दुनिया का एक बेहद छोटा-सा लेकिन खूबसूरत देश है- तुर्की जिसने सदियों पुरानी प्राचीन सभ्यता व संस्कृति को आज भी समेटे रखा है. उसी मुल्क की राजधानी दुनिया भर के पर्यटकों को आज भी अपने पास आने के लिए लुभाती है और उसका नाम है. इस्तानबुल. इसे दुनिया का एकमात्र शहर माना जाता है, जो दो महाद्वीपों के बीच में स्थित है. इसलिये कि शहर का पश्चिमी हिस्सा यूरोप जबकि पूर्वी भाग एशिया में है. इसे सात पहाड़ियों वाला देश भी कहा जाता है. लेकिन अब ये दुनिया के आतंकी गुटों के निशाने पर आ गया है और उन्होंने रविवार को एक बड़े धमाके को अंजाम देकर पूरे यूरोप में खलबली मचा दी है. भारत ने भी इस आतंकी हमले पर गहरी चिंता जाहिर की है. फिक्रमंद इसलिये भी होना चाहिए कि ये घटना दुनिया के कुछ देशों के लिए किसी और बड़े आतंकी हमले का अंदेशा दे रही है.
दरअसल, इस्तानबुल के लोगों के लिये रविवार का दिन बेहद मनहूस साबित हुआ,जब इस्तांबुल के सबसे व्यस्तम इलाके टकसिम स्क्वायर में शाम को जबरदस्त बम धमाका हुआ था. शुरुआती जानकारी के मुताबिक इसमें छह लोगों की मौत हुई है और 81 से भी ज्यादा लोग जख्मी हुए हैं. ये वो इलाका है जहां स्थानीय लोगों के अलावा बड़ी तादाद में सैलानी भी जुटे हुए थे. तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने धमाके की निंदा करते हुए इसमें आतंकी हाथ होने का भी शक जताया है. शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक आतंकी कार्रवाई माने गए इस धमाके को एक महिला हमलावर ने अंजाम दिया था.
दरअसल, तुर्की में साल 2015 से 2017 के बीच कई बार ऐसे विस्फोट हो चुके हैं और तब इसके पीछे ISIS यानी इस्लामिक स्टेट और गैर कानूनी घोषित हो चुके कुर्दिश समूहों का हाथ माना गया था. हालांकि ताजा हमले की जिम्मेदारी फिलहाल किसी आतंकी गुट ने नहीं ली है लेकिन अंदेशा यही जताया जा रहा है कि कुर्दिश समूह ने ही इसे अंजाम दिया है.
सवाल ये है कि सबसे शांत व सभ्य माने जाने वाला मुल्क तुर्की पिछले एक दशक में आतंकियों के निशाने पर आखिर क्यों आ गया? इसका माकूल जवाब तो हम भी नहीं जानते लेकिन इस्लामिक देशों के जानकारों के मुताबिक तुर्की और कुर्द लड़ाकों के बीच ये दुश्मनी सौ साल से भी ज्यादा पुरानी है. दरअसल, कुर्द और एक अन्य आतंकी गुट तस्किम पिछले कई बरसों से तुर्की से अलग होने की मांग करता रहा है.
विश्लेषक बताते हैं कि कुर्द आबादी मिडल ईस्ट के देशों में फैली हुई है.लेकिन तकरीबन साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले इस समूह को लगता है कि आखिर हमारा कोई अलग देश आज तक क्यों नहीं है.वैसे कुर्दों की आबादी तुर्की के अलावा ईराक, सीरिया में भी काफ़ी है.बताते हैं कि सारे कुर्द आतंकी विचारधारा वाले नहीं हैं और वे जिस मुल्क में भी रहते हैं,वहां की बहुसंख्य आबादी के साथ मिल-जुलकर ही रहते हैं.लेकिन एक जमाने में हमारे पंजाब में जिस तरह से जरनैल सिंह भिंडरावाले ने अलग खालिस्तान की मांग को लेकर एक आतंकी संगठन बना डाला था, ठीक उसी तर्ज पर कुर्दों के एक बड़े गुट ने भी आतंक फैलाने को अपना हथियार बना लिया है.
हालांकि कुछ इतिहासकार दावा करते हैं कि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जब ऑटोमन साम्राज्य बिखऱ गया तो कुर्दों को अलग देश देने का वादा किया गया था. लेकिन न मालूम किन वजहों से उस समझौते को जल्दबाजी में रद्द कर दिया गया और उसके बाद से ही कुर्द अपने अलग देश के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसमें उन्होंने आतंक का रास्ता भी अपना लिया है.
तुर्की, सीरिया, ईराक, ईरान और आर्मेनिया में कुर्द बहुतायत में रहते हैं. बता दें कि ईराक में साल 2005 में कुर्दिश क्षेत्र घोषित किया गया था और वहां एक क्षेत्रीय सरकार भी बनाई गई. उधर, ईरान में इन दिनों हिजाब को लेकर जो विरोध हो रहा है, वह भी कुर्द इलाके से ही शुरु हुआ है.
तुर्की में कुर्द आबादी करीब 20 फीसदी है.पहले विश्व युद्ध के बाद यहां कुर्दों का दमन किया गया था. इसके बाद साल1980 में कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी जिसे पीकेके के नाम से भी जाना जाता है, ने सीधी लड़ाई शुरू कर दी.वह बेहद हिंसक संघर्ष थ क्योंकि कुर्दों ने हथियार उठा लिए थे. इसके बाद सरकार के साथ बातचीत हुई और 2013 में सीजफायर पर समझौता हुआ लेकिन साल 2015 में समझौते का उल्लंघन हुआ और फिर इस संगठन को आतंकी संगठन घोषित कर दिया गया.
हैरानी की बात ये है मिडल ईस्ट के देशों में हुए कई युद्धों में कुर्दों ने अमेरिका का साथ दिया है.चाहे वो खाड़ी युद्ध हो या ईराक पर अणेरिका का हमला, कुर्द अमेरिका के साथ खड़े रहे हैं. इसके अलावा आईएसआईएस के साथ युद्ध में भी कुर्द अमेरिका के साथ ही खड़े दिखे. हालांकि अमेरिका कई बार कुर्दों को धोखा दे चुका है.इसीलिये अमेरिका ने आज तक कभी वैश्विक मंच पर कुर्दों के लिए अलग देश की कोई वकालत नहीं की है.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)