चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की से बुधवार को फोन पर बात की थी. यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से पहली टेलीफोनिक बातचीत में, बीजिंग ने पीस संघर्ष में संभावित शांतिदूत के रूप में खुद को स्थान देने के प्रयासों को गति देने की कोशिश की. ऐसे में सवाल है कि क्या वाकई चीन यूक्रेन और रूस के बीच इरान और सऊदी-अरब के जैसा शांति समझौता करा पाएगा? क्या अमेरिका और पश्चिमी देश चीन के प्रस्ताव पर यूक्रेन युद्ध को बंद होने देंगे? यह युद्ध भले ही रूस-यूक्रेन के बीच हो रहा है, लेकिन इसमें कई मुल्क हैं जो अप्रत्यक्ष तौर पर शामिल हैं, जैसे-अमेरिका, पश्चिमी देश और नाटो आदि, जो यूक्रेन को आयुद्ध दे रहे हैं. इन्होंने पैरा प्वाइंट प्रोग्राम बनाया है. इसमें दो चीजों पर ज्यादा फोकस किया गया है. पहला देश की संप्रभुता और दूसरा कि रूस के ऊपर बहुत सारे प्रतिबंध लगाया गया है.
जहां तक युद्ध विराम की बात है तो चीन ने पहले भी 12 प्वाइंट पीस प्रोग्राम दिया था जो असफल हो रहा. अमेरिका का युद्ध विराम के लिए कहना है कि जब रूस अपने सैनिकों और यूक्रेन के अंदर उसके द्वारा जो कब्जा किए गए इलाके हैं वह उसे छोड़े तब रूस के ऊपर से प्रतिबंध भी हटाए जा सकते हैं और फिर वार्ता की संभावना होगी. वे चाहता है कि पहले वहां ड्यूरेबल पीस हो तब बातचीत होगी. जहां तक चीन की ओर से शांति वार्ता और पीस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने की बात है तो मुझे लगता है कि ये कोई आसान काम नहीं है. इसमें बहुत सारी पेचिदगियां हैं. चूंकि इरान-सऊदी अरब के बीच जिस तरीके से शांति वार्ता की चीन ने पहल की थी उसके पीछे कई दौर की बातचीत गुपचुप तरीके से पहले से हो चुकी थी. सिक्योरिटी लेवल की बातचीत चीन के अंदर चल रही थी और वहां पर दोनों पक्षों ने अपने मसले पहले ही बहुत हद तक सुलझा लिए थे. लेकिन रूस-यूक्रेन के बीच शांति वार्ता करा पाना बहुत मुश्किल है, जो चीन कराने की कोशिश कर रहा है.
रूस के पास 30 % यूक्रेनियन जमीन
चूंकि इसके पीछे बहुतेरे कारण हैं. इसमें पहली बड़ी वजह है रूस के पास 30 % यूक्रेनियन जमीन है. इसके अलावा इन कब्जे वाले इलाकों में रशियन मूल के लोग काफी संख्या में रहते हैं. दूसरा बड़ा कारण लोहांस दोनेस्क और सब-ए-दोनेस्क हैं, जो चारों तरह तरफ से समुद्र से घिरे हुए हैं. इसके अलावा, बहुत सारे ऐसे एरिया हैं जहां पर 60 % कोल पाया जाता है, 30 % तेल है, 20 % नेचुरल गैस हैं और 10 % लिथियम और दूसरे तरह के रेयर अर्थ मेटल पाये जाते हैं. यूरोप का सबसे बड़ा न्यूक्लियर पावर प्लांट भी वहां पर हैं. लगभग 12 ट्रिलियन डॉलर का रिसोर्सेज हैं. मुझे नहीं लगता है कि रूस इतनी आसानी से युद्ध से पीछे हटने के लिए राजी हो जाएगा.
चूंकि वह इसमें बहुत आगे जा चुका है. एक चीज और भी है कि यूक्रेनियन आर्मी का रूस के साथ कोई मैच नहीं है. यूक्रेन को युद्ध लड़ने के लिए हथियार भले ही अच्छे मिल रहे हैं, लेकिन कोई रूस के बराबर वो कभी नहीं आ पाएगा. यूक्रेन अब अपना भला चाहता है तो वह यह कह सकता है कि हम इतना बड़ा अपना टेरिटरी दे रहे हैं और रूस ने ब्लैक शी के ऊपर अपना काफी बड़ा कब्जा भी बना लिया है. जिसकी वजह से यूक्रेन को बहुत दिक्कत हो रही है अपना गेहूं बेचने में, काफी मात्रा में फर्टिलाइजर भी है यूक्रेन के पास जो उसे दुनिया भर में बेचने के लिए रूस से परमिशन लेना पड़ता है. ब्लैक सी से कारोबार करने के लिए यूक्रेन को रूस के साथ एक संधि करनी पड़ी थी. रूस उसको धमकाते रहता था कि हमें इससे कोई फायदा नहीं हो रहा है. ये सबसे बड़ी समस्या हैं.
