राजस्थान का किला बचाने के लिए पार्टी के 'संकटमोचक' बनेंगे सचिन पायलट?
पंजाब की तर्ज़ पर ही राजस्थान में भी कांग्रेस क्या अब अपना मुख्यमंत्री बदलने वाली है या फिर सचिन पायलट गुट के कुछ विधायकों को मंत्री बनाकर व उनकी बगावत थामकर अपना किला बचाने में वह कामयाब हो जाएगी? मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने आज शाम अपने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई है और ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं इसमें सभी मंत्रियों के इस्तीफे लेकर कैबनेट को एक नई शक्ल दी जा सकती है. लेकिन गहलोत का इस्तीफा होगा कि नहीं, ये सस्पेंस इस बैठक के खत्म होने तक बना रहेगा क्योंकि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता, वो हालात के मुताबिक हर पल बदलती ही रहती है. बड़ा सवाल ये है कि पिछले डेढ़ साल से गहलोत से नाराज चल रहे पार्टी के युवा और क़द्दावर नेता सचिन पायलट को आलाकमान क्या इतनी आसानी से राजी कर लेगा?
राजस्थान में चुनाव भले ही 2023 में होने हैं लेकिन वहां गहलोत और पायलट गुट के बीच चल रही खींचतान जिस मुकाम तक आ पहुंची है, उसे देखते हुए गांधी परिवार ओवर एक्टिव मोड में आ गया है क्योंकि वह न तो पंजाब वाले हालात दोहराना चाहता है और न ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के पाला बदल लेने से मध्य प्रदेश की तरह ही अपनी सत्ता खोना चाहता है. यही वजह है कि पार्टी के प्रभारी महासचिव अजय माकन ने शुक्रवार को ही जयपुर में अपना डेरा डाल लिया. उन्होंने दोनों गुटों के मंत्रियों-विधायकों से अलग-अलग मिलकर उनका जो फीडबैक लिया, उसकी पूरी जानकारी वे यूपी के दौरे पर गईं प्रियंका गांधी को देते रहे.
हालांकि माकन के करीबियों का दावा है कि राजस्थान में न तो पंजाब दोहराया जाएगा और न ही मध्य प्रदेश जैसी ख़तरे की ही कोई नौबत है क्योंकि दोनों गुटों के बीच सुलह का रास्ता निकाल लिया गया है. बताया गया है कि कांग्रेस वहां 'एक व्यक्ति, एक पद' वाला फॉर्मूला लागू करने जा रही है. इसके लागू होने के बाद कोई नेता सिर्फ एक ही पद पर रह सकता है, फिर चाहे वो संगठन हो या सरकार. लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि इस फॉर्मूले का सबसे ज्यादा असर मुख्यमंत्री गहलोत पर होगा, क्योंकि इससे उनके कई समर्थक मंत्रियों की कुर्सी जा सकती है.
आलाकमान के निर्देश पर कल जयपुर पहुंचे राजस्थान के प्रभारी अजय माकन ने इसकी तस्दीक करते हुए कहा था कि राजस्थान कैबिनेट के तीन मंत्रियों गोविंद सिंह डोटासरा, रघु शर्मा और हरीश चौधरी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पद से हटने की इच्छा जताई है. तीनों नेता पार्टी संगठन में काम करना चाहते हैं. रघु शर्मा गुजरात और हरीश चौधरी पंजाब के पार्टी प्रभारी हैं. जबकि गोविंद सिंह डोटासरा राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष हैं.
माकन ने कहा, ''कांग्रेस पार्टी इनका सम्मान करती है. हमें खुशी है कि ऐसे होनहार लोग हैं जो पार्टी के लिए काम करना चाहते हैं.'' लेकिन पार्टी के अंदरुनी सूत्रों की बातों पर अगर यकीन करें, तो प्रियंका गांधी की पहल पर ही ये फार्मूला निकाला गया है, ताकि सचिन पायलट को उनके समर्थक ढाई दर्ज़न विधायकों के साथ बीजेपी में जाने और सरकार को गिरने से बचाया जा सके.
दरअसल, पिछले साल मार्च में पार्टी के युवा चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया को न मना पाने और पार्टी छोड़कर जाने से न रोक पाने की जो गलती राहुल गांधी ने की थी, उससे प्रियंका गांधी ने एक बड़ा सबक लिया है. ऐसा नहीं हो सकता कि वो इस खबर से अनजान हों कि पिछले कुछेक महीने से बीजेपी के दो बड़े नेता लगातार सचिन पायलट के संपर्क में थे, इसीलिये प्रियंका ने पायलट के साथ संवाद कम करने की बजाय उसे और अधिक बढ़ा दिया और उनके दिये सुझावों पर अमल करने के लिए अपनी तेजी भी दिखा दी.
उनके कहने पर ही 10 नवम्बर को मुख्यमंत्री गहलोत को दिल्ली तलब किया गया था. प्रियंका-गहलोत के बीच काफी देर तक चली इस मीटिंग में पार्टी महासचिव के के वेणुगोपाल और अजय माकन भी मौजूद थे. बताया जाता है कि उसी बैठक में प्रियंका ने ये साफ कर दिया था कि ये फार्मूला लागू होने के बाद पायलट गुट के अधिकतम विधायकों को कैबिनेट में एडजस्ट किया जायेगा.
अगले दिन गहलोत ने सोनिया गांधी से भी मुलाकात की थी. उस बैठक के बाद गहलोत ने कहा था, ''थोड़ा सब्र रखें. सब सामने आएगा. हाई कमान तय करेगा कि विस्तार कब करना है. हमने ये फैसला हाई कमान पर छोड़ दिया है.''
लेकिन पायलट खेमे के लिए खुशी की बात ये है कि इस्तीफा देने की पेशकश करने वाले इन तीन मंत्रियों को मिलाकर कैबिनेट में खाली पड़े पदों की संख्या अब 12 हो जायेगी. इसके अलावा कई निगमों व प्राधिकरण में भी राजनीतिक नियुक्तियां होनी हैं. लिहाज़ा,सचिन पायलट दोनों तरफ अपनी ज्यादा हिस्सेदारी लेने पर ही जोर देंगे, जिसे मानना अब गहलोत और आलाकमान, दोनों की ही मजबूरी होगी.
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