संयुक्त अरब अमीरात (UAE) अरब देशों में भारत का एक मजबूत और भरोसेमंद साथी बन गया है. पिछले 8 साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूएई की पांचवीं यात्रा इसका कूटनीतिक प्रमाण है. फ्रांस से लौटते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 जुलाई को अबू धाबी पहुंचकर यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान से मुलाकात कर द्विपक्षीय संबंधों से जुड़े हर आयाम पर चर्चा की. इस दोनों देशों की बीच व्यापक रणनीतिक साझेदारी के नए अध्याय की शुरुआत माना जा रहा है.
व्यापक रणनीतिक साझेदारी का नया अध्याय
ऐसे तो इस यात्रा पर दोनों देशों के बीच कुछ करार भी हुए, लेकिन उनमें सबसे ख़ास था आपसी कारोबार के लिए स्थानीय मुद्राओं के इस्तेमाल को लेकर बनी सहमति. दोनों देश रुपये और दिरहम में व्यापार को बढ़ावा देने के लिए एक फ्रेमवर्क बनाने को तैयार हो गए हैं. इससे भविष्य में दोनों देशों के बीच रुपये और यूएई की करेंसी दिरहम में व्यापार मुमकिन हो पाएगा.
इसके साथ ही दोनों ही देश आपसी भुगतान प्रणाली को जोड़ने के लिए भी तैयार हुए हैं. इससे भारत के यूपीआई यूएई के इंस्टेंट पेमेंट प्लेटफॉर्म आपस में जुड़ेंगे, जिससे भविष्य में यूएई में यूपीआई के जरिए भुगतान संभव हो पाएगा.
इनके अलावा दोनों देश अबू धाबी में आईआईटी-दिल्ली का कैंपस खोलने पर राजी हुए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस यात्रा के कूटनीतिक महत्व को सिर्फ़ इन समझौतों तक ही सीमित करके नहीं समझा सकता है.
अरब देशों में भारत का भरोसेमंद साथी
बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार यूएई का दौरा अगस्त 2015 में किया था. किसी भारतीय प्रधानमंत्री का ये 34 साल बाद यूएई का दौरा था. इससे पहले 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यूएई की यात्रा की थी. पीएम मोदी फरवरी 2018, अगस्त 2019 और जून 2022 में भी यूएई की यात्रा गए थे. पीएम मोदी की इस पहल से समझा जा सकता है कि खाड़ी के इस्लामिक देश यूएई के साथ रिश्तों को मजबूत बनाने को लेकर भारत कितना गंभीर है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली ही यूएई यात्रा के दौरान ही दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में बदलने के बारे में सोचने पर सहमति बनी थी. इसके बाद जब मौजूदा यूएई राष्ट्रपति ( उस वक्त अबू धाबी के क्राउन प्रिंस) 2017 में शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान भारत दौरे पर आए थे तो भारत-संयुक्त अरब अमीरात संबंध को औपचारिक तौर से आगे बढ़ाते हुए व्यापक रणनीतिक साझेदारी में तब्दील कर दिया गया था. इन सबके जरिए दोनों देशों ने ये बता दिया था कि भविष्य में आपसी संबंध किस मुकाम पर पहुंचने वाले हैं.
वर्तमान समय में यूएई खाड़ी देशों में भारत का सबसे भरोसेमंद और मजबूत दोस्त बन चुका है. आर्थिक नजरिए से अरब देशों में सऊदी अरब, यूएई, ईरान, इराक जैसे देश काफी प्रभावशाली माने जाते हैं, जिनका वैश्विक मंच पर आर्थिक गतिविधियों को आकार देने में बड़ी भूमिका है. इनमें से यूएई ही ऐसा देश है, जिसकी भारत के साथ साझेदारी पिछले कुछ सालों में बेहद मजबूत हुई है.
