New Delhi Railway Station Stampede: नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर शनिवार (15 फरवरी) की रात भगदड़ मच गयी. दरअसल, प्रयागराज के महाकुंभ में जाने के लिए स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 13 और 14 पर इतनी भीड़ बढ़ गयी कि भगदड़ में दम घुटने से 18 लोगों की मौत हो गयी. ये सरकारी आंकड़े हैं, जो अभी और अधिक बढ़ सकते हैं. दुर्घटना के पीछे एक बड़ा कारण अंतिम समय पर प्रयागराज जानेवाली ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदलना, भीड़ के समुचित प्रबंधन के लिए न तो पुलिस, न ही बड़े अधिकारियों का मौजूद होना है. सप्ताहांत की वजह से कुंभ के अंतिम चरण में स्नान के लिए जानेवाले लोगों की भीड़ लगातार बढ़ती रही और अंत समय में मची अफरातफरी की वजह से आखिर यह दर्दनाक हादसा हुआ. 


रेलवे की लापरवाही, रेलमंत्री लें जिम्मेदारी


इस हादसे में गयी जानों के लिए आखिर दोषी किसको ठहराया जाए? प्रथमद्रष्ट्या और मूलतः रेलमंत्रालय और उसकी अक्षमता ही इसकी जिम्मेदार है. रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव को इसकी जिम्मेदारी लेकर तत्काल इस्तीफा दे देना चाहिए. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक स्टेशन पर न तो उपयुक्त संख्या में पुलिस बल मौजूद थे, ना ही रेलवे के अधिकारी, जबकि सप्ताहांत और कुंभ के अंतिम चरण को देखते हुए भीड़ शुक्रवार की शाम से ही लगातार स्टेशन पर बढ़ती जा रही थी. हमने सालाना छठ के मौके पर बिहारियों को भी इसी तरह हादसे का शिकार होते देखा है, हालांकि हम उसके इतने आदी हो चुके हैं कि उस पर ध्यान भी नहीं जाता, जबकि ऐसा नहीं है कि छठ पर होनेवाले हादसे बंद हो गए हैं. वो हरेक साल हो ही रहे हैं, लेकिन अब हम लोगों ने ध्यान देना बंद कर दिया है. वैसे भी, इस सरकार ने रेलवे के सौंदर्यीकरण, वंदे भारत जैसी ट्रेनों को चलाने, बुलेट को भारत में लाने, रेलवे के विद्युतीकरण, पटरियों के दोहरीकरण, नयी ट्रेनों के लाने इत्यादि काम चाहे जितने भी किए हों, लेकिन रेलवे की सुरक्षा पर सबसे कम काम किया है.




अभी दो दिनों पहले ही स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस पर जिस तरह से तोड़फोड़ हुई, (वह भी प्रयाग की भीड़ की वजह से ही हुआ, ऐसा कहा जा रहा है), जिस तरह एक खास समुदाय के लोगों ने जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन पर अराजकता मचाई, वह सुरक्षा के लिहाज से बहुत बड़ी घटना थी. रेलमंत्री को इन सभी का संज्ञान लेकर सबसे पहले तो उन अधिकारियों की गरदन नापनी चाहिए, जिन्होंने आखिरी वक्त पर ट्रेन का प्लेटफॉर्म बदला, दूसरे पुलिस के उन आला अफसरों के ऊपर कार्रवाई हो, जो गायब थे और अंत में खुद मंत्री महोदय को अपना इस्तीफा तो कम से कम दे ही देना चाहिए. 


एक नहीं, कई आयाम हैं इस दुर्घटना के


हादसे के बाद जैसी की रवायत है, लोग कौए के पीछे दौड़ रहे हैं, कान कोई नहीं देख रहा है. कुछ लोग दिल्ली में हुए हादसे के लिए प्रयागराज में हो रहे कुंभ और उत्तर प्रदेश के प्रशासन को जिम्मेदार बता रहे हैं. रेल मंत्रालय ने भीड़ का पूर्वानुमान लगाते हुए दस-बारह ट्रेनें अतिरिक्त नहीं चलायीं, यह बात तो फिर भी समझ में आती है, लेकिन कुंभ की व्यवस्था को इस हादसे से जोड़ना कहां तक जायज है?  इन पंक्तियों के लेखक को याद है कि 1998-99 तक उसके गृहनगर दरभंगा तक दिल्ली से सीधी ट्रेन नहीं जाती थी, पटना तक भी दो-तीन ट्रेनें ही थीं, फिर भी 15 दिनों पहले तक टिकट मिल जाती थी. अब दरभंगा से सीधी दिल्ली तक की कम से कम तीन ट्रेनें हैं, उसके अलावा दरभंगा से होकर गुजरने वाली, समस्तीपुर-मुजफ्फरपुर, पटना से दिल्ली आनेवाली ट्रेनें जोड़ दें तो मामला दर्जनों तक पहुंच जाता है, फिर भी अब दो महीने पहले भी टिकट चाहें तो टिकट नहीं मिलती है. अभी आप होली के लिए बिहार आने वाली ट्रेनों में रिजर्वेशन केवल खोजकर देख लें, क्या हाल हो रखा है, ये आपको पता चल जाएगा. 


