकार बनाने की बात की है. बांग्लादेश में सेना का शासन होगा या अगर हुआ तो लंबा होगा, इसपर विश्वास करने के कारण पर्याप्त नहीं हैं. बांग्लादेशी सेना, संयुक्त राष्ट्र के पीसकीपिंग मिशन में सर्वाधिक योग देने वाले राष्ट्रों में हैं, एक बड़ा हिस्सा धन का इस विदेशी स्रोत से बांग्लादेश को प्राप्त होता है. 


इसलिए सेना ऐसा कोई कदम उठाने से हिचकेगी जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उसे नुकसान हो. वैसे होने को कुछ भी हो सकता है, यह समय दक्षिण एशिया ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिए ही बहुत ही चुनौतीपूर्ण है. 


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]