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कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार पर चुप्पी देश की संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता पर बदनुमा दाग, अब भी सुधारें गलती

अक्टूबर 2021 में जम्मू कश्मीर में कुछ ऐसा हुआ, जिसने 1990 के दशक के घाव को एक बार फिर से ताज़ा कर दिया. जहां एक तरफ घाटी से विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों को वहां वापस बसाए जाने के तमाम सरकारी प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ माखन लाल बिंद्रू को आतंकियों ने मार डाला. लगभग तमाम हिन्दुओं के पलायन के बावजूद वो श्रीनगर में डटे रहे थे और 40 वर्षों से दवा बेचने के कारोबार में लगे हुए थे. इक़बाल पार्क स्थित उनकी ही दुकान में उन्हें भून दिया गया. भारत का एक गिरोह विशेष ऐसी हत्याओं को अपराध नहीं मानता, इसीलिए उसने आवाज़ नहीं उठाई. 

कश्मीर में नृशंस हत्याएं

अब चलते हैं थोड़ा पीछे. 22 मार्च, 1990 - टेलीकॉम इंजीनियर BK गंजू काम से घर लौट रहे थे. आतंकी उनका पीछा कर रहे थे. जब वो घर पहुंचे तो उनकी पत्नी को शक हुआ कि कुछ गड़बड़ है. उन्होंने अपने पति को एक चावल के कंटेनर में छिपा दिया. आतंकियों ने पूरे घर में उन्हें ढूंढा, जब वो नहीं मिले तो वो लौटने लगे. लेकिन, पड़ोस में रहने वाले एक मुस्लिम परिवार ने आतंकियों को बता दिया कि BK गंजू कहाँ छिपे हैं. चावल के कनस्तर पर अंधाधुन गोलियाँ चलाई गईं. फिर गंजू की पत्नी को खून सना चावल खाने पर मजबूर किया गया. उनकी गोद में एक नन्हा बच्चा भी था. ऐसा ही एक नाम आता है टीका लाल टपलू का, जो एक अधिवक्ता थे. उनका अपराध भाजपा से जुड़ा होना, राम मंदिर के निर्माण के ईंटें भेजना और रुपए दान देना था. 13 सितंबर, 1989 को JKLF (जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट) के आतंकियों ने घर में घुस कर उन्हें मार डाला. आज तक इस मामले में न्याय नहीं हुआ. सितंबर 2022 में जब उनके बेटे आशुतोष टपलू जाच की माग वाली याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट गए तो उन्हें लौटा दिया गया. मैं जो बात कहने जा रहा हूँ, वो हवा-हवाई न लगे इसके लिए एक और नाम का जिक्र करना आवश्यक है. ये नाम है - सर्वानन्द कौल प्रेमी. कवि थे, पत्रकार थे, शोधकर्ता थे, सामाजिक कार्यकर्ता थे, स्वतंत्रता सेनानी थे, विद्वान थे. आतंकियों ने उन्हें और उनके बेटे वीरेंद्र को घसीट कर घर से बाहर निकाला. फिर सरेआम फांसी पर लटका दिया. जिस देश को आज़ाद कराने में सर्वानंद कौल प्रेमी ने योगदान दिया, उसी देश में इस्लामी कट्टरपंथ ने उनको ये 'सज़ा' दी. शायद उनका अपराध था भगवद्गीता का कश्मीरी भाषा में अनुवाद करना. ऐसे अनगिनत नाम हैं, अनगिनत कहानियां हैं.

