ओलंपिक्स में पदकों की चमक में महिला खिलाड़ियों की यूनिफॉर्म का मामला कहीं पीछे छूट गया है. होना तो यही चाहिए, जैसा कि टोक्यो ओलंपिक्स के आयोजकों का मंत्र है- स्पोर्ट्स अपील, नॉट सेक्स अपील. यानी कपड़े लत्तों के बारे में बात करने की बजाय खेल और खेल भावना का जिक्र हो. लेकिन फिर भी खेलों में महिला खिलाड़ियों की यूनिफॉर्म एक ऐसा मसला है जिस पर चर्चा किए बिना खेल भावना को बरकरार रखने की बात नहीं की जा सकती. मेल गेज, यानी आदमियों की नजर खिलाड़ियों की बजाय, उनके ग्लैमर पर ही टिकी रहती है. और अगर दर्शक सिर्फ खिलाड़ी के कपड़ों पर नजर टिकाए रहेंगे तो उनके बेहतरीन खेल को कैसे देख पाएंगे?


यह मसला आया कैसे
इस मामले पर महिला खिलाड़ी और कई फेमिनिस्ट ग्रुप्स लंबे समय से बात कर रहे हैं. लेकिन हाल-फिलहाल एक बड़ी घटना ने सबका ध्यान इस तरफ फिर से खींचा. कुछ ही हफ्ते पहले नॉर्वे की बीच हैंडबॉल टीम ने स्पेन के खिलाफ मैच में अपनी सेट यूनिफॉर्म नहीं पहनी. सेट यूनिफॉर्म है, स्पोर्ट्स ब्रा और बिकिनी बॉटम्स. टीम की खिलाड़ियों ने उसकी जगह पुरुष खिलाड़ियों की तरह शॉर्ट्स और टीशर्ट्स पहनी. इस पर यूरोपीय हैंडबॉल फेडरेशन ने टीम पर 1770 डॉलर का जुर्माना लगा दिया. फेडरेशन का कहना था कि खिलाड़ियों ने यूनिफॉर्म के नियम को तोड़े हैं जिसे इंटरनेशनल हैंडबॉल फेडरेशन ने तय किया है. फेडरेशन सिर्फ यूनिफॉर्म ही तय नहीं करती, बल्कि यह भी तय करती है कि उसका नाप क्या होगा.


इस पूरी घटना का कई जगह विरोध हुआ. नार्वे के अलावा दूसरी जगहों पर भी. ओलंपिक्स में भी इसके स्वर सुनाई दिए. जर्मनी की महिला जिमनास्ट्स ने क्वालिफिकेशन गेम में फुल बॉडी सूट पहनकर बिन बोले बिकिनी नुमा ड्रेस के खिलाफ अपना विरोध जता दिया. टीम की सदस्य सारा वोस ने पहले भी ऐसी ड्रेस की पैरवी की है. इसी साल सारा वोस ने यूरोपियन आर्टिस्टिक जिमनास्टिक चैम्पियनशिप में भी फुल बॉडी सूट पहना था.


कपड़े कैसे कैसे ज्यादातर खेलों में महिलाओं के कपड़े पुरुषों से अलग ही होते हैं. कोई पूछ सकता है कि इसमें क्या अनोखी बात है. आसान सी बात है, औरतों और आदमियों के कपड़े तो अक्सर अलग ही होते हैं. बेशक, लेकिन जब इसमें सेक्सिज्म घुस जाता तो बात इतनी आसान नहीं रह जाती. जैसे जिमनास्टिक्स में औरतों और आदमियों के कपड़े कैसे-कैसे होते हैं? मेल जिमनास्टिक्स अगर फुल बॉडीसूट, यानी यूनिटाड पहनते हैं तो महिला जिमनास्टिक लीयटाड. लीयटाड बिकिनी स्टाइल ड्रेस होती है और उसमें हिप्स से नीचे का पूरा हिस्सा खुला होता है. इसी तरह रेसिंग ट्रैक पर मेल और फीमेल एथलीट्स के कपड़ों के बीच तुलना कीजिए. मेल एथलीट टैंक टॉप और स्पैडक्स में दौड़ते नजर आएंगे जिनमें उनका आधा शरीर ढका रहता है, लेकिन महिलाओं के लिए स्पोर्ट्स ब्रा और बहुत छोटे शॉर्ट का नियम है.


विंबलडन के विवाद से तो ज्यादातर लोग परिचित होंगे. विंबलडन के मैदान में कपड़ों पर सफेदी की चमकार नजर आती है. लेकिन खिलाड़ी इस नियम को तोड़ते भी हैं. 2014 में प्री मैच अंडरवियर चेक का नियम बनाया गया यानी सबके अंदरूनी कपड़ों को भी चेक किया जाएगा. महिला खिलाड़ियों के भी?? फिर पैट कैश जैसे पूर्व चैंपियन ने सार्वजनिक तौर से इसकी निंदा की. 2015 में कनाडा की खिलाड़ी यूजीनी बूचार्ड को अपने ब्लैक ब्रा स्ट्रैप पर काफी लताड़ सुननी पड़ी थी. काला स्ट्रैप उनकी व्हाइट ड्रेस से हल्का सा झांक रहा था, सो आयोजकों ने यूजीनी को काफी डांट पिलाई थी. साल 2016 में चेक खिलाड़ी लूसी सफारोवा की नाइकी की टेनिस ड्रेस तो खेलते समय फूलकर गुब्बारा हो गई थी. इसे नाम ही दिया गया था नाइटी ड्रेस. खिलाड़ी के हल्के से हिलने से भी यह सफेद लहरदार ड्रेस उड़ने लगती थी. केटी स्वैन जैसी खिलाड़ी को तो खेलते समय इसे अपने शॉर्ट्स में खोंसना पड़ा था.


