(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
'भारत रत्नों' से मंडल-कमंडल और किसान-ईबीसी के वोटिंग ब्लॉक्स को साध रहे हैं पीएम मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चौंकाऊ फैसलों के लिए जाने जाते हैं. अंतिम पल तक खबरें लीक न होने देने के लिए भी. इसीलिए, जब कल यानी शुक्रवार 9 फरवरी को उन्होंने एक्स (पहले ट्विटर) पर एक के बाद एक तीन भारत-रत्न सम्मानों की घोषणा की, तो पूरा देश आश्चर्य में पड़ गया. तीनों नाम भी ऐसे थे, जिनमें से दो राजनीति के होते हुए भी जिनका भाजपा या उसके पहले जनसंघ से कोई लेना-देना नहीं था, बल्कि एक तो लगातार मोदी के निशाने पर रहनेवाली पार्टी कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव थे. जिस तरह कर्पूरी ठाकुर के नाम ने चौंकाया, लालकृष्ण आडवाणी के नाम ने आश्वस्त किया, उसी तरह जनता को नरसिंह राव के नाम ने चमत्कृत किया, चौधरी चरण सिंह के नाम ने थोड़ा ही सही, लेकिन झटका दिया और एम एस स्वामीनाथन के नाम ने आश्वस्त किया. अब तक कुल पांच घोषित भारत-रत्नों से मोदी 2024 के आम चुनाव की राजनीति साध रहे हैं, ऐसा भी कहा गया.
को-ऑप्ट करने के माहिर हैं मोदी
मोदी का शासनकाल नए नायकों को गढ़ने के लिए याद रखा जाएगा. अब तक के नेहरू-गांधी युग से देश की स्मृति को तड़ित के झटके देकर बाहर निकालने के लिए भी जाना जाएगा. इसीलिए, कई बार मोदी के विरोधी यह भी आरोप लगाते हैं कि भाजपा या उसकी मातृ-संस्था आरएसएस के पास चूंकि अपने नायक नहीं हैं, इसलिए वह उधार के नायक ले रहे हैं. भीमराव अंबेडकर को भारत-रत्न भले 1990 में वी पी सिंह की सरकार ने दिया था, लेकिन उसमें भाजपा का समर्थन शामिल था. नरेंद्र मोदी की सरकार ने आंबेडकर के जितने स्मारक बनाए, जिस तरह बार-बार उनको याद किया और लोगों को याद दिलाया, वह हम सभी ने देखा है. इसमें यह छिपी हुई व्यंजना भी देखनी चाहिए कि कांग्रेस ने आंबेडकर को वह सम्मान नहीं दिया, जिसके वह हकदार थे. उसके बाद सरदार पटेल की सबसे बड़ी मूर्ति बनाना हो या सुभाष बोस की मूर्ति को कर्तव्य पथ पर लगाना, मोदी लगातार बहुत सलीके से नेहरू और गांधी के पूरे देश के मानस पर छाए कब्जे को हटाते चले गए और कांग्रेस के कब्जे से देश के मानस को मुक्त करते गए. इन सब में एक बात समान रही. वह ये बताने की थी कि कांग्रेस ने केवल एक खानदान और एक नाम को ही जीवित रखा. आंबेडकर और सुभाष बाबू तो एक पल को कांग्रेसी नहीं भी थे, लेकिन सरदार पटेल को भी जिस तरह से मोदी ने को-ऑप्ट कर लिया, वह बताता है कि उनका असल लक्ष्य कहां था और इन भारत-रत्नों की घोषणा से मोदी वहीं निशाना साध रहे हैं.
कांग्रेस पर है यह वज्र-प्रहार
नरसिंह राव को भारत-रत्न देकर प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस की दुखती रग पर हाथ दे दिया है. इसके जरिए उन्होंने न केवल उत्तर-दक्षिण भारत के बीच विभाजनकारी बातों को दबाने की कोशिश की है, यहां ध्यान रखना होगा कि कृषि विज्ञानी एम एस स्वामीनाथन भी दक्षिण भारतीय ही हैं, बल्कि सोनिया गांधी के लिए खासी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. पीएम मोदी ने पहला निशाना तो यह साधा कि जब बात सम्मान देने की आती है, तो वह दलगत आधार पर विभाजन नहीं करते और देश की अर्थव्यवस्था को खोलनेवाले, देश को नए युग में ले जानेवाले नायकों जैसे नरसिंह राव का भी सम्मान करते हैं, भले ही वह कांग्रेस से ही क्यों न हों? दूसरा निशाना यह कि नरसिंह राव की चर्चा के साथ ही कांग्रेस के 'क्लोजेट' यानी आलमारी से बहुतेरी पुरानी बातें भी निकलेंगी, जैसे किस तरह नरसिंह राव के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार भी दिल्ली में नहीं होने दिया गया, या उनके शव को कांग्रेस दफ्तर में दर्शनों के लिए भी नहीं रखा गया, या उनको वह सम्मान नहीं दिया गया जिसके वह हकदार थे, बल्कि कांग्रेस की कई भूलों के लिए उन्हें बलि का बकरा बना दिया गया. देश के पूर्व राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने 'प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रिमैम्बर्स' किताब में उस घटना का जिक्र किया है, जब नरसिंह राव का पार्थिव शरीर कांग्रेस दफ्तर के बाहर आया, लेकिन उसे सोनिया गांधी ने अंदर नहीं जाने दिया. यही बात नरसिंह राव के पोते ने भी कही है. प्रधानमंत्री मोदी ने तीसरा औऱ सबसे बड़ा निशाना दक्षिण औऱ उत्तर के विभाजन को मिटाने के लिए दक्षिण को साफ संदेश देकर साधा है. उन्होंने यह साफ कर दिया है कि उनके लिए यह विभाजन मायने नहीं रखता है, जिसकी बात कांग्रेस कर रही है. पी वी नरसिंह राव को भारत रत्न देकर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के मतदाताओं को मोदी ने अपने साथ लाने की जुगत बिठा दी है, लेकिन सोशल मीडिया के इस जमाने में कांग्रेस की मुश्किलें बहुत बढ़ा दी हैं.