इस्लामी कट्टरपंथ और आतंक पर मौन

आज मैं ये पूछ रहा हूं कि जब ऐसी एक घटना होती थी तब देश की जनता का खून नहीं खौलता था? सत्ताधीशों के कान में जूं नहीं रेंगती थी? आखिर कैसे मुट्ठी भर आतंकी एक के बाद एक वीभत्स घटनाओं को अंजाम देते चले गए और देश में कहीं कोई हलचल नहीं होती थी? ये कैसा राज चल रहा था, किनका राज चल रहा था? उलटा स्वाड्रन लीडर रवि खन्ना समेत 4 वायुसेना के जवानों के हत्यारे को प्रधानमंत्री कार्यालय बुला कर सम्मान दिया गया. इस देश को हमने कैसे लोगों के हाथों में छोड़ रखा था? जब हम 'द कश्मीर फाइल्स' बना रहे थे, निर्देशक विवेक अग्निहोत्री व उनकी धर्मपत्नी पल्लवी जोशी देश-विदेश घूम-घूम कर उन पीड़ित परिवारों से मिल रहे थे और उनका दर्द बांट रहे थे, उस दौरान अक्सर कई सवाल मेरे मन को कचोटते रहते थे. जो काम हमने किया, वो बहुत पहले हो जाना चाहिए था - उस दर्द को देश के जनता के समक्ष लेकर आना, उस क्रूरता की उग्रता को देश की जनता के समक्ष रखना, साथ ही उन्हें बेनकाब करना जो इन सबके पीछे थे.

पहली बात तो ये कि इसकी नौबत ही नहीं आनी चाहिए थी, अगर कोई एक घटना हुई भी तो ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए था कि इसके बाद इस तरह की कोई अन्य घटना न हो. अगर हुई भी तो देश की जनता को सब सच-सच पता चलना चाहिए था कि क्या हुआ, किसने किया. मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूं कि कश्मीर के पीड़ित हिन्दुओं का दर्द बांटने में ईश्वर ने मुझे शामिल किया. मैं फिर से महर्षि कश्यप की भूमि पर उनके वंशजों को हंसते-खेलते और बेख़ौफ़ होकर अपना काम करते देखना चाहता हूँ. इसे इस्लामी कट्टरपंथ और आतंकवाद से मुक्त देखना चाहता हूं. आज हर देशवासी यही चाहता है.

कश्मीर है शांति के पथ पर

अगस्त 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त कर के इस दिशा में कदम बढ़ाया है. अब हमारे सुरक्षा बलों को खुली छूट दी गई है, उनके हाथ बांधे नहीं जाते. हालांकि, इस्लामी कट्टरपंथ एक सोच है और वह अभी तक कश्मीर को बीमार बनाए है. 2018 से 2022 के बीच जम्मू कश्मीर में आतंकवाद की 671 घटनाएं हुईं, वो इसी सोच के कारण हुईं. इधर आतंकियों का सफाया भी जारी है. अकेले 2018 में 257 आतंकियों को साफ़ कर दिया गया. इसी तरह, 2014 में 110, 2015 में 108, 2016 में 150 और 2017 में 213 आतंकी मारे गए थे. इसी तरह, 2021-22 में 193 आतंकियों का सफाया किया गया. 

हाल ही में मोदी सरकार ने जानकारी दी थी कि 15 मंत्रालयों से जुड़े 53 परियोजनाएं जम्मू कश्मीर में चल रही हैं और इनकी लागत लगभग 58,477 करोड़ रुपए है. हाल ही सितंबर-अक्टूबर 2024 में जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान संपन्न हुआ, लगभग 64% लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. उमर अब्दुल्लाह के नेतृत्व में नई सरकार बनी. उमर अब्दुल्लाह ने हाल ही में समझदारी भरा बयान भी दिया है कि केंद्र सरकार से जब लड़ने का कोई कारण ही नहीं है तो फिर बिना मतलब क्यों लड़ाई छेड़ें?

पाकिस्तान कंगाली की हालत में पहुँच गया है और उसकी ताक़त कमजोर हुई है. लेकिन, वहां की अस्थिर सरकार और असुरक्षित भावना वाले नेता जनभावनाओं को अपने पक्ष में करने के लिए भारत विरोधी घृणा को बढ़ावा देते हैं. आतंकियों को प्रश्रय दिया जाता है. अब उरी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक हो जाता है और पुलवामा हमले के बाद एयर स्ट्राइक. ये नया भारत है. नए भारत को ये भी सोचना है कि उस सोच का सामना कैसे करें जिसके कारण 'द कश्मीर फाइल्स' बनानी पड़ती है. उस सोच को, उस विचारधारा को ही नष्ट करने का समय आ गया है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] 

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