अखिलेश यादव या नीतीश कुमार के बयान तात्कालिक और प्रतिक्रिया में उपजे, इंडिया गठबंधन कांग्रेस के बिन मुमकिन नहीं
अखिलेश यादव हैं कि मानते नहीं! अभी शनिवार यानी 4 नवंबर को उन्होंने यह बयान देकर सुगबुगाहट पैदा कर दी कि समाजवादी पार्टी सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. उसके पहले कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि सपा 65 सीटों पर लड़ेगी, बाकी दलों को बची हुई 15 सीटों में ही बांट-बखरा करना होगा. यह तो वे हमेशा ही कहते रहे हैं कि सपा उत्तर प्रदेश में सीट मांगेगी नहीं, बांटेगी. उधर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी यह बयान देकर लोगों को चौंका दिया कि कांग्रेस फिलहाल पांच राज्यों के चुनाव में व्यस्त है और उसके पास गठबंधन के लिए कोई समय नहीं है. आम आदमी पार्टी छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के खिलाफ ताल ठोंक ही रही है. ऐसे में इंडिया गठबंधन के भविष्य को लेकर ही कयास लगाए जाने लगे हैं, खासकर उत्तर प्रदेश में तो सवालिया निशान बहुत गहरा हो गया है.
प्रतिक्रियावादी हैं अखिलेश के बयान
अखिलेश यादव के जो भी बयान आ रहे हैं, उनमें से बहुत को तो प्रतिक्रिया में आना बयान मानना चाहिए. 4 नवंबर को ही अपना दल (कमेरावादी) का स्थापना-दिवस मनाया जा रहा था, इसके पल्लवी पटेल और कृष्णा पटेल के साथ सपा का एक समझौता या गठबंधन है, जहां उन्होंने कहा कि वह अपने सहयोगी दलों को टिकट बांटने में बड़ा दिल दिखाएंगे. वहीं, जब वह गोरखपुर में कहते हैं कि सपा 80 सीटों पर तैयारी कर रही है, तो वह स्थापित कर रहे होते हैं कि उत्तर प्रदेश में सपा सबसे बड़ा दल है और वह पहले भी कहते रहे हैं कि यूपी में वह सीटें मांगेंगे नहीं, बांटेंगे, तो वह एक अपर हैंड रखने की बात करते हैं. हालांकि, यूपी कांग्रेस भी यही बात कहती है कि वह 80 सीटों पर तैयारी कर रही है. इन बयानों का गठबंधन के भीतर कोई बहुत मतलब नहीं होना चाहिए. उसी तरह जब वह कहते हैं कि यूपी में सपा 65 सीटों पर लड़ेगी, तो वह अपने कार्यकर्ताओं के बीच बोल रहे थे, उनका उत्साह बनाए रखने में वह सफल रहे हैं. हालांकि, इंडिया गठबंधन के लिए यूपी में जो कुछ भी हो रहा है, वह परदे के पीछे हो रहा है, परदे के आगे तो जो कुछ भी हो रहा है, वह तात्कालिकता पर आधारित है, प्रतिक्रिया पर है और उसमें कांग्रेस भी पीछे नहीं है, सपा भी पीछे नहीं है. इंडिया गठबंधन के जो बाकी दल हैं, उन्होंने मान लिया है कि चूंकि कांग्रेस ने पांचों राज्यों के चुनाव में बहुत कुछ दांव पर लगा दिया है, तो 6 दिसंबर या कहें तो 10 दिसंबर के पहले कुछ भी बहुत गंभीरता से तय नहीं होगा. एक बार जब 3 दिसंबर को नतीजे आ जाएंगे और उसके बाद जब सरकार बनाने की प्रक्रिया फाइनल हो जाएगी तो उसके बाद ही इंडिया गठबंधन में गंभीर चर्चा और बैठकों का दौर शुरू होगा. परदे के पीछे हालांकि बहुत कुछ चल रहा है.