यूरोप-अमेरिका चाहते हैं युद्ध चलती रहे
एक तरफ यूरोप और अमेरिका चाहते हैं कि युद्ध चलता रहे. उनका उद्देश्य अलग है क्योंकि उन्होंने रूस के ऊपर बहुत सारे प्रतिबंध लगा दिये हैं और उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. वे यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति भी बढ़ा रहे हैं. पहले आर्टिलरी दी गई, फिर टैंक दिये गए और अब कई तरह के सोफिस्टिकेटेड विपेन दिये जा रहे हैं. इसे चलाने के लिए अमेरिका अपने यहां यूक्रेनियन को ट्रेनिंग भी दे रहा है. हालांकि, इस युद्ध के कारण ग्लोबल इकोनॉमी भी बहुत अस्थिर हो गई है. चूंकि तेल के दाम बहुत ज्यादा बढ़ जा रहे हैं और यूरोप-अमेरिका के अंदर काफी आर्थिक मंदी की भी स्थिति है. इसके अलावा यूरोप और अमेरिका में जनता का प्रेशर भी है कि युद्ध को खत्म कराया जाना चाहिए. अब देखने वाली बात यह भी होगी कि अगले साल अमेरिका में चुनाव हैं और ऐसे में क्या कुछ निर्णय लिया जाएगा यह भी काफी मायने रहेगा. लेकिन अब जिस एजेंडा का लेकर जो बाइडन सामने आए हैं वो ये है कि जो काम अधूरा रह गया है वो उसे पूरा करना चाहते हैं. एक तरफ जो अमेरिका के अंदर इंफ्रास्ट्रचर का विकास है और दूसरी तरह जो युद्ध चल रहा है उसे भी किसी निर्णय पर पहुंचाने की बात कह रहे हैं. लेकिन अब ये तो आने वाले वक्त में ही पता चल पाएगा. लेकिन अभी जो प्रयास रूस कर रहा है. उसमें मुख्य यह है कि चीन का रूस के ऊपर काफी पकड़ है. रूस भी चीन के ऊपर काभी निर्भर है जब से यह युद्ध शुरू हुआ है. लेकिन चीन का पश्चिमी यूरोप में कोई सपोर्ट बेस नहीं है और किसी भी तरह के शांति वार्ता के लिए पश्चिमी देशों की सहमति बनना बहुत जरूरी है.
रूस में राष्ट्रवाद बहुत ज्यादा बढ़ गई है और वहां पर ये शुरू से रहा है. पुतिन को वहां की जनता का समर्थन भी हासिल है. दूसरी तरफ जो रूस का पारंपरिक चर्च है उसका भी पुतिन को बहुत बड़ा समर्थन प्राप्त है. इसलिए पुतिन को तो वहां पर कोई खतरा नहीं है. हां, ये जरूर हुआ है कि उसके ऊपर जो प्रतिबंध लगें हैं, उससे उसकी इकॉनोमी काफी हद तक प्रभावित हुई है. अमेरिका और पश्चिमी देशों ने ये सोच कर उसके ऊपर प्रतिबंध लगाए थे कि इससे उसकी अर्थव्यवस्था धराशायी हो जाएगी, पुतिन सरकार के खिलाफ लोग भड़क उठेंगे और वो सत्ता से हटा दिए जाएंगे. युद्ध दो तीन महीने में खत्म हो जाएगी. लेकिन ये सब कुछ नहीं हुआ.
रूस में राष्ट्रवाद बहुत ज्यादा बढ़ गई है और वहां पर ये शुरू से रहा है. पुतिन को वहां की जनता का समर्थन भी हासिल है. दूसरी तरफ जो रूस का पारंपरिक चर्च है उसका भी पुतिन को बहुत बड़ा समर्थन प्राप्त है. इसलिए पुतिन को तो वहां पर कोई खतरा नहीं है. हां, ये जरूर हुआ है कि उसके ऊपर जो प्रतिबंध लगें हैं, उससे उसकी इकॉनोमी काफी हद तक प्रभावित हुई है. अमेरिका और पश्चिमी देशों ने ये सोच कर उसके ऊपर प्रतिबंध लगाए थे कि इससे उसकी अर्थव्यवस्था धराशायी हो जाएगी, पुतिन सरकार के खिलाफ लोग भड़क उठेंगे और वो सत्ता से हटा दिए जाएंगे. युद्ध दो तीन महीने में खत्म हो जाएगी. लेकिन ये सब कुछ नहीं हुआ.