कपड़ों को चुनने वाले कौन हैं
ऐसे कपड़े कौन चुनता है? जाहिर सी बात है, मर्द ही. स्पोर्ट्स फेडरेशंस में ऊंचे पदों पर आदमी बैठे हैं और वही सारे फैसले कर रहे हैं. सालों से. अमेरिकी की खेल इतिहासकार जोहाना मेलिस ने जर्मन ब्रॉडकास्टर डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि खेल यूनिफॉर्म्स का इतिहास ही दागदार है. जब महिला एथलीट्स की बारी आती है तो यूनिफॉर्म के नियम बनाने वाले इस बात से घबरा जाते हैं कि कहीं महिलाएं मैस्कुलिन न लगने लगें. इसीलिए उन्हें ऐसी यूनिफॉर्म पहनाई जाती है तो फेमिनिन हो, अपीलिंग हो और मर्दों को आकर्षक भी लगे. मर्दों को इसलिए क्योंकि दर्शक ज्यादातर मर्द हैं. जबकि खेल के कपड़ों में सबसे जरूरी बात यह है कि वह खिलाड़ी के लिए आरामदेह हो.


मेलिस ने तो कई बार खेलों को समावेशी बनाने के लिए सभी देशों की परंपराओं को ध्यान में रखने की वकालत की है. हाल ही में टोक्यो ओलंपिक्स में ब्रिटेन की ब्लैक महिला तैराक एलिस डियरिंग, जो यूके का प्रतिनिधत्व करने वाली पहली ब्लैक महिला हैं, को सोल कैप पहनने से मना कर दिया गया. यह कैप उनके काले बालों की सुरक्षा के लिए जरूरी थी. तब कहा गया कि खेल संस्थाओं का अड़ियल रवैया विविधता के खिलाफ है. इसी तरह अगर हिजाब पर पाबंदी लगा दी जाएगी तो मुसलिम देशों की महिला खिलाड़ियों के लिए खेल खेलना मुश्किल हो जाएगा. उनके लिए बीच बॉल जैसे खेलों की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती. इसीलिए कतर में हैंडबॉल के मैच में औरतों से शॉर्ट्स या बिकिनी पहनने का आग्रह नहीं किया गया. चूंकि बहुत से देशों में सांस्कृतिक परंपराएं तय करती हैं कि लोग क्या पहनें, क्या नहीं.


कपड़ों के सेक्सुलाइजेशन के नुकसान
ऐसा नहीं कि सभी महिला खिलाड़ियों को इन कपड़ों से गुरेज है. यूएस बीच वॉलीबॉल की कुछ खिलाड़ियों जैसे अप्रैल रॉस और एलिक्स क्लाइनमैन बिकिनी की हिमायत करती हैं. उन्हें इन्हें पहनने में दिक्कत नहीं. वह कहती हैं कि इससे दर्शक खेलों के प्रति आकर्षित होते हैं. लेकिन औरत की देह के हाइपरसेक्सुलाइजेशन की अपनी दिक्कतें भी हैं. यह बहुत खतरनाक है. 2017 में यूके बीटी स्पोर्ट्रस ने एक सर्वे किया था, जिसमें 80 प्रतिशत महिला एथलीट्स ने कहा था कि उन पर खास लुक और बॉडी टाइप को बरकरार रखने का प्रेशर होता है. 87 प्रतिशत ने कहा था कि खास बॉडी टाइप का बना रहने के दबाव ने उनकी डाइट को प्रभावित किया है.


अभी पिछले साल बीबीसी के इलीट ब्रिटिश स्पोर्ट्सविमेन सर्वे में 77 प्रतिशत महिला एथलीट्स ने कहा था कि वे अपनी बॉडी इमेज को लेकर कॉन्शस रहती हैं. यहां ध्यान देने की बात है कि ओलंपिक बीच वॉलीबॉल में 2012 में नियमों को बदल दिया गया था ताकि महिलाओं को अपने पसंद के कपड़े पहनने की च्वाइस मिल सके. लेकिन इतने लंबे इतिहास के साथ, समाज की उम्मीदें महिला एथलीटों को मजबूर करती हैं कि वे हाइपर फेमिनाइज्ड लुक को बरकरार रखें.


अमेरिकी स्पोर्ट्स और स्पोर्ट्स कल्चर वेबसाइट ब्लीचर रिपोर्ट ने इस सिलसिले में एक जायज टिप्पणी की है. महिला खिलाड़ियों के वॉर्डरोब में छिपे सेक्सिज्म पर उसके एक आर्टिकल कहा गया था कि जब महिला एथलीट्स को खेल के मैदान में रिवीलिंग कपड़े पहनने पड़े और रात को घर के बाहर निकलते समय, सावधानीपूर्वक अपने कपड़ों को चुनना पड़े तो आप समझ लीजिए कि समाज अभी जस का तस है. हमने अभी भी उसे उसके जेंडर से अलग करके नहीं देखा है. इस बयान के बाद किसी तर्क की जरूरत नहीं.


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