लोगों की क्रयशक्ति बढ़ना एक महत्वपूर्ण कारण है, जिसकी वजह से लोग अब धार्मिक पर्यटन को भी पिकनिक की तरह मना रहे हैं, फिर सोशल मीडिया के दौर में जब तस्वीरें और वीडियो वायरल होती हैं तो आप एक मनोवैज्ञानिक दबाव को भी नहीं नकार सकते हैं. चलिए, ये तो रेल की बात है, लेकिन लाखों गाड़ियां जो अभी प्रयागराज के रास्ते में हैं, उनकी वजह से भयंकर ट्रैफिक जाम हो रहा है, प्रयागराज के लोग जो एक तरह से दो महीने से अपने घरों में कर्फ्यू सरीखा महसूस कर रहे हैं, वो किस तरह से समझा जाए, उसकी आप क्या व्याख्या करेंगे? उसकी एक ही व्याख्या है कि भारत में हिंदू मध्यवर्ग बढ़ा है, सुविधाएं बढ़ीं हैं और लोग अब अपने धार्मिक स्थलों की ओर मुड़ रहे हैं. चूंकि हमारी जनसंख्या हद से अधिक है, इसलिए सरकार को और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है. दस ट्रेन की जगह 50 ट्रेनें चलें, 8 एक्सप्रेसवे की जगह 18 एक्सप्रेसवे हों, तो शायद इस तरह के हादसों को बिल्कुल न होने देने की गारंटी दी जा सके. 


भारतीय मानस की अराजकता भी जिम्मेदार


हम लोग अपनी अराजकता और कानून न मानने की जिद को क्या कहेंगे? स्वतंत्रता सेनानी पर हुआ पथराव क्या दिखाता है, जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन की अराजकता क्या दिखाती है, नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर दीवार फांद कर जबरन घुसना क्या दिखाता है, एक ही तारीख को कहीं भी पहुंचने की जिद को कैसे व्याख्यायित किया जा सकता है? इसके अलावा एक और बड़ी बात है, जिस पर हम सभी को सोचने की जरूरत है. वह है, FOMO यानी फीयर ऑफ मिसिंग आउट. यह हमारे मनोविज्ञान को दिखाता है- फलाने चूंकि कुम्भ में चला गया तो हमें भी जाना चाहिए, कहीं हम पीछे न रह जाएं. ये मानसिकता भी इस भगदड़ और मौत की जिम्मेदार है. आखिरी बात यह कि हिंदुओं के किसी भी तीर्थस्थल पर इस तरह की भगदड़ एक रूटीन बन गयी है. आखिर क्यों कभी आंध्र में तो कभी महाराष्ट्र तो कभी बिहार और कभी गुजरात में इस तरह की भगदड़ होती है. हमारे तीर्थस्थल पहले हमारी पहुंच से बाहर थे, दुर्गम थे. हमारे पिताओं की पीढ़ी बताती है कि अगर कभी उनके गांव से कोई तीर्थ करने जाता था, तो पूरे गांव से गले मिलकर जाता था कि फिर मिलना हो कि न हो. अब चाहे चार धाम की यात्रा हो या कुंभ (जहां के बारे में कई फिल्मों में दिखाया गया है कि वहां के बिछड़े वर्षों बाद कभी मिलते थे या नहीं भी मिल पाते थे), तकनीक और विज्ञान ने हमारी यात्राओं को तो सहज बनाया है, लेकिन शायद हमारे भीतर की आपाधापी और अराजकता को और बढ़ा दिया है. 


अश्विनी वैष्णव का इस्तीफा एक पहला कदम हो सकता है, लेकिन जरूरत इससे बढ़कर प्रयास करने की है, अपने अंतर्मन में झांकने की भी है. 




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