हाल के दिनों में जिस तरीके से वारिस पंजाब दे के प्रमुख अमृतपाल सिंह उभरकर सामने आया है, उसने सबको हैरान किया है. इधर, ब्रिटेन से लेकर सैन फ्रांसिस्को तक खालिस्तान के समर्थन में प्रदर्शन... दरअसल, हमारे देश के अंदर जो कमजोर कड़ी हैं, उन पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI काम करती है. आईएसआई में एक सेल है भारत को तोड़ने के लिए, जो हमारे कमजोर पहलुओं जैसे जातिवाद, थिरका वराना, उनके लिए संवेदनशीलता दिखाना, ये कुछ ऐसे मुद्दें हैं जिसको वो टारगेट करते हैं. पंजाब में काफी संवेदनशील आबादी है, उसे वो हवा देते रहते हैं. कभी वो किसान आंदोलन में इनफिल्टरेट कर जाते हैं. खालिस्तान उन्हीं का क्रिएशन है. उनके तार दूर तक जुड़े हुए हैं जैसे कनाडा आदि देशों में भी हैं. हिंदुस्तान को बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहते हैं. वैसे मुल्क जो कभी भारत के सामने भीख का कटोरा लेकर खड़ा रहा है, वो हमारी तरक्की नहीं देख सकते. ISI इसी काम में लगा है और खालिस्तान तो कहीं है ही नहीं, अब वो बस केवल एक नाम है.
लेकिन ऐसी एजेंसी जो भारत को अस्थिर करने के लिए वैश्विक स्तर पर कार्य कर रही हैं, मैं उन संगठनों का नाम नहीं लेना चाहता. लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि उन सभी का प्रतिनिधित्व पाकिस्तानी ISI ही करता रहा है और वो दुनिया के कई देशों में फैले हुए हैं. भारत के अंदर जो धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता है और उसके बीच जो कमजोर पहलू हैं. उसका इस्तेमाल करते हुए माहौल को अशांत करने का काम आईएसआई करती है...तो हमें अपने देश के अंदर जो जाति-पाति का जहर है उसे खत्म करना पड़ेगा. इस दिशा में युवा आगे बढ़ रहे हैं. वे अब अंतरजातीय विवाह कर रहे हैं.
मेरा मानना है कि अगले 30 से 40 वर्षों में ये सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी. जहां तक इंटर रिलिजन विवाह की बात है तो हिंदू, बौद्ध और सिख समुदाय के लोगों को तो संविधान में एक ही धर्म माना गया है. अगर इनकी गहराई में जाकर अध्ययन करते हैं तो सिखिज्म तो एक रिप्रेशन के खिलाफ खड़े हुए थे. जातियों में विभक्त होने से ही दलितों को मंदिरों में, गुरुदारे में जाने से रोका गया और रिप्रेशन शुरू हो गए जैसे पंजाब में किश्चिटि उफर कर आ गया तो मेरा मानना है कि सोशल स्ट्रक्चर भी इंटरमिक्स होना बहुत जरूरी है. पहले जब अंतर जातिय हो जाएंगे तो ये आगे इंटर रिलिजन भी हो जायेगा.
पहले की लड़ाई और अब की लड़ाई में परिवर्तन आया है. पहले हम बॉर्डर पर आमने-सामने की लड़ाई लड़ते थे, लेकिन अब यह हाईब्रिड वॉरफेयर में तब्दील हो चुका है. अब चूंकि जो परमाणु हथियार से संपन्न राष्ट्र हैं वो अंदर से देश को तोड़न और लड़ाई लगाने का काम करेंगे. आंतरिक सुरक्षा को क्षति पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया पर धार्मिक-सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए अफवाहे फैला दी जाती हैं और ड्रोन का इस्तेमाल से अवैध हथियारों की आपूर्ति करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. चूंकि इंटरनेट के आ जाने से हम एक ग्लोबल विलेज बन गए हैं तो इसे रोका भी नहीं जा सकता है लेकिन जहां तक हमारी सुरक्षा एजेंसियों का सवाल है तो आईएसआई की गतिविधियों पर नजर रख रही हैं. पाकिस्तान की माली हालत इनती खराब हो चुकी है.
पहले की लड़ाई और अब की लड़ाई में परिवर्तन आया है. पहले हम बॉर्डर पर आमने-सामने की लड़ाई लड़ते थे, लेकिन अब यह हाईब्रिड वॉरफेयर में तब्दील हो चुका है. अब चूंकि जो परमाणु हथियार से संपन्न राष्ट्र हैं वो अंदर से देश को तोड़न और लड़ाई लगाने का काम करेंगे. आंतरिक सुरक्षा को क्षति पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया पर धार्मिक-सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए अफवाहे फैला दी जाती हैं और ड्रोन का इस्तेमाल से अवैध हथियारों की आपूर्ति करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. चूंकि इंटरनेट के आ जाने से हम एक ग्लोबल विलेज बन गए हैं तो इसे रोका भी नहीं जा सकता है लेकिन जहां तक हमारी सुरक्षा एजेंसियों का सवाल है तो आईएसआई की गतिविधियों पर नजर रख रही हैं. पाकिस्तान की माली हालत इनती खराब हो चुकी है.
