नई दिल्लीः पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कल तक राजदार रहे शुभेंदु अधिकारी को विधायक दल का नेता बनाकर बीजेपी ने सियासी शतरंज की वो चाल खेली है, जो आने वाले दिनों में तृणमूल कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन सकती है. अधिकारी की तरह ही टीएमसी छोड़कर बीजेपी में आये मुकुल रॉय के मुकाबले अधिकारी को नेता सिर्फ इसलिये ही नहीं बनाया गया कि उन्होंने नंदीग्राम में ममता को पटखनी दी है. बीजेपी के सूत्रों की मानें, तो इसके और भी कई कारण हैं जो बंगाल की भविष्य की राजनीति की दशा-दिशा तय करने के साथ ही कुछेक उलटफेर को भी अंजाम दे सकते हैं. 


यह सही है कि मुकुल के मुकाबले अधिकारी के पास संसदीय अनुभव ज्यादा है. लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि ममता के साथ ही उनके नजदीकियों की जो कमियां हैं, उसका राज शुभेंदु से बेहतर शायद ही कोई और जानता हो. दरअसल, बीजेपी की रणनीति है कि पिछली ममता सरकार के कथित भ्रष्टाचार की जो लड़ाई अब तक सड़कों पर लड़ी जा रही थी, उसे अब दमदार तरीके से विधानसभा के भीतर कुछ ऐसे लड़ा जाएगा कि हर रोज सरकार को शर्मिन्दगी उठानी पड़े. यह ठीक है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास इतना अधिक बहुमत है कि उनकी सरकार को 77 विधायकों वाले विपक्ष से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. लेकिन जब मुख्यमंत्री के नजदीकी रिश्तेदारों के कथित कारनामों से जुड़े दस्तावेज अगर विपक्ष का नेता सदन में लहराने लगे, तब सरकार की हालत इतनी पतली हो ही जाती है कि उसे अपने बचाव में तमाम तरह के तर्क गढ़ने पड़ते हैं. केइसी बजी सरकार के लिए यह स्थिति बेचारगी वाली ही होती है और तब विपक्ष को और ज्यादा हमलावर होने का मौका मिलता है. 


कुछ यही रणनीति बीजेपी ने भी तैयार कर रखी है. दावा तो यह भी किया जा रहा है कि शुभेंदु अधिकारी के पास पिछली सरकार में मंत्री रहे टीएमसी नेताओं के कथित घोटालों से जुड़े दस्तावेज भी हैं, जो सामने आने पर सरकार की नींद उड़ाने के लिए पर्याप्त हैं. बताया गया है कि उनमें से कुछ इस सरकार में भी मंत्री बन गए हैं. शुभेंदु के जरिये बीजेपी की रणनीति है कि ऐसे सभी मंत्रियों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों से जांच करवा कर ममता सरकार के लिये मुश्किलें पैदा की जाएं. 


जाहिर है कि ममता अपनी सरकार के किसी भी मंत्री के खिलाफ केंद्रीय एजेंसी से जांच कराने की मांग सिरे से ठुकरा देंगी. ऐसे में राज्यपाल के अलावा न्यायपालिका के विकल्प को आजमाकर सरकार की इमेज पर बट्टा लगाने की सियासत परवान चढ़ेगी. बताते हैं कि शुभेंदु बीजेपी में आने से पहले तक ममता को अपना राजनीतिक गुरू मानते रहे हैं और बदले में ममता ने भी उन्हें अपना सबसे भरोसेमंद शिष्य मान रखा था. लेकिन अब बंगाल की विधानसभा गुरु-शिष्य परंपरा का एक ऐसा नया रुप देखेगी, जहां हर रोज भरोसे की धज्जियां उड़ रही होंगी.