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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

Opinion: ट्विटर के पूर्व सीईओ डोर्सी के बयान से सियासी बवाल के बीच शकील अहमद ने साझा किया उनके साथ हुआ वाकया

ट्विटर के पूर्व सीईओ जैक डोर्सी ने एक यूट्यूब चैनल को दिए इंटव्यू में ये कहा कि दुनियाभर के सरकारों की तरफ से उनके ऊपर दबाव बनाने की कोशिश की गई. उन्होंने भारत का नाम लेते हुए कहा कि किसान आंदोलन के वक्त कई ट्विटर एकाउंट्स को ब्लॉग करने की सिफारिश की गई थी. इसमें कई ऐसे पत्रकार भी शामिल थे, जो सरकार की आलोचना उस वक्त कर रहे थे. इस दौरान ये धमकी दी गई कि हम भारत में ट्विटर को बंद कर देंगे.

मेरे हिसाब से जैक डोर्सी ने बिल्कुल सही आरोप लगाया है. भारत की राजनीति में ये कोई नई बात नहीं है. पहले भी उनके यहां पर छापा पड़ा था लेकिन ये बात आपने और हमने सभी ने देखा था. इसके अलावा मैं खुद भी उसका भुक्तभोगी हूं. 

मैं ट्विटर पर हूं और मेरे फॉलोअर्स और फ्रेंड्स की संख्या आज की तारीख में 3 लाख 65 हजार है. ये लगभग पिछले 2 साल से वहीं पर रुका हुआ है. मैंने 1 फरवरी 2022 को एक ट्विट किया कि पिछले काफी दिनों से फॉलोअर्स की संख्या रुकी हुई है. आपको जानकर ये आश्चर्य होगा कि 1 फरवरी 2023 को फिर से मैंने ट्वीट किया कि मेरे रेग्यूलर एक्टिविटी के बाद भी ये संख्या लगातार घटती जा रही है.

मेरे साथ भी हुई ऐसी घटना
आप कांग्रेस के सीनियर नेता शशि थरूर जी को जानते होंगे. उन्होंने इस तरह का ट्वीट किया और करीब सैकड़ों लोगों ने ऐसे ट्वीट्स किए. ट्विटर में ये है कि दोनों अगर एक दूसरे को फॉलो करते हैं तो उनका अगर कोई ट्वीट होगा तो आपकी टाइम लाइन पर नजर आ जाएगा.

 

शशि थरूर और मैं, हम दोनों एक दूसरे को फॉलो करते हैं. बल्कि सच्चाई ये है कि मेरे फॉलो करने के करीब एक-डेढ़ साल पहले से थरूर जी मुझे फॉलो करते आ रहे हैं. लेकिन पिछले करीब सालभर से उनका कोई भी ट्वीट मेरे टाइम लाइन पर नहीं आया है. मुझे लगता है कि मेरा पोस्ट भी उनके टाइम लाइन पर भी नहीं गया है. ट्विटर-फेसबुक के साथ ही किसी संस्था को भी केन्द्र सरकार ने नहीं छोड़ा है.

मैंने यही ट्वीट किया है कि क्यों भाई क्यों रोक दिया है इसलिए कि हम विपक्ष में हैं तो सरकार के खिलाफ क्रिटिकल ट्वीट करते हैं, जो सरकार की नीतियों के खिलाफ है. जिन्होंने ये आरोप लगाया है, उनको भी टैग करते हुए मैंने ट्वीट किया था कि ये क्या हो रहा है. मैं तो खुद भुक्तभोगी हूं और हम ये महसूस कर रहे हैं.

मैं खुद भुक्तभोगी

मैं जब कोई ट्वीट करता हूं तो मुश्किल से आजकल 2 हजार से 4 हजार लोगों तक वो ट्वीट पहुंचता है. लेकिन, पिछले दिनों सरकार के पक्ष में एक व्यक्ति ने ट्वीट किया, जिनके फ्रैंड्स या फॉलोअर्स की तादाद सिर्फ 11 थी और उसको 3 लाख से ज्यादा लोगों ने देख लिया. एक अन्य व्यक्ति ने उसको टैग करते हुए ट्वीट किया कि ऐसे कैसे मुमकिन है कि इतने लोगों ने कैसे देख लिया. जबकि, जिनके 5 लाख फॉलोअर्स है, उनको सिर्फ 200 या 400 ही देख पाते हैं. ये चाहे सरकार के स्तर पर हो या फिर ट्वीटर की तरफ से हो, लेकिन ऐसा हो रहा है.

एक ट्वीटर यूजर के तौर पर हम ये कह सकते हैं कि ये बिल्कुल हो रहा है. अब हम लोगों को भी शक है कि चूंकि जो सरकार की नीतियों का विरोध करते हुए ट्वीट होता है, उसी से शिकायत हो रहा है. हमलोगों ने कहा कि सरकार के खिलाफ जो ट्वीट होता है वो रोक रहे हैं. लेकिन, सरकार के पक्ष में भी जो लोग कर रहे हैं, उन लोगों ने कभी ऐसी शिकायत नहीं की है कि उनका ट्वीट अधिक से अधिक लोगों तक नहीं पहुंच रहा है.

दुनिया में हो रहे बेपर्दा

कहने को आज हम सबसे बड़े जनतंत्र हैं, आज दुनिया में यही दिखाया-बताया जा रहा है, लेकिन जब जनतंत्र में कोई बात नहीं फैलने दे रहे हैं तो ये बिल्कुल जनतंत्र के खिलाफ है. इंटरनेट के जमाने में आज कोई भी दुनिया में बातें नहीं रोक सकता है. इसलिए, कोई बात स्थानीय स्तर पर तो रहती नहीं है.

सोशल मीडिया की एक घटना आपको बताएं- कोविड के जमाने में अमेरिका में रह रही मेरी बहन ने ट्वीट किया, एक मौलाना फंस गए थे. बहुत भावुक उनकी अपील थी. मैंने पता किया और रात 11 बजे पता चला. भोपाल शहर के एक मेरे परिचित विधायक आरिफ मसूद मेरी पार्टी के हैं, उनको फोन किया तो उन्होंने कहा कि अभी से करीब चार घंटे पहले उनको रेस्क्यू कर उनके घर पहुंचवा दिया. आप समझ सकते हैं कि अमेरिका तक वो वीडियो चला गया और वो वापस यहां तक आ गया. ऐसे में इंटरनेट के जमाने में किसी चीज को नहीं छिपाई जा सकती है. सरकार को इस पर संसद में जवाब देना चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों किया. अगर सरकार इससे इनकार कर रही है तो फिर इस पर सफाई देनी चाहिए.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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