पाकिस्तान की वैसी ही हालत है, उनके यहां भी फिरके वराना, पठानों का झगड़ा होता था कराची में, इसी तरह बलूचियों का है और तहरीके तालिबान-पाकिस्तान की लड़ाई है. खालिस्तान की मांग करने वालों को भड़काना या उन्हें समर्थन देना पाकिस्तानी आईएसआई का डिस्प्रेट एक्शन है, चूंकि मरता क्या न करता और वो करते रहेंगे. मैंने पहले भी कहता रहा हूं कि नेहरू जी ने जो गलती की जैसे तिब्बत को चीन को दे देना, सरदार पटेल के कहने के बावजूद कश्मीर को पूरे तरीके से नहीं ले पाना और उसके दो टूकड़े करा दिए. ऐसी स्थिति में हमें कंटिन्यूड स्टेट ऑफ वॉर फेयर में रहना होगा यानी की जो हाईब्रिड वॉरफेयर है वो नहीं खत्म होगा और इसके लिए हमें हमेशा तैयार रहना पड़ेगा.
आपको याद होगा कि कश्मीर में हमारे फौजियों का पीछ से पकड़ कर उनसे राइफल छिन लिया जाता था. लेकिन आज वहां देखों कि कितना टूरिस्ट का ट्रैफिक बढ़ गया है. पिछले साल 2022 दिसंबर अब तक के इतिहास में जम्मू-कश्मीर जाने वालों की संख्या रिकॉर्ड दो करोड़ को पार कर गई. इतनी बड़ी संख्या में टूरिस्ट कश्मीर घूमने पहले कभी नहीं गये थे और पर्यटकों का बढ़ने का मतलब है कि कश्मीर में मौजूदा समय में उग्रवाद में कमी आ चुकी है. अब वहां पर टारगेट किलिंग की जा रही है हालांकि ये भी बहुत कम है. धीरे-धीरे वहां की आबादी भी इस बात को समझ जाएगी. दूसरी बात ये भी है कि पाकिस्तान के पीओके में भूखमरी है. वहां पर तो नारे लगने भी शुरू हो गये हैं कि हमें भारत में मिलाओ.
आपको याद होगा कि कश्मीर में हमारे फौजियों का पीछ से पकड़ कर उनसे राइफल छिन लिया जाता था. लेकिन आज वहां देखों कि कितना टूरिस्ट का ट्रैफिक बढ़ गया है. पिछले साल 2022 दिसंबर अब तक के इतिहास में जम्मू-कश्मीर जाने वालों की संख्या रिकॉर्ड दो करोड़ को पार कर गई. इतनी बड़ी संख्या में टूरिस्ट कश्मीर घूमने पहले कभी नहीं गये थे और पर्यटकों का बढ़ने का मतलब है कि कश्मीर में मौजूदा समय में उग्रवाद में कमी आ चुकी है. अब वहां पर टारगेट किलिंग की जा रही है हालांकि ये भी बहुत कम है. धीरे-धीरे वहां की आबादी भी इस बात को समझ जाएगी. दूसरी बात ये भी है कि पाकिस्तान के पीओके में भूखमरी है. वहां पर तो नारे लगने भी शुरू हो गये हैं कि हमें भारत में मिलाओ.
लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं कश्मीर में तरक्की हो रही है. जबकि पीओके में रह रहे लोग दाने-दाने के लिए मोहताज हैं...तो हमारी तरक्की और खुशहाली और साथ में हमारे काउंटर मेजर्स जो है कि इनको सख्ती से निपटो उसका रिजल्ट निकला है और कमोबेश कुछ घटनाओं को छोड़कर कश्मीर में तो बहुत तब्दीली आई है. उधर, वो आर्थिक दिवालीयापन होने के कगार पर खड़े हैं और 15 जून तक पाकिस्तान की स्थिति और खराब हो जाएगी. हमें आईएसआई के मंसूबों से घड़बड़ाने की जरूरत नहीं है बल्कि हम सख्ती से उनका निपटारा करने को तैयार हैं. 140 करोड़ के मुल्क में एक बार में 60 इंसरजेंसी रही हैं एक बार में और उनसे हम डील कर चुके हैं. कभी ईस्टर्न सेक्टर में था, कभी नक्सलवाद था और खालिस्तान था इन सबसे हम अपनी लड़ाई लड़ चुके हैं और अब भी डील कर जाएंगे. हम फतह हासिल करेंगे. जैसे-जैसे हमारा देश ताकतवर बनेगा ये सारी चीजें काबू में आ जाएंगी.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल डीपी वत्स से बातचीत पर आधारित है.]