व्यापार है दोस्ती का सबसे प्रमुख स्तंभ
कूटनीतिक के साथ ही यूएई के साथ दोस्ती का सबसे प्रमुख स्तंभ द्विपक्षीय व्यापार है. भारत के व्यापारिक साझेदार के मामले में यूएई तीसरे नंबर पर है. अमेरिका और चीन के बाद यूएई ही भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. इतना ही नहीं यूएई भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य भी है. निर्यात गंतव्य के मामले में अमेरिका पहले नंबर पर है. इसके अलावा भारत के आयात के मामले में भी चीन के बाद यूएई दूसरे नंबर पर है.
भारत का तीसरा सबसे बड़ा साझेदार
भारत-यूएई के बीच व्यापार को 2022-23 में ऐतिहासिक ऊंचाई मिली. इस अवधि में द्विपक्षीय व्यापार करीब अरब डॉलर पहुंच गया. जबकि 2012-22 में द्विपक्षीय व्यापार 72.9 अरब डॉलर रहा था. द्विपक्षीय व्यापार को पंख देने में व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) की सबसे बड़ी भूमिका रही. दोनों देशों ने 18 फरवरी 2022 को इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और ये समझौता 1 मई 2022 से लागू हो गया था.
भारत के साथ यूएई आपसी संबंधों और व्यापार को कितना ज्यादा महत्व दे रहा है, ये इसी बात से पता चलता है कि फरवरी 2022 में भारत पहला ऐसा देश था जिसके साथ यूएई ने व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता किया था. इतना ही नहीं पिछले एक दशक में यूएई ही वो देश है जिसके साथ भारत मुक्त व्यापार से जुड़ा कोई समझौता किया है. यूएई से पहले 2011 में जापान के साथ भारत ने ऐसा समझौता किया था. पिछले एक दशक के दौरान भारत की ओर से किया गया पहला मुक्त व्यापार समझौता है. भारत ने पिछला मुक्त व्यापार समझौता 2011 में जापान से किया था. यूएई से करार के लागू होने के बाद द्विपक्षीय व्यापार में 15% से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई.
यूएई को निर्यात बढ़ाने पर ज़ोर
यूएई के साथ व्यापार में भारत के लिए एक सोचने वाला पहलू ये हैं कि ट्रेड बैलेंस यूएई के पक्ष में है. भारत से निर्यात के मामले में भले ही यूएई दूसरे पायदान पर है, इसके बावजूद भी हम यूएई से निर्यात के मुकाबले बहुत ज्यादा आयात करते हैं. व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता से इस मोर्चे पर भारत को मदद मिल रही है. इसकी वजह से 2022-23 के दौरान निर्यात भी नई ऊंचाई पर पहुंच गया. इस दौरान निर्यात में 3..3 अरब डॉलर की वृद्धि दर्ज की गई और ये आंकड़ा 31.3 अरब डॉलर तक पहुंच गया.
द्विपक्षीय व्यापार में 1990 के दशक से तेजी
दोनों देशों के बीच व्यापारिक साझेदारी कितनी मजबूत हुई है, इसे 4-5 दशक पहले के आंकड़ों से समझा जा सकता है. 1970 के दशक में यूएई के साथ भारत का व्यापार सिर्फ़ 18 करोड़ डॉलर का हुआ करता था, जो अब यहां तक पहुंच गया है.
भारत और यूएई के बीच आर्थिक संबंधों में 1990 के दशक की शुरुआत से तेजी आने शुरू हुई. उस वक्त यूएई ने भारत के तेल और गैस क्षेत्र में निवेश करना शुरू किया. उसके बाद से द्विपक्षीय व्यापार तेजी से बढ़ा. एशिया में संयुक्त अरब अमीरात का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भारत है.
100 अरब डॉलर तक पहुंचने का भरोसा
दोनों ही देश द्विपक्षीय व्यापार के 85 अरब डॉलर तक पहुंचने से बेहद उत्साहित हैं. दोनों देश चाहते हैं कि व्यापार का आंकड़ा जल्द ही 100 अरब डॉलर तक पहुंच जाए. मजबूत होती दोस्ती के बीच 15 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो इतना तक भरोसा जताया है कि इस साल सितंबर में होने वाली जी 20 की सालाना बैठक से पहले द्विपक्षीय व्यापार के 100 अरब डॉलर के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है. ये भरोसा बताता है कि यूएई अरब देशों में भारत का एक टिकाऊ और मजबूत दोस्त बन चुका है.