मंडल-कमंडल और किसानी सबको साधा
प्रधानमंत्री मोदी ने आडवाणी को भारत-रत्न की घोषणा कर भाजपा के कोर वोटरों को पहले ही खुश कर दिया है, जो उग्र हिंदुत्व की अपेक्षा इस पार्टी से रखते हैं. उनके साथ ही कर्पूरी ठाकुर को भारत-रत्न देकर उन्होंने कमंडल को भी साधने की कोशिश की है. बिहार में नाई अति पिछड़ा वर्ग में आते हैं और नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव ने गुरु होते हुए भी कर्पूरी ठाकुर को जुबानी जमाखर्च के वह सम्मान कभी नहीं दिया, जिसके वह हकदार थे. भले ही उनको भारत-रत्न की घोषणा होते ही राजद और जेडीयू ने पुरानी फाइल खबरें लगा दीं कि उन्होंने तो पहले ही मांग की थी, लेकिन लालू हों या नीतीश, दोनों ही मुख्यमंत्री भी रहे, केंद्र सरकार में ताकतवर मंत्री भी, लेकिन कर्पूरी ठाकुर को भारत-रत्न देकर मोदी ने यह उपलब्धि भी अपने खाते में डाल ली. अब राहुल गांधी जितना भी ओबीसी का हल्ला कर लें, या मोदी की जाति पर ही शंका उठा दें, लेकिन संदेश जहां तक जाना था, वह जा चुका है.
एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न देकर दक्षिण भारत को एक और संदेश तो दिया ही गया है, उसके साथ ही किसानी का जो बौद्धिक वर्ग है, उसको भी साधा गया है. जिन स्वामीनाथन ने भारत को हरित क्रांति की राह दिखाई, उनको भारत-रत्न का सम्मान देना, देर से उठाया गया एक सही कदम है और इसका अकादमिकों, बौद्धिकों और देश के कृषि-वैज्ञानिकों में गहरा संदेश जाएगा. वहीं, चौधरी चरण सिंह को भारत-रत्न देकर पीएम मोदी ने ऐसा मास्टरस्ट्रोक दिया है, जिससे सपा भी हतप्रभ है और कांग्रेस भी. स्वागत तो इसका सबको करना ही पड़ेगा. चौधरी चरण सिंह किसानी को जमीनी स्तर पर लड़ने वाले नेता थे और जो किसान मिट्टी से जुड़ा, वह चौधरी साहब से जुड़ा. बोट क्लब पर हुक्का पीकर बड़ी सरकारों को हिला देने वाले, मोरारजी देसाई को पीएम पद से हटवाने वाले चौधरी चरण सिंह एक ऐसे किसान नेता हैं, जिनको भारत के किसी भी कोने का किसान कम से कम नाम से तो जानता ही है. इसकी वजह उनकी संगठन क्षमता और अटूट समर्थन है. इस तीर से पीएम मोदी ने न केवल जयंत चौधरी को काबू में किया है, बल्कि आगे होनेवाले किसान आंदोलन की लौ भी धीमी कर दी है, जिसके लिए राकेश टिकैत तैयारी कर रहे हैं.
मोदी का आत्मविश्वास काबिलेगौर
प्रधानमंत्री मोदी ने जब सदन में भाजपा को 370 सीटें अपने दम पर आने की बात कहीं, तो शायद वे ये सारा गुणा-गणित बिठा चुके थे, समीकरण कर चुके थे. उनको भाजपा की कमजोरी भी पता है और मजबूती भी. उनको यह भी पता है कि किस विरोधी को गाजर देनी है और किसको छड़ी दिखानी है. बिहार में लोकसभा चुनाव में अगर नीतीश-लालू की युति बनी रहती तो भाजपा के लिए मुश्किल थी, इसलिए कड़वे घूंट की तरह भाजपा ने नीतीश को साथ लिया. वहीं, मोहन यादव को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर और कर्पूरी ठाकुर को भारत-रत्न देकर पिछड़ों के एक बड़े ब्लॉक यानी यादव समाज और अति पिछड़ों के एक वर्ग को बड़ा संदेश भी दिया है. यूपी में वह जाटों को अगर साध रहे, तो किसानों को भी. नरसिंह राव के जरिए कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाईं तो तेलंगाना में इस बार के चुनाव में लगायी गयी सेंध को और बड़ा करने का जुगाड़ भी बिठा लिया. ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री जो भविष्यवाणी कर रहे थे, वह सही भी हो सकती है.
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