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औरंगजेब की कब्र अतीत की बात, हम भविष्य की ओर क्यों न बढ़ें?

देश में इस समय औरंगजेब को लेकर और विशेषकर उसकी कब्र को लेकर विवाद की स्थिति बनी है और जिस तरह से कब्र को लेकर उसे ढाहने की एक तरफ मांग हो रही है, तो दूसरी तरफ नागपुर में जो सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी है, वहां पर जो दंगे हुए हैं, वह एक अजीबोगरीब किस्म की स्थिति ही कही जाएगी. महत्वपूर्ण चीज यह है कि 2047 में देश को विकसित राष्ट्र बनाने की जो तस्वीर पेश की जाती है कि 2047 में भारत एक विकसित देश बनेगा, उसके बरक्स अगर दूसरी ओर हम देखें तो कहीं ना कहीं इतिहास की चीजों को लेकर या इतिहास के पात्रों को लेकर समाज को फंसाए जाने की रणनीति नजर आती है. औरंगजेब का निधन 1707 में हो चुका था. इस बीच में छावा फिल्म आती है और उसमें औरंगजेब के क्रूर और सच्चे स्वरूप को दिखाया गया है. हालांकि, उसके प्रदर्शन को लेकर भी मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस कहते हैं कि नागपुर हिंसा के लिए छावा फिल्म जिम्मेदार है. 

औरंगजेब की कब्र का विवाद

सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है अगर नागपुर में फिल्म के कारण से हिंसा हो रही है तो माननीय मुख्यमंत्री जी का जो बयान है वो खुद में कई सवाल खड़े करता है की नागपुर उनका गृहक्षेत्र है, वह राज्य के मुख्यमंत्री ही नहीं, बल्कि गृहमंत्री भी हैं. तो वह अगर अपने ही क्षेत्र को नहीं संभाल पा रहे हैं, वहां पर फिल्म के प्रदर्शित होने के कारण तनाव की स्थिति हो रही है तो क्या उस फिल्म के ऊपर प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार ने कोई प्रयास किए थे. दूसरा महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री यह भी कह रहे हैं कि नागपुर में हिंसा बड़ी पूर्व नियोजित किस्म की लग रही है. अगर नागपुर में हिंसा पूर्व नियोजित है तो सवाल यह भी खड़े होते हैं कि वहां पर उनकी जो राज्य सरकार की खुफिया एजेंसी है, तो जब षड्यंत्र किया जा रहा था, अगर षड्यंत्रकारी षड्यंत्र कर रहे थे, प्लैनिंग बना रहे थे या प्लॉट कर रहे थे तो फिर खुफिया एजेंसी और राज्य की पुलिस क्या कर रही थी? नागपुर में तो खुद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का मुख्यालय भी है और वो तो मुख्यमंत्री का क्षेत्र है. 

राज्य सरकार की भूमिका 

औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद चल रहा है क्योंकि कोई मांग कर रहा है, खासकर हिन्दू संगठन के लोग कि औरंगजेब की कब्र को तोड़ दिया जाए, वहां पर शौचालय बना दिया वहां पर कुछ और बना दिया जाए. अगर इस तरह की मांग हो रही है जिसमें कि कहीं-कहीं सत्ताधारी पार्टी भी खड़ी दिखती है और उनका पूरा ईकोसिस्टम सपोर्ट करता हुआ भी दिखाई दे रहा है. अगर इसको ध्यान से देखें तो जिस प्रकार से औरंगजेब की कब्र को लेकर माहौल को बनाने का प्रयास हो रहा है. क्या राज्य सरकार या केंद्र सरकार सच में गंभीर है... औरंगजेब की कब्र की स्थिति को देखा जाए तो वो ASI (Archaeological Survey of India) द्वारा वह संरक्षित स्मारक है. 11 दिसंबर 1951 को ASI ने उसे सूचीबद्ध कर लिया था. 1958 में उसके दर्जे को और बड़ा कर उसको राष्ट्रीय  स्तर पर संरक्षित स्मारक घोषित कर दिया गया. तो क्या ऐसी स्थिति में  राज्य सरकार के पास यह अधिकार होता भी है या फिर केंद्र सरकार के पास भी यह अधिकार है, वह खुद केंद्र की ओर से संरक्षित स्मारक है.

अगर राज्य सरकार की बहुत इच्छा हो उसको हटाने के लिए तो, पहला सवाल यह है कि क्या राज्य सरकार ऐसा कर सकती है? इसका जवाब है कि राज्य सरकार सरकार ऐसा नहीं कर सकती. राज्य सरकार के लिए आवश्यक है कि वह केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के पास प्रपोजल भेजे और प्रपोजल में इस तरह का रिकमेंडेशन हो, तो पहले संस्कृति मंत्रालय और ASI के सर्वे से उसे संरक्षित स्मारकों की सूची से बाहर करना होगा. इस तरह का कोई प्रपोजल या प्रस्ताव दिखाई भी नहीं दे रहा है. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि औरंगजेब का निधन 1707 में हो गया था. 1707 के बाद देखें तो जब उसका निधन होता है तब छत्रपति शाहू जी महाराज जो छत्रपति संभाजी महाराज के बेटे थे, वो खुद मुगलों की कैद में थे लेकिन इतिहास कई और तरह की कहानी भी हम लोगों को बताता है. जब वो कैद से छूटते हैं तो वो औरंगजेब की कब्र पर खुद जाते हैं और वैसे भी अगर देखा जाए 1713 से लेकर 1857 तक पेशवाओं का पूरा शासन रहा है, तो अगर छत्रपतिओं और पेशवाओं का पूरा शासन रहा है और कब्र उनके नियंत्रण में था. अगर उन्हे औरंगजेब बहुत बुरा लगता या कब्र बुरी लगती तो उनके पास पर्याप्त मौके थे,  वो उस जमाने में भी उस कब्र को तोड़ या हटा सकते थे.

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