समूचे देश के लिए यह चिंता का विषय है कि उत्तर-पूर्व के एक राज्य में दो समुदाय इस सीमा तक लड़ते रहे कि महिलाओं के साथ सामान्य उत्पीड़न से यौन-उत्पीड़न के ऐसे दृश्य दिखे हैं कि हम शर्मसार हो जाएं. कुछ दिनों पहले एक वीडियो सामने आया है. यह वीडियो 4 मई का बताया जा रहा है और इसमें दो महिलाओं को पूरी भीड़ के सामने नेकेड-पैरेड करने के लिए विवश किया गया है. लोग उनके साथ यौन अत्याचार भी कर रहे हैं. यह वीडियो एक समाज के तौर पर हमें शर्मसार करता है. सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए वहां सरकार जो कर सकता है करे, समाज जो कर सकता है, करे. साथ ही, इसकी लपटें दूसरे राज्यों तक न जाए, यह भी सुनिश्चित किया जाए. भारत की एकता और अखंडता की दृष्टि से देखें तो पूरे देश को एक साथ इसका विरोध करना चाहिए.
यह संघर्ष न तो धार्मिक, न ही एकतरफा
वैसे, इसके और भी पहलू हैं. जिस जगह मणिपुर में ये घटना हुई है, असल में लड़ाई जो शुरू हुई है, अप्रैल के अंत तक जो संघर्ष था, वह पुलिस और कुकी समुदाय के बीच था. मैतेई समुदाय इसमें कहीं नहीं था. मई की शुरुआत में, सोनाचांदपुर जिले में गोली चली है और पांच कुकी भी उसमें मारे गए और पांच पुलिस वाले भी. ये वीडियो उसी स्थान का है, चार मई का है, जहां और जब ये संघर्ष हुआ था. हमें-आपको पृष्ठभूमि पता नहीं है, असल में क्या हुआ है, हमें पता नहीं है. जब पुलिस वालों, सुरक्षा बलों के लिए सामान्य भूमिका निभाने में दिकक्त हो रही थी, तो पत्रकारों के लिए भी स्थितियां सामान्य नहीं थीं. मणिपुर में महिलाएं हमेशा ही प्रदर्शनों में आगे रही हैं. कुकियों के जितने भी प्रदर्शन हुए हैं, अफ्स्पा हटाने को लेकर, मानवाधिकार को लेकर, इंडियन आर्मी गो बैक के नारे लगे हैं, उनमें कुकी महिलाएं आगे रही हैं. हालांकि, आगे रही हैं, इसका मतलब ये नहीं है कि किसी समुदाय को उनकी महिलाओं का उत्पीड़न करने, नंगा करने का अधिकार मिल जाता है.
समस्या यह है कि ये भारत का आंतरिक मामला है औऱ भारत ने ऐसे ही इसका जवाब भी दिया है. खुद प्रधानमंत्री ने इस बात पर संज्ञान लिया है और मुख्यमंत्री ने भी कहा है कि जो भी इसमें शामिल रहे हैं, उनको फांसी दिलाने की मांग की जाएगी. दूसरी ओर, इस संघर्ष को हिंदू-ईसाई संघर्ष में बदलने की पुरजोर कोशिश हो रही है. यह स्थापित करने की पुरजोर कोशिश हो रही है कि यह सामान्य नहीं था, हिंदू धर्म के लोगों द्वारा ईसाइयों पर आक्रमण था. मिजोरम में इसीलिए प्रतिक्रिया हो रही है, क्योंकि मैतेई तो मणिपुर में हैं, कुकी तो पूरे उत्तर-पूर्व में बसे हुए हैं. उनकी संख्या अधिक है. कुकी में लगभग सौ फीसदी धर्मांतरित हो चुके हैं, मैतेई थोड़े बहुत बचे हुए हैं. हमारे देश में अधिकांश राज्यों में अलग-अलग समुदायों के लोग रहते हैं, उनके बीच तनाव भी होता है, लेकिन उनको फिर रास्ते पर भी ले आया जाता है. पीएम मोदी हों, भाजपा हो या संघ हो, उनका विरोध जिनको भी करना है, करें, लेकिन यह पेंट करना कि इस सरकार में हिंदू जान बूझकर अल्पसंख्यकों के ऊपर आक्रमण कर रहा है, वह गलत है. इसका असर हमने विदेशों में भी देखा है और विदेशों से जो गूंज आ रही है, वह भी एक अलग मुद्दा है.