गैर-तेल द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने पर ज़ोर
इतना ही नहीं दोनों देश गैर-तेल द्विपक्षीय व्यापार को वर्ष 2030 तक 100 अरब डॉलर पर ले जाना चाहते हैं. मौजूदा समय में भारत-यूएई के बीच पेट्रोलियम उत्पादों से अलग द्विपक्षीय व्यापार 48 अरब डॉलर है. दोनों देशों का इरादा है कि अगले 7 साल में गैर-पेट्रोलियम कारोबार दोगुने से भी ज्यादा हो जाए.
यूएई, भारत के लिए कच्चे तेल का परंपरागत आपूर्तिकर्ता रहा है. द्विपक्षीय व्यापार में यूएई से भारत को मिलने वाले कच्चे तेल की हिस्सेदारी बहुत ज्यादा है. मई में संयुक्त अरब अमीरात ने 2,03,000 बैरल प्रतिदिन की आपूर्ति की थी. अभी भी भारत के कच्चे तेल के आयात में यूएई की हिस्सेदारी 10 फीसदी के आसपास है. वित्त वर्ष 2022-23 में भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश यूएई था.
कच्चे तेल को लेकर बड़ा आपूर्तिकर्ता
यूक्रेन से युद्ध शुरू होने के बाद रूस से भारत को कम कीमतों पर कच्चा तेल मिलना शुरू हुआ था. इसकी वजह से फिलहाल हम 45 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल रूस से हासिल कर पा रहे हैं. हालांकि यूक्रेन युद्ध की समाप्ति पर रूस से इसी तरह से कच्चा तेल सस्ते दामों पर मिलते रहेगा, इसकी गारंटी नहीं है. इस नजरिए से देखें तो यूएई के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी का महत्व और बढ़ जाता है.
अरब देशों में सऊदी अरब, इराक और ईरान के मुकाबले यूएई से तेल हासिल करना भारत के लिए ज्यादा फायदेमंद रहेगा. ऐसे भी इन चार देशों में से सऊदी अरब, इराक और ईरान का झुकाव हाल के महीनों में चीन के प्रति बढ़ा है. वहीं पिछले 3 साल में हमारा चीन के साथ संबंध लगातार बिगड़ते जा रहे हैं. उधर रूस की नजदीकियां भी चीन से बढ़ी है. इस लिहाज से भी अरब देशों में यूएई के साथ बढ़ती दोस्ती भारत के हितों के लिए बेहद मायने रखता है.
निवेश के पहिया से मजबूत होता जा रहा है भरोसा
भरोसे की इस दोस्ती को और मजबूत बनाने में निवेश का भी दमदार योगदान है. पिछले कुछ सालों से यूएई का निवेश भारत में तेजी से बढ़ा है. भारत में यूएई का निवेश फिलहाल 21 अरब डॉलर होने का अनुमान है. इसमें 15.18 अरब डॉलर एफडीआई के रूप में है जबकि बाकी पोर्टफोलियो निवेश है. एफडीआई के मामले में यूएई भारत का सातवां सबसे बड़ा निवेशक है. अबू धाबी निवेश प्राधिकरण (ADIA) की ओर से भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 75 अरब डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता कुछ साल पहले ही जताई गई थी. यूएई की ओर से अगले 3 वर्षों में भारत के खाद्य क्षेत्र में भारत-यूएई फूड कॉरिडोर के विकास, कोल्ड स्टोरेज, वेयरहाउसिंग, खाद्य-प्रसंस्करण, मत्स्य पालन और मुर्गी पालन में 7 अरब डॉलर तक निवेश करने की उम्मीद है. इसका मकसद अगले 5 साल में भारत से संयुक्त अरब अमीरात के लिए खाद्य आयात को मूल्य के संदर्भ में बढ़ाकर 3 गुना करना है.