चूंकि रूस के पास काफी रिसोर्सेज हैं और दुनिया में उसके कद्रदान मौजूद हैं. चूंकि वर्ल्ड इकोनॉमी आर्थिक संकट की चपेट में हैं और और रूस काफी सस्ते दामों में तेल और अन्य चीजें बहुत सारे देशों को बेच रहा है. ऐसे में हर कोई रूस से खरीदारी करना चाहता है. कुछ देश तो ऐसे हैं जिनके पास खुद का तेल का भंडार है लेकिन वे रूस से सस्ते दाम में लेकर रिफाइन करके यूरोप में बेच देते हैं. ऐसे में बहुत मुश्किल है और अमेरिका और यूरोप अपने जिद पर अड़े हुए हैं कि वे इस जंग को खत्म नहीं होने देंगे. वे चाहते हैं कि इसमें रूस की हार हो लेकिन ये देखना है कि इसमें आगे क्या होता है.
मुझे नहीं लगता है कि रूस इस जंग में हार जाएगा. चूंकि वह अब तक अपने पुराने सोवियत एरा वाले हथियारों का इस्तेमाल कर रहा है. वह इरान का सस्ता शाहिद ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है. इसलिए वह एक सस्ता युद्ध लड़ रहा है. वह बीच-बीच में जब प्रेशर बढ़ता है तो तब वह सोफिस्टिकेटेड विपेन का इस्तेमाल कर लेता है. ये भी देखना दिलचस्प होगा कि यूरोप और अमेरिका की कैपेसिटी कितनी है और युद्ध कितने दिनों तक चलता है. वे कितने दिनों तक यूक्रेन के साथ खड़े रहते हैं. जहां तक जेलेंस्की का सवाल है तो वो चाहते हैं कि किसी तरह से हमें नाटो की सदस्यता हासिल हो जाए. ताकि यह युद्ध किसी नतीजे पर पहुंच जाए. लेकिन ऐसा होता हुआ नजर नहीं आ रहा है और यह बहुत लंबी खींची हुई नजर आ रही है. एक बात यह भी है कि आज के समय में जंग आप शुरू कर सकते हैं लेकिन उसे खत्म करने का ऑप्शन आपके पास नहीं होता है. चूंकि उसमें फिर बहुत सारे देशों की महत्वाकांक्षा जुड़ जाती है. चूंकि पश्चिमी देशों के जो हथियार बनाने वाले इंडस्टिज हैं, उनको इसका बहुत फायदा होता है. इसलिए भी वे कोशिश करते हैं है कि दुनिया में जंग कहीं न कहीं हमेशा चलती रहे और यूक्रेन में उनको काफी फायदा हो रहा है.
मुझे नहीं लगता है कि रूस इस जंग में हार जाएगा. चूंकि वह अब तक अपने पुराने सोवियत एरा वाले हथियारों का इस्तेमाल कर रहा है. वह इरान का सस्ता शाहिद ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है. इसलिए वह एक सस्ता युद्ध लड़ रहा है. वह बीच-बीच में जब प्रेशर बढ़ता है तो तब वह सोफिस्टिकेटेड विपेन का इस्तेमाल कर लेता है. ये भी देखना दिलचस्प होगा कि यूरोप और अमेरिका की कैपेसिटी कितनी है और युद्ध कितने दिनों तक चलता है. वे कितने दिनों तक यूक्रेन के साथ खड़े रहते हैं. जहां तक जेलेंस्की का सवाल है तो वो चाहते हैं कि किसी तरह से हमें नाटो की सदस्यता हासिल हो जाए. ताकि यह युद्ध किसी नतीजे पर पहुंच जाए. लेकिन ऐसा होता हुआ नजर नहीं आ रहा है और यह बहुत लंबी खींची हुई नजर आ रही है. एक बात यह भी है कि आज के समय में जंग आप शुरू कर सकते हैं लेकिन उसे खत्म करने का ऑप्शन आपके पास नहीं होता है. चूंकि उसमें फिर बहुत सारे देशों की महत्वाकांक्षा जुड़ जाती है. चूंकि पश्चिमी देशों के जो हथियार बनाने वाले इंडस्टिज हैं, उनको इसका बहुत फायदा होता है. इसलिए भी वे कोशिश करते हैं है कि दुनिया में जंग कहीं न कहीं हमेशा चलती रहे और यूक्रेन में उनको काफी फायदा हो रहा है.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]