मुख्यमंत्री की बात का संदर्भ समझें
मुख्यमंत्री की बात को भी ठीक से समझने की जरूरत है. एन बीरेन सिंह ने कहा है कि लोग एक वाकये को मुद्दा बना रहे हैं, जबकि ऐसी दर्जनों घटनाएं हमारे राज्य में हुई हैं. जब किसी राज्य में दंगा होता है, तो दंगे के ऐन दौरान बस धरपकड़ होती है, सुरक्षा एजेंसियों का मुख्य काम बस दंगे को शांत करना होता है, उस समय कार्रवाई नहीं होती है. अब ये घटना 4 मई की है, लेकिन 18 मई को जीरो एफआईआर हो चुकी थी. यह कहना गलत है कि इसका संज्ञान लिया गया है. पुलिस औऱ सुरक्षा बलों के सामने ऐसी कई सारी घटनाएं होंगी और केवल एक घटना उनकी प्रायरिटी नहीं होगी. जो लोग इस घटना का वीडियो देश के सामने लाए हैं, जाहिर तौर पर उनकी प्रायरिटी यह है कि कुकी यानी ईसाई समुदाय पर हमला हुआ है, यह बात वे दिखाना चाहते हैं. मैतेई हिंदुओं ने आक्रमण किया है, ईसाई कुकी महिलाओं पर हमला हुआ है और पुलिस ने उनको सुरक्षा नहीं दी, इन उद्देश्यों से ही यह वीडियो जारी हुआ है. जिस संस्था ने यह वीडियो जारी किया है, वह उस दिन किया है जबकि अगले दिन प्रदेश में विरोध-प्रदर्शन होना था, संसद का सत्र चलना था. जाहिर है कि वे एक मैसेज दे रहे थे.
जो लोग सवाल उठा रहे हैं, वे यह सवाल क्यों नहीं उठाते कि इतने दिनों बाद इस घटना को उछालने का मकसद क्या है, सुरक्षा बलों के लिए उस समय अगर ऐसी 50 घटनाएं हुई होंगी, तो सभी बराबरी की प्राथमिकता वाली ही होंगी न. किसी पर हमला हुआ है, तो यह शर्म की बात है और उन पर कड़ी कार्रवाई हो, लेकिन क्या मैतेई महिलाओं पर हमला नहीं हुआ है, क्या मैतेई लोगों के घर नहीं जले हैं? आज की सच्चाई यह है कि मणिपुर में 7 हजार लोग विस्थापित हुए हैं, 10 हजार लोग राज्य छोड़ चुके हैं, 6 हजार के आसपास हिंसा की घटनाएं हुई हैं, 5 हजार के आसपास एफआईआर दर्ज हुई है और 6800 लोग गिरफ्तार हो चुके हैं. तो, ऐसे में एक घटना को केंद्र में लाना औऱ उसके आधार पर ही जजमेंट देना कहां तक जायज है?
हिंदू हित की बात कोई करेगा या नहीं?
पहले तो यह देखने की जरूरत है कि हमारे देश में जब भी कुछ होता है, हिंदुओं के लिए कोई कुछ नहीं सोचता. अमूमन यह माना जाता है कि हिंदू बहुसंख्यक हैं, तो हमें अल्पसंख्यकों के लिए सोचने की जरूरत है. यह एक अच्छे, बढ़िया समाज की निशानी भी है. हालांकि, इसके उलट भी जरा देखिए. ब्रिटेन के साथ हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं, लेकिन धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रधानमंमत्री के विशेष दूत सिएना ब्रूस ने जो वक्तव्य दिया है, उसे देखिए. उसमें कहा गया है कि मई के बाद से ही सैकड़ों चर्च जला दिए गए हैं, 100 से अधिक लोग मारे गए और 50 हजार से अधिक शरणार्थी हैं, यह सबकुछ सोच समझकर किया गया है औऱ यह धार्मिक आधार पर किया गया है. अब आप सोचिए, ब्रिटिश प्रधानमंत्री के विशेष दूत की यह भाषा है! इसमें यह भी कहा गया है कि ‘चर्च ऑफ इंग्लैंड’ क्या कर सकता है? इसमें बीबीसी की रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है, जिसमें चर्च पर हमले की भी बात है. अब आप देश में जो भी करते हैं, उसकी विदेशों में गूंज कैसे होती है, यह भी देखना चाहिए. सिएना ब्रूस की टीम ने एक रिपोर्ट भी 26 जून को छापी है, जिसमें कहा गया है कि भारतीय सरकार को मणिपुर में अधिक सैन्य बलों की तैनाती भी करनी चाहिए और ‘रिलिजस फ्रीडम’ पर कैसे हमले हुए, इस पर खास ध्यान देना चाहिए.
