BLOG: विकास और ऐतिहासिक धरोहर को संजोने का नायाब उदाहरण है नीदरलैंड की ये मूर्ति
यूरोप में जिस तरह अपनी सांस्कृतिक विरासत और धरोहर को सहज और संजोकर रखा जाता है उसकी तुलना भारत जैसे किसी देश से की जाए, जिसका इतिहास पांच हजार साल पुराना हो तो अचंभे जैसे लगता है. लेकिन फिर जैसाकि किसी विशेषज्ञ ने कहा है, "प्रगतिशील देशों को अपने भविष्य की चिंता ज्यादा रहती है". और शायद उसी चिंता में वे अपनी अतीत और इतिहास को भूल से जाते हैं.
नीदरलैंड की खूबसूरत पार्लियमेंट बिल्डिंग को तस्वीरों में उतारते हुए यकायक ही ध्यान घोड़े पर सवार एक योद्धा की मूर्ति की और चला जाता है. नीदरलैंड की सत्ता के केंद्र, द-हेग (डेन हाग) के सेंटर में बड़े बड़े मॉल, फैशन स्टोर, कैफे और ट्रैम ट्रैन शहर के बीच से गुजरती है. विदेशी पर्यटक, वैन गोग की धरती पर निओ-रेनांसा ('रेनैस्सेंस') इमारतों की आकर्षक वास्तुकला से प्रभावित होकर सेल्फी लेने में वयस्त रहते हैं. ट्रैम और सड़क पर आकर्षक स्थानीय डच निवासी साईकिल पर अपनी धुन में चले जा रहे हैं. इन सबके बावजूद हरे रंगे के योद्धा की मूर्ति एक मिलिट्री-कोरेसपोंडेंट और इतिहास के छात्र का ध्यान खीचने में कामयाब हो ही जाती है.
मूर्ति के नीचे योद्धा का नाम लिखा है, कोनिंग विलियम द्वितीय. एक हाथ में लंबी तलवार और दूसरे हाथ से अपने हैट को हवा में लहरा रहा है जैसे कि किसी किले को फतह करके आया है. बाकी मूर्ति के नीचे डच भाषा में कुछ लिखा है, जिसपर नीदरलैंड के सिवाए कुछ और समझ नहीं आता. लेकिन मूर्ति के पीछे जो लिखा था, वो काफी था कि ये योद्धा उस देश की सत्ता के केंद्र में क्यों है जो अब एक विकसित देशों की श्रेणी में शुमार है. वो देश जो प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भी तटस्थ रहा था जब पूरा यूरोप जंग की आग में झुलस रहा था. यानि इतिहास को संजोकर कैसे रख रखा जाता है वो इस पृथ्वी पर यूरोप के देशों से बेहतर ही कोई जान सकता है.
ऐतिहासिक-धरोहर को आधुनिक जीवन शैली के साथ कैसे एक साथ पिरोया जा सकता है, वो नीदरलैंड और फ्रांस की हाल की यात्रा के दौरान करीब से जानने का मौका लगा. ना केवल पिरोया जा सकता है कहीं कहीं तो ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों एक साथ चलते हैं पैरलल-पटरियों पर दौड़ रहे हैं. फ्रांस के पुर्नजागरण-काल का शहर, बोरदू हो या फिर स्पेन की सीमा के करीब फ्रांसीसी वायुसेना के एयरबेस-शहर, मोंट दे मारसान (मॉ द मारशा) में सभी जगह सांस्कृतिक-विरासत और धरोहर को बेहद ही सहजता से सहज कर रखा गया है. मार्डन शहरों की चकाचौंध के बावजूद इतिहास इन शहरों में बेहद सजीव है, जिंदा दिखाई पड़ता है. नीदरलैंड का शहर, डेन हाग (द-हेग) भी ऐसा ही, जहां वो हरे रंग की मूर्ति शहर के सेंटर में दिखाई पड़ी थी.
