(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
आज़ाद भारत के इतिहास में आज हो रहा है एक नई सुबह का आगाज़!
आज 25 जुलाई की तारीख़ देश की आज़ादी के 75वें साल में एक ऐसी नई सुबह का आगाज़ कर रही है जो कई मायने में भारतीय गणतंत्र के इतिहास की एक नई इबारत लिखने वाली है. संसद के सेंट्रल हॉल में सोमवार की सुबह सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना जब द्रोपदी मुर्मू को देश के 15वें राष्ट्रपति की शपथ दिला रहे होंगे तब इतिहास की किताब में एक नया पन्ना तो जुड़ ही रहा होगा लेकिन देश में सबसे कमजोर समझा जाने वाला आदिवासी समुदाय नाचते-गाते-झूमते हुए इस पल का ऐसा जश्न मना रहा होगा जिसे देश-दुनिया पहली बार ही देखेगी.
समाज के सबसे कमजोर व उपेक्षित कहलाने वाले वर्ग से एक महिला को आज़ाद भारत के इतिहास में इस पद पर बैठाने के सपने को साकार करने के लिए राजनीति में जिस उदार दिल की जरुरत होती है उसे मोदी सरकार ने पूरा कर दिखाया है. द्रोपदी मुर्मू पहली ऐसी महिला भी हैं जिन्होंने राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने से पहले ही अपनी आंखें दान करने का ऐलान भी कर रखा है जो इतिहास में पहले कभी नहीं देखने को मिला.
जाहिर है कि पहली बार किसी आदिवासी महिला को देश का राष्ट्रपति बनाये जाने के फैसले को बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है जो है भी. लेकिन लोग भला ये क्यों भूल जाते हैं कि इसी मोदी सरकार ने पांच साल पहले रामनाथ कोविंद के जरिये देश को पहला दलित राष्ट्रपति भी दिया था. रविवार को अपने कार्यकाल पूरा करने के आखिरी दिन निर्वत्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश के नाम दिए संबोधन में भावुक होते हुए अपनी शुरुआती जिंदगी की गरीबी और कानपुर देहात के जिस कच्चे मकान का जिक्र किया है ठीक वहीं अफसाना हमारी नई राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू का भी है.
देश के संविधान की सरंक्षक और तीनों सेनाओं की सर्वोच्च सेनापति बनने वाली द्रोपदी मुर्मू वैसे तो कई नए इतिहास रचने जा रही हैं लेकिन उसमें भी बड़ी बात ये है कि वे आज़ाद भारत में सबसे कम यानी 64 वर्ष की उम्र में राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठ रही हैं. अब हम इसे हाथ में लिखी भाग्य की रेखाओं का सच न माने तो और क्या कहें. इसलिये कि बीती 20 जून को ही उन्होंने अपना जन्मदिन मनाया है और उसके महज़ 35 दिन बाद ही वे उस कुर्सी पर विराजमान हो रहीं हैं जिसके बारे में उन्होंने कभी सपने में भी सोचा नहीं होगा. वे पहली ऐसी आदिवासी महिला हैं जो शिक्षक बनने औऱ साधारण क्लर्क की नौकरी करने के बाद अपने गांव की बदहाली को दूरं करने के लिए सक्रिय राजनीति में कूदने पर मजबूर हुईं. वे देश की इकलौती ऐसी नेता हैं जिन्होंने अपने सियासी सफ़र की शुरुआत एक पार्षद के रूप में की और फिर विधायक, मंत्री, राज्यपाल बनने के बाद इस सर्वोच्च पद तक पहुंची हैं.
लेकिन अपने नए राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू की निजी जिंदगी की किताब के अगर कुछ पन्ने पलटकर देखेंगे तो वह भी हम सबको ये प्रेरणा देते हैं कि तमाम मुसीबतें आने के बाद भी जिंदगी को कैसे जिया व जीता जाता है. बताते हैं कि कॉलेज के दिनों में ही उनकी दोस्ती श्याम चरण मुर्मू से हुई थी जो बाद में दोनों की शादी में बदल गई. उनके दो बेटे और एक बेटी हुई लेकिन साल 2009 से द्रोपदी मुर्मू की जिंदगी पर कुदरत ने ऐसा कहर बरपाना शुरू कर दिया जो एक आम इंसान के लिए थोड़ा रौंगटे खड़ी करने वाली हकीकत से कम नहीं है. उसी साल उनके बेटे की असामयिक मौत हो गई. अभी वो इस दुख से उबर पातीं कि चार साल बाद यानी 2013 में ही उनका दूसरा बेटा भी गुजर गया. उसके अगले साल ही द्रोपदी मुर्मू के पति श्याम चरण मुर्मू का भी निधन हो गया.
जरा सोचिये कि महज 5 साल के अंदर दो बेटों और पति को खोने वालीं एक महिला का तब क्या हाल हुआ होगा और उनकी मानसिक हालत किस दशा में पहुंच गई होगी. मुर्मू उन हादसों से बेहद टूट गईं थीं लेकिन तब भी उन्होंने एक मजबूत हृदय की नारी का परिचय देते हुए अपने पैतृक घर को ही दान करते हुए उसे एक स्कूल में बदल दिया. समाज-सेवा का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है और इसके लिए उन्होंने तब भी हमारे छुटभैये नेताओं की तरह न कोई ढिंढोरा पीटा और न ही अखबारों में अपनी तस्वीरें ही छपवाईं. मुर्मू की बेटी इतिश्री फिलहाल ओडिसा में एक बैंक अधिकारी हैं जो अपने पति गणेश हेम्ब्रम के साथ आज इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनेंगी. वैसे भी उनके परिवार के सिर्फ चार सदस्य-भाई, भाभी, बेटी और दामाद ही इस शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होंगे. इसीलिये ये कहने से किसी को भी संकोच नहीं करना चाहिए कि कई नए इतिहास रचने वाले देश के नए राष्ट्रपति की झंझावतों से भरी सादगी वाली ये जिंदगी पांच साल में भुलाने वाली नहीं बल्कि ताउम्र याद रखने वाली है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)