ब्रिटेन में संसद के अंदर कई तरह के पद चर्च से जुड़े होते हैं. एक चर्च स्टेट कमिश्नर होते हैं, वे एंड्र्यू सोलोस हैं, वहां के सांसद हैं. उन्होंने नाम लेते हुए कहा है कि बीबीसी वगैरह को अधिक कवरेज देनी चाहिए, कवरेज कम हो रही है. उन्होंने सिएना ब्रूस की रिपोर्ट को सीधा आर्कबिशप ऑफ कैंटरबिरी के पास ले जाने की बात भी करते हैं. हमारे देश में या दुनिया भर में कहीं भी हिंदुओं के ऊपर अत्याचार होता है, तो किसी भी देश के किसी कोने से आवाज नहीं उठती. हाल ही में पाकिस्तान में तीन नाबालिग हिंदू लड़कियों को कनवर्ट किया गया, पर कहीं आवाज नहीं उठी. न तो ब्रिटेन, न अमेरिका, न पाकिस्तान और न ही भारत के बुद्धिजीवी इस पर बात करते हैं. ब्रिटेन और अमेरिका को ईसाइयों के मसले उठाने में दिक्कत नहीं होती है, वे इस तरह करते भी हैं ताकि दबाव बनाया जा सके.
अलगाववादियों के हाथ न खेलें हम
मणिपुर की घटना में साफ है कि जो अलगाववादी ताकतें हैं, जो म्यांमार से आए कुकी हैं, जिन्हें चीन कुकी कहते हैं, वे अफीम की खेती करते हैं और 2005 में यूपीए सरकार ने उनसे समझौता भी किया था, जिसे वे मानते भी नहीं. वर्तमान सरकार ने उनमें से दो संगठनों के साथ समझौते रद्द भी किए हैं, जो ऑपरेशन्स को स्थगित करने से संबंधित थे. पूरे इलाके में ये लोग अफीम की खेती करवाते हैं, घुसपैठियों ने जंगलों में गैर-कानूनी इलाकों में कब्जा किया है. मैतेई की आबादी 53 प्रतिशत है, लेकिन वे 10 फीसदी मैदानी इलाके में ही रह सकते हैं, क्योंकि 1949 में उनका एसटी स्टेटस छीन लिया गया. बीरेन सिंह ने उनके मादक पदार्थों के व्यापार को कुचला, जंगलों को उनके कब्जे से मुक्त करना चाहा औऱ बदले में इतना बड़ा तूफान खड़ा किया गया. इसके लिए बहाना बनाया गया कि सरकार मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देना चाहती है, हालांकि 1949 तक वे थे भी. हाईकोर्ट ने भी उनके पक्ष में आदेश दिया है और राज्य की सरकार को केंद्र के पास सिफारिश भेजने को कहा है. अब भारत सरकार के पास दबाव बनाने की कोशिश है. हालांकि, आपको यह याद रखना चाहिए कि हिंसा तो हिंसा होती है औऱ मोदी सरकार एवं भाजपा का विरोध करते हुए हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि विदेशों तक में यह कहा जाता है कि ईसाइयों पर हमला हो रहा है. साथ ही, हमें यह भी सोचना चाहिए कि दुनिया भर में फैले हिंदुओं के लिए जेन्वेनली भारत सरकार क्या उनकी आवाज नहीं बन सकती है, उन्हें भड़काने की बात मैं नहीं कह रहा, लेकिन उनकी सच्ची आवाज तो बना ही जा सकता है.
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