यूएई में भारतीय कंपनियों का भारी निवेश
भारतीय कंपनियों का भी यूएई में भारी निवेश है. कोई आधिकारिक आंकड़ा को उपलब्ध नहीं है, लेकिन अबू धाबी में भारतीय दूतावास के मुताबिक भारतीय कंपनियों की ओर से संयुक्त अरब अमीरात में निवेश 85 अरब डॉलर से ज्यादा होगा. वहां भारतीय कंपनियां का सीमेंट, भवन निर्माण सामग्री, कपड़ा, इंजीनियरिंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स में ज्वाइंट वेंचर या स्पेशल इकोनॉमिक जोन में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट है. कई भारतीय कंपनियों का यूएई में पर्यटन, आतिथ्य, खानपान, स्वास्थ्य, खुदरा और शिक्षा क्षेत्रों में भी भारी मात्रा में निवेश है. इन सबसे से समझा जा सकता है कि व्यापार के साथ ही निवेश भी वो महत्वपूर्ण कड़ी है, जिससे दोनों देशों के संबंध मजबूती से जुड़े हैं.
व्यापार में चीन के विकल्प पर नज़र
चीन से बिगड़ते रिश्तों के बीच एक कड़वा सच ये भी है कि अभी भी चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. उसमें भी आयोत को लेकर भारत काफी हद तक चीन पर निर्भर है. आयात के मोर्चे पर चीन हमारा सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर है. चीन के साथ भारत का जो व्यापार है, उसमें भारत से चीन को निर्यात का हिस्सा बेहद कम है, इस कारण से ट्रेड बैलेंस चीन के पक्ष में बहुत ज्यादा है. आने वाले वक्त में भारत को आयात के मामले में चीन पर निर्भरता कम करने के लिए नए-नए विकल्पों को खोजना होगा. इस लिहाज से अमेरिका, फ्रांस जैसे देशों के साथ ही यूएई की अहमियत बढ़ जाती है.
इंडो पैसिफिक रीजन में त्रिपक्षीय ढांचे के तहत सहयोग
आर्थिक तौर से व्यापार और निवेश के साथ ही भारत के लिए यूएई त्रिपक्षीय ढांचे के तहत सहयोग के नजरिए से भी कूटनीतिक महत्व रखता है. इंडो पैसिफिक रीजन में चीन के आक्रामक रुख और विस्तारवादी रवैया को देखते हुए त्रिपक्षीय ढांचे के तहत भारत के लिए यूएई एक भरोसेमंद दोस्त बन सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फ्रांस दौरा और वहां से लौटते वक्त यूएई की यात्रा को इस त्रिपक्षीय सहयोग के नजरिए से भी समझना होगा. फ्रांस से लौटते वक्त पीएम मोदी ने यूएई दौरे को क्यों चुनाव उसके पीछे यही वजह है.
'भारत-फ्रांस इंडो पैसिफिक रोडमैप' में भी शामिल
जब पेरिस में 14 जुलाई को भारत-फ्रांस इंडो पैसिफिक रोडमैप को दुनिया के सामने रखा गया तो उसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र, मुक्त, समावेशी और सुरक्षित बनाने में त्रिपक्षीय सहयोग के ढांचे को भी स्वीकार किया गया है. भारत-फ्रांस इंडो पैसिफिक रोडमैप में कहा गया है कि समान विचारधारा वाले साझेदारों के साथ त्रिपक्षीय सहयोग इंडो पैसिफिक रीजन में सहयोग का एक प्रमुख स्तंभ है. हम जानते हैं कि भारत, फ्रांस और यूएई तीनों देश त्रिपक्षीय ढांचे के तहत रक्षा, परमाणु ऊर्जा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर काम कर रहे हैं. इन तीनों देशों के बीच इस साल 4 फरवरी को सहयोग से जुड़े क्षेत्रों को लेकर सहमति बनी थी. अब भारत और फ्रांस चाहते हैं कि यूएई के साथ त्रिपक्षीय ढांचे के तहत सहयोग को इंडो पैसिफिक रीजन में शक्ति संतुलन को बनाए रखने के नजरिए से भी आगे बढ़ाया जाए.