गठबंधन की गांठे सुलझेंगी ही
ये बयान हैं और ये तात्कालिक और प्रतिक्रिया में दिए गए बयान हैं. जब तक सब कुछ स्पष्ट नहीं हो जाता, तब तक इस तरह के बयान आते ही रहेंगे. यह कोई अंतिम बात नहीं है कि सपा 65 सीटों पर लड़ ही लेगी या फिर ये अभी ही फाइनल हो गया है. सीटों की संख्या और दल बदल भी सकते हैं. हां, यह जरूर है कि अखिलेश यादव ने एक दबाव बनाकर रखा हुआ है. रालोद ने 12 सीटों की मांग की थी, वो बन नहीं पा रहा है. कांग्रेस के यूपी नेतृत्व के दावे और अधिक हैं, लेकिन कुल मिलाकर यह हो सकता है कि 15 से 20 सीटों के बीच इनके अंदर बात बन सकती है. भीम आर्मी सपा के कोटे में जा सकती है. एक नया चलन चूंकि ये भी बन रहा है कि जो बड़े खिलाड़ी हैं, उनके बीच कोटा तय हो जाए और फिर वे कुछ छोटी पार्टियों को समाहित कर सकते हैं. जैसे, संजय चौहान हैं. छोटी पार्टी हैं, लेकिन सपा के साथ छाया की तरह लगे हुए हैं. उसी तरह केशवदेव मौर्य के भी सुर आजकल सपा वाले हो गए हैं, तो उनको भी सपा के कोटे में ही आना होगा. समस्या इसीलिए इन लोगों की नहीं है. समस्या तब होगी, जब मायावती अगर गठबंधन में आएंगी और परदे के पीछे यह चर्चा बहुत तेज है. ऐसे में सपा-बसपा दोनों के हिस्से में 30-35 सीटों से अधिक नहीं आएगा, लेकिन अगर वह नहीं होता है, तो सपा सबसे बड़ा हिस्सा लेकर लड़ेगी.
इंडिया गठबंधन कांग्रेस के गिर्द ही रहेगा
अगर इंडिया गठबंधन से कांग्रेस बाहर हो जाएगी, तो उसका नाम तीसरा मोर्चा ही रह जाएगा, इंडिया गठबंधन नहीं रहेगा और वह किसी काम का गठबंधन नहीं होगा. नीतीश कुमार ने जो कुछ कांग्रेस के बारे में कहा है, वह एक ठोस बात कही है और उसे नाराजगी नहीं समझना चाहिए. उन्होंने कहा है कि कांग्रेस अभी पांच राज्यों के चुनाव में व्यस्त है और गठबंधन के लिए उसे फुरसत नहीं है, तो राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी होने के नाते वह एक फैक्ट बस कह रहे हैं. दूसरी तरफ, फूलपुर से जहां तक उनके लड़ने की बात है, तो पूरा विपक्ष ही उनका स्वागत करने को तैयार है. उससे अच्छा माहौल बनेगा और कुर्मी मतदादा भी कॉन्सोलिडेट होंगे. उत्तर प्रदेश की विधानसभा में अभी 48 विधायक उस बिरादरी के हैं. हां, जेडीयू के 14 सीटों पर दावेदारी करने में कोई दम नहीं है जो उछाली जा रही है. फिलहाल नीतीश के अलावा एक सीट जौनपुर की है, जो धनंजय सिंह की वजह से जेडीयू के दावे को मजबूत करती है. इन दो सीटों के अलावा और कुछ भी यूपी में जेडीयू के पास नहीं है.
हां, एक संभावना यह जरूर बनती है कि मेनका गांधी और वरुण गांधी इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनकर चुनाव लडे़ं, लेकिन उन दोनों ने सपा या कांग्रेस जॉइन करने से मना कर दिया है. तो, ये संभावना है कि वे जेडीयू के सिम्बॉल पर चुनाव लड़ लें. यह बात दीगर है कि अभी तक दोनों मां-बेटे बीजेपी की तरफ से विधायक औऱ सांसद बनते रहे हैं, लेकिन इस बार रिश्ते भी तल्ख हैं और संभावना भी क्षीण है. तो, जेडीयू की इतनी ही संभावना उत्तर प्रदेश में है. जहां तक इंडिया गठबंधन की बात है, तो रीजनल समीकरण औऱ नेशनल पॉलिटिक्स बिल्कुल अलग हैं. इंडिया गठबंधन बना ही लोकसभा चुनाव के लिए था. समस्या बस आम आदमी पार्टी के साथ होगी, हालांकि वह भी दबाव में है, लेकिन अरविंद केजरीवाल की जो शैली है, वह पंजाब और दिल्ली में कितना अकोमोडेट करेंगे, उसमें संकट होगा. ममता बनर्जी भी अप्रत्याशित हैं, बाकी दक्षिण भारत में और उत्तर भारत के प्रमुख राज्यों में भी तस्वीर साफ है. पूरब में थोड़ी दिक्कत तालमेल में होगी. आम आदमी पार्टी का मोडस ऑपरेंडी बहुत भरोसा नहीं दिलाता, इसलिए वहां दिक्कत हो सकती है.
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