'केंद्रीय जांच एजेंसियों पर सवाल का कोई मतलब नहीं, लालू यादव परिवार के लिए बढ़ सकता है संकट'
नौकरी के बदले जमीन घोटाले से जुड़े मामले में लालू यादव परिवार से सीबीआई को पूछताछ करनी ही थी क्योंकि बहुत पहले ही यह मामला दर्ज हो गया था. लेकिन शायद लालू यादव की बीमारी या अन्य कारणों से थोड़ा विलंब हुआ. सीबीआई ने कोई पहली बार इस मामले में पूछताछ नहीं की है.
सीबीआई मामला पहले ही दर्ज कर चुकी थी और चार्जशीट दायर करने की तैयारी चल रही थी. तो ये कोई नया मामला नहीं है और जाहिर सी बात है कि जांच अधूरी नहीं छोड़ी जा सकती है. इसलिए सीबीआई को पूछताछ करनी ही थी.
जमीन लेकर नौकरी देने का मामला है और उसके कुछ प्रमाण सामने आ चुके हैं. उन लोगों ने स्वीकार कर लिया है कि हमारे लड़कों को जमीन लेकर रेलवे में नौकरी दी गई. जब प्रमाण सामने आ गए हैं तब लालू यादव और राबड़ी देवी के मुसीबत बढ़नी तो तय ही है.
ये तीसरा मामला है जिसमें लालू यादव संकट में हैं. चारा घोटाला के कई मामलों में उनको सजा हो ही चुकी है. इसके अलावा रेलवे के जिन होटलों का निजीकरण हुआ था, उस मामले में भी जांच चल रही है. सभी को इस बात का ध्यान होगा कि पटना में एक मॉल बन रहा था. लालू यादव के परिवार की उसमें भी हिस्सेदारी थी. इस नजरिए से वो भी एक घोटाले की उपज माना जाता है. विपक्ष कितना भी शोर मचा ले कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है लेकिन कहीं न कहीं हकीकत यह है कि घोटाला और घपलेबाजी तो हुई है और उसको अंजाम तक पहुंचाना ही होगा.
लालू यादव का परिवार सीबीआई के जांच के दायरे में है. सीबीआई ने सिर्फ उस दिशा में एक कदम और बढ़ाया है. इसमें नया कुछ नहीं है. तेजस्वी यादव के घर पर ही सीबीआई को ऑफिस खोलने वाला बयान का कोई विशेष महत्व नहीं है. उनको ये बताना चाहिए कि क्या जमीन के बदले नौकरी देने का जो मामला है उसमें कितनी सच्चाई है या नहीं है. अगर वो इस मामले में कुछ कहें तो तब उनके बयान देने का कोई महत्व है. लेकिन इस तरह का बयान देने का मतलब साफ है कि वो राजनीति में हैं और अपने पक्ष में कुछ बयान देंगे ही. तेजस्वी वहीं करते हुए सीबीआई के दुरुपयोग की बात कर रहे हैं.
सीबीआई और अन्य केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग होता है ये कोई नया आरोप नहीं है. किसी की भी सरकार रही हो केंद्र में सब पर ये आरोप लगता रहा है कि वो केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करती है. राजनीतिक मामलों में लोगों को फंसाने का काम करती है. इन आरोपों को निराधार भी नहीं कहा जा सकता है.
लेकिन जिन मामलों में सीबीआई जांच कर रही है उन्हें भी निराधार नहीं कहा जा सकता है. कुछ न कुछ तो सच्चाई है और चारा घोटाले में तो अदालतें पांच मामलों में लालू यादव को सजा सुना चुकी है. अगर कोई ये कह दे कि चारा घोटाला कुछ नहीं था तो यह बात तो स्वीकार नहीं किया जा सकता है. जो सच्चाई थी वो सामने आ चुकी है और उसके एवज में लालू यादव को सजा भी सुनाई जा चुकी है.
ये बात अवश्य है कि सीबीआई या अन्य केंद्रीय एजेंसियों के माध्यम से जिन मामलों में जांच की जाती है, उनमें समय बहुत लगता है. इस पर तो सवाल उठाया जा सकता है कि कोई मामला कितने वर्षों तक जांच प्रक्रिया के अधीन रहेगी. लेकिन राजद परिवार और उसके समर्थक ये नहीं कह सकते हैं कि कहीं कोई घोटाला हुआ ही नहीं है क्योंकि घोटाला हुआ है और इसके प्रथम दृष्टया प्रमाण आ चुके हैं.
विपक्ष के आरोप अपनी जगह हैं लेकिन जांच एजेंसियां जो कुछ सामने रख रही हैं और अदालतें जिस तरह से उनका संज्ञान ले रही हैं, उससे तो यही लगता है कि चाहे मनीष सिसोदिया का मामला हो या लालू यादव का मामला हो, दाल में काफी कुछ काला है. अभी तीन चार दिन पहले आठ विपक्षी दलों ने मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के मामले में चिट्ठी लिखी थी कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है. अब चिट्ठी लिखने वालों में तृणमूल कांग्रेस भी थी और तृणमूल कांग्रेस के कई नेता केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच-पड़ताल का सामना कर रहे हैं. अब इन मामलों में क्या सच्चाई है या नहीं है इसका निर्धारण तो भविष्य में होगा. लेकिन यह एक सच्चाई है कि बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाला हुआ था. विभाग के जो कर्मी थे उनकी देखरेख में या उनकी जानकारी में ये घोटाला हुआ था. उनकी एक करीबी अर्पिता मुखर्जी के यहां से नोटों के बंडल मिले थे, जिसे पूरे देश ने देखा. अर्पिता मुखर्जी और पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी भी हुई, जिसे भी पूरे देश ने देखा.
इन सब बातों के होते हुए ये कहना कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है, ये बात गले के नीचे उतरती नहीं है क्योंकि अर्पिता मुखर्जी के यहां करोड़ों रुपये की नकदी मिली और शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर हुई. ये महज आरोप मात्र नहीं है कि शिक्षक भर्ती में घोटाला हुआ था बल्कि जांच ने ये साबित किया है. जिस तरह से पहले वाली लिस्ट आई थी जिसमें अभ्यर्थी चयनित किए गए थे, उसको वापस ले लिया गया और उसे बदल दिया गया. जो लोग इस घोटाले के लाभार्थी हैं वो भी सामने आ चुके हैं और जो लोग इससे पीड़ित रहे हैं यानी वास्तव में जिनका चयन हुआ था या होना चाहिए था वो भी सामने आ चुके हैं.
नकदी बरामद हो चुकी है और दस्तावेज भी मिले हैं.
देखिये, लालू परिवार का संकट बढ़ता हुआ ही नजर आ रहा है क्योंकि अब तक के सीबीआई जांच में जो तथ्य सामने आए हैं वो कहीं न कहीं इस बात की पुष्टि करते हैं कि लालू यादव ने रेल मंत्री रहते हुए अपने बिहार के लोगों से जमीन ली और उसके दस्तावेज सामने आ चुके हैं. ऐसे में लालू यादव इस मामले में उसी तरह सजा पा सकते हैं जिस तरह से उन्हें चारा घोटाला के पांच मामलों में सजा सुनाई गई थी.
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