उस हरी मूर्ति के पीछे लिखा था 'बैटेल ऑफ वॉटरलू'. यानि ये मूर्ति उसी कोनिंग विलियम-द्वितीय की है जो वाटरलू की लड़ाई (वर्ष 1815) में इतिहास के सबसे महान यौद्धाओं में से एक नेपोलियन बोनापार्ट के खिलाफ लड़ा था. वो लड़ाई, जो फ्रांस के महान शासक, नेपोलियन-द्वितीय, की आखिरी लड़ाई थी. वो नेपोलियन बोनापार्ट जिसका एक लंबे समय तक पूरे यूरोप पर एकाधिकार था और जिसके युद्ध-कौशल को आज भी मिलिट्री कमांडर्स गहनता से स्टडी करते हैं. उसी नेपोलियन को हराने वाली ('गठजोड़') सेना का कमांडर था डच जनरल, कोनिंग विलियम.
19वीं सदी की शुरूआत में यानि 18 जून 1815 को बैटेल ऑफ वाटरलू में नेपोलियन को हराने के लिए फ्रांस के खिलाफ यूरोप के कई देशों (इंग्लैंड, नीदरलैंड, प्रशिया इत्यादि) ने एक गठबंधन बनाया और नीदरलैंड के वाटरलू में दुनिया के सबसे महान यौद्धाओं में से एक नेपोलियन को हरा दिया था, जिसके चलते ये युद्ध इतिहास के सुनहरे पन्नों में हमेशा हमेशा के लिए दर्ज हो गया. साथ ही जिन सैन्य-कमांडर्स ने नेपोलियन को हराया वे भी इतिहास के पन्नों में शुमार हो गए. जैसाकि, डच जनरल कोनिंग विलियम. वाटरलू शहर, हालांकि अब बेल्जियम का हिस्सा है.
नीदरलैंड जिसे दुनिया हॉलैंड के नाम से भी जानती है बेहद ही शांति-प्रिय देश है. डच सेना ने वाटरलू में नेपोलियन को जरूर हराया हो लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध में हिस्सा नहीं लिया था. शायद यही वजह है कि नीदरलैंड के डेन हाग (यानि द-हेग) में ही है 'पीस-पैलेस', जहां हैं दुनिया की सबसे बड़ी अदालत, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे). प्रथम विश्वयुद्ध के तुरंत बाद से ही इस शांति-महल में अंतर्राष्ट्रीय-अदालत है, जो 1946 से संयुक्त-राष्ट्र के तत्वाधान में आईसीजे के नाम से अलग-अलग देशों के बीच पैदा हुए विवादों का निपटारा करती आई है.
हाल ही में भारतीय नौसेना के पूर्व कमांडर, कुलभूषण जाधव के मामले की कवरेज के दौरान नीदरलैंड जाना हुआ. आईसीजे के विजिटिंग-आऊटलैट पर भी बमों के डमी मिल रहे थे. लेकिन ये बम, शांति के बम थे जिनमें पोपी-सीड भरे थे. पोपी (यानि पोस्त) के फूल को दुनियाभर में शांति का प्रतीक जो माना जाता है.
नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम है, लेकिन संसद से लेकर कैबिनट तक सब डेन-हाग (द-हेग) में ही हैं. इसी यात्रा के दौरान नीदरलैंड और फ्रांस के इतिहास और ऐतिहासिक धरोहर को करीब से देखने का मौका मिला. हालांकि, इतिहास का छात्र होने के चलते यूरोप के इतिहास, संस्कृति और लड़ाईयों को किताबों में पढ़ा जरूर था, लेकिन यूरोप की ये यात्रा एक प्रैक्टिल-लैब के तौर पर साबित हुई.
यूरोप में जिस तरह अपनी सांस्कृतिक विरासत और धरोहर को सहज और संजोकर रखा जाता है उसकी तुलना भारत जैसे किसी देश से की जाए, जिसका इतिहास पांच हजार साल पुराना हो तो अचंभे जैसे लगता है. लेकिन फिर जैसाकि किसी विशेषज्ञ ने कहा है, "प्रगतिशील देशों को अपने भविष्य की चिंता ज्यादा रहती है". और शायद उसी चिंता में वे अपनी अतीत और इतिहास को भूल से जाते हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)