(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
सुप्रीम कोर्ट भी फिक्रमंद है कि 'नोटबंदी' से आखिर कितना काला धन बाहर आया?
छह साल पहले यानी साल 2016 के 8 नवम्बर की रात 8 बजे दिया गया हमारे प्रधानमंत्री का ऐलान शायद आप भूले नहीं होंगे जिसने देश में ऐसी अफरातफरी मचा दी थी कि अगले दिन महानगरों के बाहर लोगों की एक-डेढ़ किलोमीटर लंबी लाइन लग गई थी और सबको चिंता ये थी कि उन्हें अपनी जमा पूंजी में से 2 हजार रुपये भी आखिर कैसे मिल पाएंगे.
वो नोटबंदी करने का अभूतपूर्व व साहसिक फैसला था जिसे लेकर सरकार ने चार अहम दावे किये थे- इससे देश का काला धन बाहर आएगा, भ्रष्टाचार खत्म होगा, नकली नोटों का प्रचलन पूरी तरह से बाहर हो जाएगा और नक्सली व आतंकी संगठनों को मिलने वाली फंडिंग पर भी लगाम लगेगी.
सरकार का ये फैसला ठीक था या नहीं इसे तय करने की ताकत भारत जैसे सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लोगों को आज भी नहीं है. इसीलिये इंसाफ मांगने के लिए देश की सबसे बड़ी चौखट यानी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ता है. नोटबंदी के उस फैसले के खिलाफ देश की शीर्ष अदालत में 30 से भी ज्यादा याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जो अब उस पर सुनवाई कर रही है. जाहिर है कि संविधान के प्रावधानों के तहत सुप्रीम कोर्ट भी अब सरकार के उस नोटबंदी के फैसले को बदल तो नहीं सकता लेकिन वो इसकी बारीकियां देखते हुए ये तो पकड़ेगा ही कि इसमें कानून का पालन करने में कहां धोखा दिया गया और ये भी कि क्या वाकई इसका मकसद देश के चंद औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचाना ही था.
बुधवार को जब सुप्रीम कोर्ट में इन तमाम याचिकाओं पर सुनवाई हुई तो केंद्र सरकार की तरफ से नियुक्त दिग्गज वकीलों की दलीलें कुछ ऐसी थीं मानो आज ही ये कोर्ट, केंद्र सरकार पर अपना चाबुक चलाने वाली है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपने इस फैसले का पुरजोर बचाव करते हुए कोर्ट में दाखिल हलफनामे में सरकार ने बताया है कि यह टैक्स चोरी रोकने और काले धन पर लगाम लगाने के लिए लागू की गई सोची-समझी योजना थी. नकली नोटों की समस्या से निपटना और आतंकवादियों की फंडिंग को रोकना भी इसका मकसद था.
सरकार ने ये भी सफाई दी है कि इसकी सिफारिश रिजर्व बैंक ने की थी. इसे काफी चर्चा और तैयारी के बाद लागू किया गया था. बता दें कि 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों को वापस लेने का की घोषणा की थी जिसके बाद देश की बड़ी आबादी को तकरीबन एक-डेढ़ महीने तक करेंसी नोट की कमी का सामना करना पड़ा था.
दरअसल, इस मामले की सुनवाई कर रही 5 जजों की संविधान पीठ ने सरकार से यह पूछा था कि नोटबंदी को क्यों लागू किया गया? 500 और 1000 रुपए के नोटों को वापस लेने का फैसला लेने से पहले किस तरह प्रक्रिया अपनाई गई?
इसके जवाब में केंद्र सरकार ने कहा है यह फैसला आर्थिक और मौद्रिक नीति का हिस्सा है. इसकी समीक्षा कोर्ट में नहीं की जानी चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जो याचिकाएं हैं उनमें समान रूप से एक बदास आरोप ये है कि नियमों का पालन किये बिना ही ये नोटबंदी लागू की गई थी. इसका जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने तर्क दिया है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट, 1934 के तहत रिजर्व बैंक और सरकार के पास किसी करेंसी नोट को वापस लेने का फैसला लेने का अधिकार है. सरकार ने यह भी बताया है कि नोटबंदी के कुछ समय के बाद संसद ने भी स्पेसिफाइड बैंक नोट्स (सेसेशन ऑफ लायबिलिटी) एक्ट, 2017 पारित कर इसको मंजूरी दी. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि नियमों का पालन किए बिना नोटबंदी को लागू किया गया था.
