माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पहलवानों की शिकायत के संदर्भ में जो दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी की है और जो कहा है, वह बहुत सही है. ये जो पूरा मुद्दा है, महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा को लेकर है. अभी जो कुश्ती की खिलाड़ी हैं, जिनके यौन-शोषण की बात आ रही है, वे तो बिल्कुल चोटी की खिलाड़ी हैं तो इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि नीचे क्या नहीं हो रहा होगा? अधिकांश महिला खिलाड़ी गरीब परिवारों से आती हैं और जो कोच हैं, अधिकारी हैं, वे सोचते हैं कि वे उनका फायदा उठा सकते हैं, क्योंकि उन पर कोई अंकुश नहीं है. ये जो मैकेनिज्म है यौन-शोषण को रोकने का..जैसे अभी पता चल रहा है कि कुश्ती महासंघ के भीतर भी इंटरनल कंप्लेट कमेटी नहीं बनी थी, जिसकी वजह से ये लड़कियां इधर से उधर घूम रही हैं. खेल मंत्रालय जो कमेटी-कमेटी खेल रहा है, वह भी इनको मजबूरी में मानना पड़ता है. सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणी की है, वह तो बिल्कुल ही काबिलेगौर है. इन खिलाड़ियों को तो न्याय मिलना ही चाहिए, इसके अलावा भी जो तमाम देश की लड़कियां हैं, जो खेलों में अपना करियर चुनती हैं, उनको एक सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण मिले, यह बहुत जरूरी है. 



सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया सरकार को आईना


यह जो पार्टिकुलर मामला है, जिसमें चोटी की खिलाड़ी जंतर-मंतर पर बैठकर बेटियों की आवाज बुलंद कर चुकी हैं, इसमें अगर न्याय मिलेगा और सही से कार्रवाई हो पाएगी तो जाहिर है नीचे भी जो अपराधी मानसिकता के हैं, उन पर भी लगाम लगेगी. इस पर जो सरकार का रवैया सामने आ रहा है, लीपापोती का है. कमेटी बना दो, इधर टरका दो, उधर भेज दो...अगर वैसा ही चलेगा तो फिर लड़कियों के लिए तो मुश्किल ही होगी और फिर ये जो अमृत महोत्सव मना रहे हैं, उसका कोई मतलब नहीं रहेगा. हरियाणा के अंदर पिछले तीन महीने से हम लोग संघर्ष कर रहे हैं. यहां के खेलमंत्री ने जूनियर एथलीट के ऊपर सेक्सुअल असॉल्ट किया और सरकार उसे बचाने में लगी है. 90 दिनों से ऊपर हो चुके है, अभी तक चार्जशीट दाखिल नहीं हुई है. चंडीगढ़ पुलिस ने संदीप सिंह, जो मंत्री हैं हरियाणा के, उनके लाई-डिटेक्टर टेस्ट के लिए बोला है, उसमें भी टालमटोल चल रहा है. 


सरकार के 'बेटी बचाओ...' के नारे झूठे


खिलाड़ी लड़कियों की सुरक्षा के साथ जो खिलवाड़ चल रहा है, जिस तरह सरकार अपराधियों को बचाती नजर आ रही है और ये जो बचाया जा रहा है, इसका मतलब सरकार झूठे नारे लगाती है. ये जो नारा है- बहुत हुआ नारी पर अत्याचार, अबकी लाओ बीजेपी सरकार, ये भी खोखला नारा ही है. लड़कियां तो सबको बता चुकी हैं. प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को भी. न्याय मिलना तो बहुत आगे की बात है, अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है. तो, ये जो भी जहां पर भी जिम्मेदार लोग बैठे हैं उनको समझना चाहिए कि जो महिला खिलाड़ियों के साथ सलूक हो रहा है, उसको बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. तमाम जगहों से इसके खिलाफ आवाज उठाई जाएगी और असोसिएशन को मजबूर किया जाएगा कि वह कार्रवाई करे. 


सुप्रीम कोर्ट ने इसको गंभीर मसला माना है, यही सांत्वना की बात है. सरकार को तो जहां तक देखिए, तो परफॉरमेंस के नाम पर जीरो है, और उनका अहंकार तो सबसे ऊंचा है. तीन दिन हो गए लड़कियों को बैठे हुए. ओलंपियन खिलाड़ी हैं, रात को सड़क पर सो रही हैं और कोई उनसे मिलने तक नहीं आया है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने जिस गंभीरता से लिया है मसले को, हम सोचते हैं कि अब कार्रवाई बढ़ेगी तेजी से. हम जन-दबाव बनाएंगे और महिला संगठनों की तरफ से भी मंत्रीजी से मिलने का समय मांग रहे हैं, ताकि उनसे जवाब-तलब कर सकें कि ये महिला खिलाड़ियों के साथ चल क्या रहा है? 


[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]