भारत के साथ मजबूत दोस्ती यूएई के हित में
ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ भारत ही अरब देश यूएई के साथ संबंधों को बढ़ाने के लिए प्रयास कर रहा है. यूएई की ओर से भी पिछले कुछ सालों में लगातार उच्चस्तरीय यात्राओं के जरिए भारत के साथ दोस्ती को मजबूत करने की कोशिश देखी गई है. 2016 में शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने भारत की यात्रा की थी. उसके बाद फिर से 2017 में शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बने थे. इन दोनों यात्राओं के वक्त वे अबू धाबी के क्राउन प्रिंस थे.
शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान मई 2022 में यूएई के राष्ट्रपति बने. उसके बाद जब 28 जून 2022 को जर्मनी से लौटते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अबू धाबी पहुंचे तो राष्ट्रपति नाहयान प्रोटोकॉल तोड़कर खुद एयरपोर्ट पर मोदी का स्वागत करने पहुंचे थे. अगस्त 2019 में जब नरेंद्र मोदी बतौर पीएम तीसरी बार यूएई की यात्रा की थी, उस वक्त यूएई ने नरेंद्र मोदी को सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'ऑर्डर ऑफ जायद' से सम्मानित किया था.
उच्चस्तरीय यात्रों से संबंधों में और आएगी प्रगाढ़ता
इस साल 9 और 10 सितंबर को दिल्ली में जी 20 का शिखर सम्मेलन होना है. इसमें शामिल होने के लिए बतौर राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान पहली बार भारत आएंगे. ऐसे तो यूएई जी 20 का सदस्य नहीं है, लेकिन विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर यूएई के राष्ट्रपति इस बैठक में हिस्सा लेंगे. उसी तरह इस साल के आखिर तक संयुक्त अरब अमीरात COP-28 सम्मेलन की मेजबानी कर रहा है. इसमें हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर से यूएई का दौरा इसी साल करेंगे.
अर्थव्यवस्था में विविधता लाने पर यूएई का ज़ोर
संयुक्त अरब अमीरात एक तेल आधारित अर्थव्यवस्था है. पिछले कुछ सालों से यूएई की कोशिश है कि तेल आधारित अर्थव्यवस्था पर उसकी निर्भरता कम हो. वो अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने पर काम कर रहा है. ‘सर्कुलर इकोनॉमिक पॉलिसी’ पर काम करते हुए यूएई दुनिया के अलग-अलग देशों में निवेश की संभावनाओं पर काम कर रहा है. इस मकसद से भारत उसके लिए सबसे पसंदीदा और मुफीद देश साबित हो रहा है. सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था होने की वजह से भविष्य में भी निवेश के लिए यूएई का भरोसेमंद साथी भारत साबित होगा.
अर्थव्यवस्था में विविधता लाने में भारत है बेहतर साथी
यूएई का फोकस मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर है. साथ ही वो ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर, रियल एस्टेट कारोबार और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर समेत फूड बिजनेस पर काफी ध्यान दे रहा है और इन क्षेत्रों के लिए भारत जैसा साझेदार मिलना यूएई की कूटनीतिक जरूरत है. निवेश की व्यापक संभावनाओं के साथ ही भारत में इन क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की भरमार के साथ तकनीकी दक्षता भी है, जो यूएई के हितों के लिहाज से एक अच्छा अवसर है. इसके साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध से फूड सप्लाई चेन के बाधित होने से यूएई के लिए खाद्य आपूर्ति के लिहाज से भी भारत महत्वपूर्ण हो जाता है.
ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग की अपार संभावना
ग्रीन हाइड्रोजन, सौर ऊर्जा और ग्रिड कनेक्टिविटी में सहयोग कुछ ऐसे आयाम हैं जिनमें भी भारत और यूएई की साझेदारी भविष्य के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है. यूएई भारत के रणनीतिक पेट्रोलियम रिजर्व कार्यक्रम समेत ऊर्जा स्पेक्ट्रम में निवेश बढ़ाने को भी तैयार है, जो भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने और भविष्य में आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को हासिल करने में निर्णायक साबित हो सकता है.
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