तिरुमाला बालाजी प्रसाद को लेकर जिस प्रकार की रिपोर्ट आयी थी, उससे देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर के आस्थावान हिन्दुओं को बहुत गहरा धक्का पहुंचा है. हालांकि, हमारे हिन्दू समाज में कभी भी ये संस्कार और चरित्र नहीं पैदा हुआ कि गलत के खिलाफ सड़कों पर उतरें और सुधार की कोशिश करें. यहां तो सबकुछ होता रहता है, लेकिन कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं होता है. जम्मू कश्मीर से गैर मुस्लिमों को 90 के दशक में निकाला गया. मस्जिदों से एलान हुए कि चले जाओ. देश में इसके खिलाफ कहीं भी लंबा आंदोलन नहीं हुआ.


ये दुर्भाग्य है और इसके चलते ही बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं. क्योंकि अगर कोई समाज अपने विषय को लेकर खड़ा नहीं है तो उसमें राजनीति भी होती है, वो कानूनी पचड़े में फंसता है. उसमें सुधार नहीं होता है.


सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू को कहा है कि वे सार्वजनिक तौर पर बयान देने से पहले खुद क्यों नहीं उसकी जांच की. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर कुछ भी कहने से पहले मैं ये कहना चाहूंगा कि कल्पना करिए कि ये किसी दूसरे धर्म के किसी और विषय में ऐसा हुआ होता तो, क्योंकि प्रसाद का कॉन्सेप्ट तो सिर्फ हिन्दू धर्म में है, हिन्दू के कर्म-कांड में है, जबकि बाकियों में नहीं है. 


अपवित्रिकरण की साजिश?  


इसी तरह से कोई और अपवित्रिकरण की घटना हुई होती तो आज देश की क्या स्थिति होती. दूसरा ये कि सुप्रीम कोर्ट ने अगर उन मामलों में टिप्पणी की होती तो क्या वो समुदाय, वो समाज इसी रुप से में शांत होकर चुपचाप बैठ जाता, जैसे इस समय सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर हमारा देश खासकर हिन्दू समाज शांत है. इस चरित्र को देखने से ही ऐसा लगता है कि अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने के पहले थोड़ा सा धैर्य रखना चाहिए.  


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो कुछ भी प्रथम दृष्टया हम को मिला है, उसमें मिलावट का कोई ठोस या निर्णायक सबूत नहीं है. कोर्ट का सवाल है कि संवैधानिक पद पर बैठे हुए मुख्यमंत्री ने फिर किस आधार पर ये बयान दिया है. कोर्ट ने लिखा है कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है. उन्हें बिना पुष्टि के सार्वजनिक रुप से ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था, जो करोड़ों लोगों की भावनाओं को प्रभावित करे.


फिर इसके आगे कोर्ट ने कहा कि कम से कम भगवान को जरूर राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए था. कोर्ट ने कहा कि 3 अक्टूबर को सुनवाई है, उस दिन हम ये देखेंगे. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने 18 सितंबर को बयान दिया था कि जगन मोहन रेड्डी सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान तिरुपति के लड्डुओं में पशुओं की चर्बी मिलाकर घी का इस्तेमाल हुआ है.


मिलावटी घी पर सवाल


उन्होंने घी में मिलावट की रिपोर्ट को भी सार्वजनिक की थी. साथ ही, बताया था कि गुजरात डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की जो लेबोरेट्री है, उन्होंने उसकी रिपोर्ट सामने रखी थी. इस रिपोर्ट में मिलावट देखी गई थी और वो मिलावट ऐसी थी कि सुनने पर आदमी सन्न रह जाता था. 


ये सामान्य स्थिति नहीं थी, जिसे आसानी से स्वीकार किया जाता. जाहिर है कि ये एक बड़ा विषय था. गुजरात की लैब- सेंटर ऑफ एनालिसिस इन लर्निंग एंड लाइव स्टॉक एंड फूड, जिसकी रिपोर्ट पेश की गई थी. 9 जुलाई 2024 को उस लैब में लड्डू का नमूना दिया गया था. 16 जुलाई को उसने रिपोर्ट सौंपी थी. उस रिपोर्ट में ये था कि गाय के घी में सोयाबीन, अलसी, जैतून, गेंहू की फलिया, मक्का, कपास के बीज के साथ-साथ मछली का तेल, बीफ टैलो, पाम तेल और सुअर की चर्बी शामिल है. इसके अलावा, व्हाइट फैट जिसे लार्ड कहते हैं, वो भी इसमें शामिल था. 


यानी, लड्डू में मछली तेल, सुअर की चर्बी और बीफ की जो बात है, वो क्या गुजरात डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड की सीएलएफ लेबोरेट्री ने गलत रिपोर्ट दी है या फिर उसमें ये लिखा है कि इसमें ऐसी आशंका है.


ऐसे में कोर्ट ने जरूर ये टिप्पण की है. कोर्ट ने ये नहीं कहा है कि उसमें मिलावट नहीं हुई है. कोर्ट ने कहा कि कानून को क्योंकि ठोस सबूत चाहिए, इसलिए कानून के जो मानक है कि किसी फूड में मिलावट की रिपोर्ट कब स्वीकार की जाती है, ये स्टैंडर्ड मानक के आधार पर बोल रहा है कि वो अभी ये नहीं है. कोर्ट ने कहा है कि इसको अगले फेज की जांच करके और उसके बाद जो स्टैंडर्ड मानक है, उस आधार पर जारी किया जाएगा, तब माना जाएगा.


 कोर्ट ने अभी ये नहीं कहा है कि उसमें मिलावट नहीं की गई थी. कोर्ट ने ये कहा कि जो निर्णायक ठोस सबूत चाहिए, वो देखने से पर्याप्त नहीं हैं और इसलिए पहले उनको ये बयान नहीं देना चाहिए था. हालांकि, उसके बाद काफी सुधार हुआ है. मंदिर का पवित्रिकरण किया गया है. जो लोग ये कह रहे थे कि बीजेपी गोमूत्र की पार्टी है, उसी गोमूत्र से अपने आपको सेक्यूलर कहने वाले एन. चंद्रबाबू नायडू ने मंदिर का पवित्रिकरण किया है.


लोग इस पर काफी प्रायश्चित कर रहे हैं. लोग बाल मुंडवा रहे हैं. लेकिन ये भी समझने की जरूरत है कि तिरुपति बोर्ड अगर 320 रुपये किलो घी दिया था, तो ये जरूर समझना चाहिए कि इतने कम पैसे में शुद्ध घी नहीं मिल सकता है. ऐसे में ठीक प्रकार से जांच के बाद जरूर कोर्ट अपना फैसला दे.. साथ ही, जो वैष्णव सम्प्रदाय के लोग, मठ इत्यादि पक्षों को कोर्ट पर दबाव बनाना चाहिए, कि सच क्या है, इसका पता लगाए.


ये बात जरूर है कि उनके धुर विरोध जगनमोहन रेड्डी है, उनके उभरने से एक तरह से टीडीपी खत्म सी हो गई थी. ऐसे में इस लिहाज से भी जरूर देखने की जरूरत है. जगनमोहन रेड्डी ने इस बारे में पत्र भी लिखा है. अगर राजनीति के लिहाज से एन. चंद्रबाबू नायडू ने बोला है तो जरूर उनको कुर्सी छोड़नी चाहिए. लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो फिर जरूर इसकी पर्याप्त जांच होनी चाहिए.


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