'मोदी है तो मुमकिन है'..ये नरेन्द्र मोदी ने इस चुनाव में शानदार जीत दर्ज करके फिर से साबित कर दिया है. नरेन्द्र मोदी को टक्कर देने वाला कोई नहीं है और उनकी चाल को समझना आसान नहीं, नामुमकिन है. मोदी की रणनीति ऐसी होती है कि उनकी चाल की भनक किसी को नहीं लगती है. जब मिशन पूरा होता है तभी खुलासा होता है कि क्या चाल चली, धोबिया पाठ खेला या विरोधी को चकमा दे दिया. 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ते हुए नया रिकॉर्ड बना दिया है. मोदी के नेतृत्व में एनडीए को करीब 347 सीटें मिली हैं. आखिरकार नरेन्द्र मोदी की जीत का राज क्या है?
नरेन्द्र मोदी हर चुनाव में नई चाल चलते हैं और इस फेहरिश्त में एक नया रिकॉर्ड जोड़ लेते हैं. जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो गोधरा कांड के बाद गुजरात में दंगे भड़कें. गुजरात दंगे को लेकर राजनीति शुरू हुई और नरेन्द्र मोदी को घेरने की कोशिश हुई. गुजरात दंगे को लेकर विपक्ष ने उन पर हमला करना शुरू कर दिया और गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें 'मौत का सौदागर' तक कहा गया. नरेन्द्र मोदी ने सोनिया गांधी के हमले को अपना कवच बना लिया और उल्टा इसी मुद्दे को लेकर वो सोनिया गांधी पर भारी पड़ गये. वो विधानसभा चुनाव भी जीते और अपनी छवि बदलने का फैसला भी किया. छवि बदलने के पहले वो पूरे देश में हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय बन चुके थे. अब वो गुजरात के विकास पर ध्यान देने लगे. अस्पताल से लेकर सड़क, पानी, बिजली और राज्य में इंवेस्टमेंट का माहौल बनाने लगे. 2007 के विधानसभा चुनाव में वो अपनी छवि बदल चुके थे और विकास पुरुष की राह पर चल चल चुके थे. वो पहले से हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय थे और अब विकास पुरुष भी बन चुके थे. इसके बाद उनकी नजर दिल्ली की गद्दी पर भी थी. यही नहीं, वो अपनी छवि भ्रष्ट्राचार विरोधी के रूप में भी स्थापित कर चुके थे. साथ-ही-साथ उनकी चर्चा निर्णायक नेता के रुप में भी होने लगी थी, लेकिन गुजरात दंगे को लेकर उनपर लगातार हमले भी होते रहे.
2009 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार के बाद तो दिल्ली का रास्ता मंजिल का रूप ले चुका था. मोदी रणनीति के माहिर हैं, मेहनती भी हैं और लगन में जुनूनी भी हैं. दिल्ली से दूर वो अहमदाबाद में बैठकर यूपीए सरकार और मनमोहन सिंह को कोसते थे. मोदी के हमले और उनके वादों से देश में उनकी चर्चा होने लगी और लोकसभा चुनाव आते-आते ये संदेश देने की कोशिश की गई कि वो दिल्ली में शासन के मूलमंत्र को बदल देंगे. उस दौरान यूपीए सरकार भ्रष्ट्राचार की मार झेल रही थी. अर्थव्यवस्था का बुरा हाल था, सरकारी पॉलिसी पैरालाइसिस की शिकार थी. जीडीपी गिर रहा था, महंगाई आसमान पर थी. शेयर बाजार लुढ़क रहा था. मोदी के सपनों ने देश की जनता को खींच लिया और वो 2014 में देश के प्रधानमंत्री बन गए.
प्रधानमंत्री बनने के बाद राह आसान नहीं थे. विपक्ष ने हर मोड़ पर उन्हें घेरने की कोशिश की और मोदी अपनी चाल चलते रहे. उन्होंने जीएसटी और नोटबंदी जैसे कड़े फैसले लिये, लेकिन इस पर भी सवाल उठे. विपक्ष ने आरोप लगाया कि जीएसटी और नोटंबंदी से देश में बेरोजगारी बढ़ी, अर्थव्यवस्था का बुरा हाल हुआ. वहीं, राफेल डील पर विपक्ष ने मोदी पर गंभीर आरोप लगाए. आरोप लगे कि गलत तरीक से राफेल डील हुआ, अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाया गया. इस मुहिम में कांग्रेस ही नहीं बल्कि सारी विपक्षी पार्टियां शामिल हो गईं.
मोदी हर चुनाव में नई चाल के लिए जाने जाते हैं. 2019 लोकसभा चुनाव में भी मोदी नई चाल की तलाश में थे. उरी में आतंकी हमले के खिलाफ मोदी ने पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक किया था. उनकी खूब वाहवाही हुई, लेकिन ये मुद्दा दब गया और बीजेपी पर विपक्षी पार्टियां हावी होने लगीं. चुनाव के ठीक पहले पुलवामा आतंकी हमले में कई सीआरपीएफ जवान शहीद हो गये. इस हमले के बाद मोदी ने खुला ऐलान किया कि जल्द ही पाकिस्तान से बदला लिया जाएगा. इस घोषणा से पाकिस्तान सतर्क हो चुका था. पाकिस्तान ये मानकर चल रहा था कि भारत जमीनी मार्ग से हमला करेगा. लेकिन, भारत ने हवाई मार्ग से बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर दिया.
बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं ने दावा किया कि इस स्ट्राइक में करीब 300 आतंकी मारे गए. इस घटना के बाद जबर्दस्त माहौल बना कि सिर्फ मोदी ही पाकिस्तान को सबक सिखा सकते हैं. नरेन्द्र मोदी ने भी इस मुद्दे को पकड़ लिया और चुनाव में इस मुद्दे को जमकर भुनाने की कोशिश की. राष्ट्रवाद के मुद्दे से फिर से देश में मोदी का परचम फहरा. नरेंद्र मोदी पहले हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय, फिर विकास पुरुष, निर्णायक नेता, भ्रष्ट्राचार विरोधी और पाकिस्तान पर हमला करके सबसे बड़े राष्ट्रवादी के रूप में उभरे. यही नहीं, उन्होंने कांग्रेस की वंशवाद राजनीति पर भी जमकर हमला बोला और गरीबों में विकासवाद की छवि बनाई. मसलन मुफ्त सिलेंडर, शौचालय की योजना, स्वास्थ्य योजना, मकान योजना, किसानों को साल में 6 हजार की राशि की सहायता ने मोदी को गरीबों में लोकप्रिय होने का मौका दिया. तभी तो देश में शायद नरेंद्र मोदी इकलौते नेता हैं जो 17 साल के राजनीतिक करियर में अभी तक ना तो विधानसभा और ना ही लोकसभा में विपक्ष में बैठे.
(धर्मेन्द्र कुमार सिंह राजनीतिक-चुनाव विश्लेषक हैं और 'ब्रांड मोदी का तिलिस्म' के लेखक हैं.)
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