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तुर्की-सीरिया की इस जंग में अपना क्या फायदा देख रहा है रुस और अमेरिका?

दुनिया में तुर्की और सीरिया ऐसे छोटे मुल्क हैं, जो इस्लामिक राष्ट्र होने के बावजूद एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते. दोनों के बीच पिछले कई सालों से जंग जारी है क्योंकि सरहदी सीमा पर बसे कूर्द लड़ाके तुर्की की जमीन पर कब्जा करके वहां अपना अलग मुल्क बनाना चाहते हैं. तुर्की इन लड़ाकों को आतंकवादी मानता है और शायद इसलिये वे इनके किसी भी हमले का मुंहतोड़ जवाब देने में ज्यादा देर नहीं लगाता. अब इस जंग में तुर्की ने इराक को भी निशाने पर ले लिया है क्योंकि उसका यकीन है कि वो सीरिया का साथ दे रहा है.

रविवार (20 नवंबर) को तुर्की ने सीरिया और इराक के उत्तरी इलाकों में एयरस्ट्राइक की थी जिसमें कुल 31 लोग मारे गये थे और कई घायल हो गये थे. लिहाजा, इसके जवाब में उत्तरी सीरिया (North Syria) की एक अज्ञात जगह से तुर्की की सीमा में रॉकेट दागे गए, जिसमें तीन लोगों के घायल होने की खबर है. समाचार एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की की सीमा पर रॉकेट गिरने से एक सैनिक और विशेष सुरक्षा बल के दो अधिकारी गंभीर रूप से घायल हुए हैं.

दरअसल, रविवार को तुर्की की ओर से सीरिया और इराक पर की गई इस एयर स्ट्राइक को बदला लेने की कार्रवाई बताया जा रहा है, जो हफ्ते भर पहले तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में हुए बम धमाके का जवाब माना जा रही है. गौरतलब है कि इस्तांबुल के टकसिम स्कावॉयर में हुए इस धमाके में कुल 6 लोगों की मौत हो गई थी और 81 से ज्यादा लोग घायल हुए थे.
तुर्की के उपराष्ट्रपति ने इस हमले को एक आतंकवादी हमला करार देते हुए कहा था कि यह एक महिला द्वारा किया गया आत्मघाती हमला था. तुर्की ने इस धमाके के लिए कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (PKK) को जिम्मेदार ठहराया था.

हालांकि तुर्की के साथ ही अमेरिका भी PKK को एक आतंकी समूह मानता हैं लेकिन, सीरिया में ISIS समूह के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका के साथ खड़े सीरियाई कुर्दिश फोर्स को लेकर वो असहमत हैं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को ही तुर्की के संभावित सैन्य कार्रवाई की आशंका जताई थी. इसी के साथ उसने अमेरिकी नागरिकों को उत्तरी सीरिया और इराक की यात्रा न करने की सलाह भी दी थी.

दरअसल, तुर्की नाटो संगठन का सदस्य देश भी है लेकिन वो अमेरिका की बजाय रूस को ज्यादा तरजीह देता आया है. तुर्की और रूस के संबंध किसी से दबे-छिपे नहीं हैं. दोनों के बीच अच्छे संबंध हैं लेकिन अगर ध्यान से देखें तो ये संबंध केवल व्यापार और पर्यटन में देखने को ही मिलते हैं. इन रिश्तों की हकीकत ये दिखाई देती है कि कई मोर्चों पर तुर्की और रूस एक-दूसरे को कड़ी टक्कर दे रहे हैं.

तुर्की ने जब एस-400 मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम रूस से लेने का एलान किया था, तो अमेरिका समेत नेटो ने भी उसे ऐसा न करने को कहा था. यहां तक कि अमेरिका ने तुर्की के रक्षा उद्योगों पर भी कुछ पाबंदियां लगा दी थीं लेकिन तुर्की ने घोषणा की थी कि उसे ऐसा करने से कोई नहीं रोक सकता है. तब तुर्की के राष्ट्रपति रैचेप तैयप अर्दोआन ने कहा था कि कोई भी देश उनको एस-400 मिसाइल न ख़रीदने को लेकर हुक्म नहीं दे सकता है.

इस घोषणा से साफ था कि तुर्की और रूस के संबंध ज्यादा गहरे होंगे. ये अनुमान सही भी साबित हुए और दोनों के व्यापारिक संबंधों में और भी गर्मजोशी देखने को मिली. रूस ने पिछले साल तुर्की से अपने इस्तेमाल के लिए तकरीबन आधी गैस का आयात किया था. दूसरी तरफ कोरोना महामारी के शुरू होने से पहले साल 2019 में तुर्की में रूस के 70 लाख सैलानी आए थे, जो किसी भी देश से आए सबसे अधिक लोग थे.

एक और अहम बात ये भी है कि रूस, तुर्की के दक्षिण हिस्से में एक परमाणु प्लांट बना रहा है जो साल 2023 तक काम करने लगेगा लेकिन इतने व्यापारिक सहयोग के बावजूद दोनों देशों के संबंधों के बीच कई जगहों पर बिगाड़ भी हैं और वो है युद्ध के क्षेत्र में. दोनों के लिए सबसे बड़ा युद्ध है सीरिया. तुर्की अपने यहां पर मौजूद कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) को एक आतंकी संगठन मानता है और उसका मानना है कि सीरिया में लड़ रहा वाईपीजी इसी की शाखा है, जिसे वो ख़त्म करना चाहता है.

पिछले साल तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन ने रूस का दौरा किया था और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाक़ात करने के बाद कहा था कि सीरिया को लेकर रूस के हर फ़ैसले पर तुर्की प्रतिबद्ध रहता है और उस पर क़दम पीछे खींचने का सवाल ही नहीं है. तब उन्होंने सीरिया में हुए हमलों को लेकर अर्दोआन ने कहा था कि वाईपीजी/पीकेके आतंकी समूह को क्षेत्र से ख़त्म करने के लिए रूस के साथ समझौता हुआ है, जिसे पूरा किया जाएगा.

दरअसल, साल 2017 में रूस, ईरान और तुर्की ने अस्ताना प्रक्रिया के तहत राजनीतिक बातचीत शुरू की थी. इसके एक साल बाद संविधान बनाने के लिए 150 सदस्यों की एक समिति बनाने पर सहमति बनाई गई. तय हुआ कि संविधान बनने के बाद संयुक्त राष्ट्र  की देखरेख में निष्पक्ष चुनाव होंगे. पिछले साल भी यूएन के विशेष दूत जी पेडेरसन ने दुख जताया था कि अभी तक सुधार की कोई रूपरेखा बनाने की शुरुआत भी नहीं हुई है. वो शुरुआत अब भी होती इसलिये नहीं दिखती कि सीरिया और इराक पर हवाई हमले के बाद तुर्की के रक्षा मंत्रालय ने रविवार की अलसुबह ट्वीट किया, "गिनती का समय आ गया है. हमलों को अंजाम देने वालों को जवाबदेह ठहराया जाएगा." ऐसे में तुर्की-सीरिया की इस जंग का अंतिम नतीजा क्या होगा, ये कोई भी नहीं जानता.

 नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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