बीते कई घंटों से तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बेटे उदयनिधि स्टालिन का बयान साझा किया जा रहा है. उदयनिधि ने अपने बयान में सनातन धर्म की डेंगू और मलेरिया से तुलना की. वह यहीं नहीं रुके बल्कि इसे 'इरैडिकेट' करने की भी धमकी दी. यह बयान उन्होंने तमिलनाडु प्रगतिशील लेखक संघ के एक कार्यक्रम में दिया. इस देश के सबसे बड़े धार्मिक समूह के सीधे तौर पर नरसंहार की धमकी देने के बाद भी वह नहीं रुके, बल्कि फिर से एक धमकी दी कि उन्हें किसी का कोई खौफ नहीं है और वह सनातन का केवल विरोध नहीं करेंगे, उसका खात्मा करने तक काम करेंगे. इस बयान पर चर्चा चाहे जैसी और जो भी हो, लेकिन एक धर्मनिरपेक्ष लोकतात्रिक देश में लगभग 1 अरब लोगों को अगर एक राज्य का मंत्री, वहां के मुख्यमंत्री का बेटा इस तरह धमकी देता है, तो यह जाहिर तौर पर बेहद चिंता का विषय है. इससे पहले भी कई नेता सनातन धर्म के खिलाफ कई तरह के अपमानजनक बयान दे चुके हैं, जिसमें यूपी के स्वामी मौर्य, बिहार के शिक्षामंत्री चंद्रशेखर और ताजातरीन उदय का बयान भी शामिल है.
सनातनियों को धमकी
उदयनिधि स्टालिन के बयान को कई तरह से देखा जाना चाहिए. मैंने पहला सवाल खुद से पूछा कि संत तिरुवल्लुर, नयनमार, जो आलवार हुए हैं, क्या उनकी परंपरा से सारे देश का कल्याण नहीं होता? और, मेरे मन से स्पष्ट जवाब आया कि इन सबके जो संदेश हैं, इनके जो भी उपदेश हैं, वो पूरे समाज के लिए लाभदायक हैं. इसलिए सनातन और द्रविड़ धारा को बहुत अलग-अलग कहना और उस पर जोर देने के बजाय एकता के सूत्र ढूंढे जाने चाहिए. दूसरी बात यह जाननी चाहिए कि उदय ने जो बयान दिया है कि वह सनातनियों को इरैडिकेट कर देंगे, वह उनकी सरकार की तरफ से है या फिर इस बयान को आइएनडीआइए गठबंधन का भी समर्थन है. अगर ये संदेश सरकार की तरफ से है, तो निश्चय ही यह संविधान में दिए गए जो नागरिकों के अधिकार हैं, अपना धर्म मानने की जो आजादी है, उसके भी खिलाफ है. यह एक तरह की धमकी है और इसको वैसे भी देखा जाना चाहिए, बहुत गंभीरता के साथ. मैं पूरे देश के लोगों से यह अपील करना चाहता हूं कि भाषा और भाव दोनों ही देखना चाहिए. वह नेता सनातन की तुलना डेंगू और मलेरिया से कर रहा है. वह कहता है कि हम इनका विरोध ही नहीं करेंगे, हम तो इनको खत्म करेंगे. क्या इस विचार को यह देश आनेवाले चुनाव में स्वीकार करेगा? अगर आइएनडीआइए अपने कुनबे से द्रमुक को नहीं निकालता, तो इस पाप भरी धमकी के छींटे उस पर नहीं पड़ेंगे? यह देश को बांटने वाला बयान है. साथ ही, यह आइएनडीआइए में भी फूट डालने वाला है. मैं इसकी कठोर निंदा करता हूं.
केंद्र इस पर गंभीरता से दे ध्यान
अगर वहां की सरकार कहती है कि हां ये उनका एजेंडा है, तो इसकी जांच होनी चाहिए कि क्या वहां पर शासन संविधान से चल रहा है, या वहां पर ब्रेकडाउन ऑफ कांस्टीट्यूशन हो गया है? अगर ऐसा खतरा है, तो जो कार्रवाई उचित हो, वह कदम केंद्र सरकार को उठाना चाहिए. आनेवाले चुनाव में अलगाववाद की भावना को भड़का कर समाज के एक हिस्से से वोट बटोरने का स्वार्थ इनके मन में हो सकता है. नूंह की घटना और इस घटिया बयान में कोई तुलना नहीं है. नूंह में तीर्थयात्री अपनी यात्रा पर थे, उन पर हमला किया गया था. मैं आपको कहूं कि उन परिस्थितियों पर बहुत हद तक काबू पा लिया गया है और 70 देशों के शेरपाओं की बैठक बहुत अच्छे माहौल में मेवात के क्षेत्र में हो रही है. मैं इन दोनों घटनाओं की तुलना नहीं मानता, लेकिन ये मानता हूं कि इस्लाम को माननेवालों का एक वर्ग जिहाद को मानता है. वह हमले को, लूटमार को, बलात्कार को उचित मानता है और उन्हीं की तैयारी कर उसी तरह से हमला करते हैं. यह पूरी दुनिया के नागरिक समाज के लिए खतरा है. इसको विचारधारा और जमीन के स्तर पर कन्फ्रन्ट करने की बात है.
ये बात सच है कि लोग इस तरह के बयान देते हैं और कड़ी कार्रवाई नहीं होती, इसलिए वे लगातार इस तरह के बयान देते हैं. सुप्रीम कोर्ट में हेट स्पीच के बारे में जो मुकदमा चल रहा है, उसमें एक एप्लिकेशन लगाकर इसको भी शामिल करने की अर्जी देंगे. यह भी पता चला है कि कुछ और लोगों ने भी आपराधिक शिकायत दर्ज की है. इसलिए, ये मामला वहां भी जाएगा और परीक्षण भी होगा. जिस तरह बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर, यूपी के नेता स्वामी मौर्य या फिर अब ये तमिलनाडु के उदयनिधि जो लगातार इस तरह के बयान देते रहे हैं, सनातन धर्म के खिलाफ, वह आनेवाले चुनाव में समाज को बांटने और अपने हित में वोट डालने के लिए प्रेरित करना है. ना तो मौर्य के बयान से यूपी की जनता भ्रमित होगी, न चंद्रशेखर के बयान से बिहार की. अनुसूचित समाज भी तो हिंदू समाज का अभिन्न अंग है. वह हिंदू होने के नाते ही वोट देगा. जो द्रविड़ हैं, वो भी भारत की आध्यात्मिक परंपरा के लोग हैं. इस तरह के बयानों से जो भ्रम फैलाया जाता है, जनता उसको पहचान चुकी है और अब इनके झांसे में नहीं आनेवाली है.
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