कोर्ट में सरकार की तरफ से दी गई दलीलें अपनी जगह है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि इससे काले धन पर कितनी लगाम कसी गई? कई वित्तीय जानकारों का कहना है कि इन छह सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो नोटबंदी काले धन को कम करने के अपने उद्देश्य में पूरी तरह से फेल हो गई है. वे रिजर्व बैंक की तरफ से जारी आंकड़े का हवाला देते हुए कहते हैं कि देश में कैश यानी नकदी का उपयोग अभी भी भरपूर हो रहा है और आरबीआई के इस डेटा के बाद नोटबंदी को लेकर इस पर सवाल उठना वाजिब भी है.
बता दें कि पिछले महीने की 21 अक्टूबर तक जनता के बीच मौजूद नकदी 30.88 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई जो यह दिखाता है कि नोटबंदी के छह साल बाद भी देश में नकदी का भरपूर उपयोग जारी है. यह आंकड़ा चार नवंबर, 2016 को खत्म पखवाड़े में चलन में मौजूद मुद्रा के स्तर से 71.84 फीसदी ज्यादा है. यह आंकड़ा चार नवंबर, 2016 को खत्म हुए पखवाड़े में 17.7 लाख करोड़ रुपये था. यानी नोटबंदी का ऐलान होने से पहले नकदी का जितना सर्क्युलेशन था, उसमें अब 72 फीसदी से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है. रिजर्व बैंक के इन आंकड़ों का विश्लेषण करेंगे तो पता चलता है कि सिस्टम से बाहर हुई 99 फीसदी नकदी वापस लौट चुकी है.
इसका मतलब साफ है कि काला धन जैसे पहले मार्किट में घूम रहा था वो आज और भी ज्यादा छाती चौड़ी करके अपने मकसद को अंजाम दे रहा है. मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट के अनुसार, जिस समय सिस्टम से 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोट को बाहर किया गया था, उस समय इनकी कुल भागीदारी 86 फीसदी थी. इससे पता चलता है कि सिस्टम में मौजूद इतनी भारी मात्रा में किसी नोट को बंद करने से कितना बड़ा असर पड़ सकता है. नोटबंदी के इतने साल बाद अर्थशास्त्रियों को लगता है कि यह फैसला काफी सख्त था और इससे महज 5 फीसदी से भी कम ब्लैक मनी पर ही शिकंजा कसा जा सका है. बाकी का कालाधान सोने-चांदी की खरीद और रियल एस्टेट में मोटे निवेश के रूप में आज भी भरा पड़ा है जिसे पकड़ने के लिए हमारी सरकार आज भी सिर्फ रास्ते ही तलाश रही है.
पीएम मोदी का देश के नाम वह संबोधन अगर आप भूल गये हों तो याद दिला दें कि उन्होंने इस नोटबंदी का दूसरा बड़ा मकसद नकली नोटों पर लगाम कसना भी बताया था. लेकिन हकीकत रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट से पता चलती है जिसे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे. बीती 27 मई को जारी इस रिपोर्ट में आरबीआई ने बताया है कि नकली नोटों की संख्या 10.7 फीसदी बढ़ गई है. इसमें 500 रुपये के नकली नोट में 101.93 फीसदी का उछाल आया है तो 2,000 के नकली नोट की संख्या 54 फीसदी बढ़ने की बात कही गई है. इतना ही नहीं 10 रुपये के नकली नोट की संख्या 16.45 फीसदी और 20 रुपये के नकली नोट की संख्या 16.48 फीसदी बढ़ी है.
इसके अलावा 200 रुपये के नोट का भी नकली वर्जन 11.7 फीसदी बढ़ गया है. 50 रुपये के नकली नोट सिस्टम में 28.65 फीसदी बढ़े तो 100 रुपये के नकली नोट 16.71 फीसदी बढ़ गए हैं. कुल नकली नोट में 6.9 फीसदी आरबीआई में पकड़े गए जबकि 93.1 फीसदी की पहचान अन्य बैंकों में हुई. सुप्रीम कोर्ट तो अगली सुनवाई पर तय करेगा कि सरकार की खामियां क्या थी लेकिन देश के रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के आधार पर आप ही तय कीजिये कि क्या नोटबंदी का फैसला अपना मक़सद पूरा करने में कामयाब हुआ?
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