महाराष्ट्र की सरकार पर आया सियासी संकट हर पल एक नया मोड़ ले रहा है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने संदेश में जहां सशर्त इस्तीफा देने की पेशकश कर दी है, तो वहीं एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने सरकार बचाने का फार्मूला सुझाते हुए एकनाथ शिंदे को ही सीएम बना देने की सलाह दी है. सवाल ये है कि क्या शिंदे इसके लिए तैयार होंगे क्योंकि उनकी तो बगावत ही इस बात को लेकर है कि शिवसेना को एनसीपी और कांग्रेस से नाता तोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनानी चाहिए?


पार्टी के अन्य बागी विधायकों के साथ गुवाहाटी में मौजूद शिंदे का दावा है कि उनके साथ कुल 46 विधायक हैं, जिनमें से 40 शिवसेना के हैं. अगर उनका ये दावा सही है, तब इन पर दल बदल विरोधी कानून लागू नहीं होगा और ये एक नया समूह बनाकर बीजेपी को सरकार बनाने के लिए अपना समर्थन दे सकते हैं. अब सरकार गिराने और फिर उसे बचाने के असली किरदार तो शिंदे ही हैं, जिनको ये फैसला लेना है कि वे महाविकास अघाड़ी सरकार का सीएम बनने के लिए तैयार होते हैं या फिर बीजेपी की सरकार बनवाने में 'किंग मेकर' की भूमिका निभाते हैं.


इस बीच शिवसेना सांसद संजय राउत ने दावा किया है कि उद्धव ठाकरे इस्तीफा नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे सीएम हैं और सीएम रहेंगे. मौका मिला तो फ्लोर पर बहुमत साबित करेंगे. जबकि इससे पहले राज्य की जनता के नाम दिए संदेश में उद्धव ने साफ कहा था कि अगर एकनाथ शिंदे सामने आकर मुझसे कहें, तो मैं इस्तीफा देने के लिए तैयार हूं.


सॉफ्ट हिंदुत्व अपनाने के शिंदे के आरोप पर ठाकरे ने ये सफाई भी दी कि सेना और हिंदुत्व हमेशा बरकरार है. शिवसेना को हिंदुत्व से अलग नहीं किया जा सकता है और हिंदुत्व को शिवसेना से अलग नहीं किया जा सकता है.लेकिन शिंदे और अन्य विधायकों की बगावत ये बताती है कि पिछले ढाई साल में शिव सेना ने हिंदुत्व से जुड़े हर मुद्दे पर नरम रुख अपनाया है,जो कि पार्टी के मूल स्वभाव के बिल्कुल उलट है. दरअसल,शिव सेना के लिए हिंदुत्व ही ऑक्सीजन है जिसने उसे कई बार सत्ता तक पहुंचाया है.


इसीलिये शिंदे ने उद्धव ठाकरे को जवाब दिए हुए अपने ट्वीट में लिखा- "पिछले ढाई वर्षों में, एमवीए सरकार ने केवल घटक दलों को फायदा पहुंचाया, और शिवसैनिकों को भारी नुकसान हुआ. घटक दल मजबूत हो रहे हैं, शिवसेना का व्यवस्थित रूप से गबन किया जा रहा है. पार्टी और शिवसैनिकों के अस्तित्व के लिए अस्वाभाविक मोर्चे से बाहर निकलना जरूरी है. महाराष्ट्र के हित में अब निर्णय लेने की जरूरत है."


उनके इस बयान से साफ है कि वे एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार के सीएम बनने के लिए  तैयार नहीं है. शिव सेना पर आए इस संकट के बारे में "बाल ठाकरे ऐंड द राइज़ ऑफ़ शिवसेना" पुस्तक के लेखक वैभव पुरंदरे कहते हैं, "इस घटना से पार्टी की लीडरशिप पर सवाल उठते हैं. जिस तरह पार्टी काम कर रही है, जिन मुद्दों को पार्टी ने उठाया, जिन पार्टियों के साथ शिवसेना ने गठबंधन किए. क्या शिवसेना ने गठबंधन करने से पहले विधायकों को विश्वास में लिया? क्या शिवसेना को ठाकरे परिवार के नेतृत्व में सिर्फ़ कुछ लोग चला रहे थे? ये सभी सवाल उठाए जा रहे हैं."


उनके मुताबिक, ठाकरे परिवार के नेतृत्व में पार्टी लीडरशिप किस तरह से कार्यकर्ताओं से कटी हुई है, ये जगजाहिर था, लेकिन हैरानी ये है कि स्थिति को ठीक करने के लिए कुछ भी नहीं किया गया.


जानकारों की मानें तो एकनाथ शिंदे ख़ुद को पार्टी में 'साइडलाइन' महसूस कर रहे थे. वो ख़ुद मुख्यमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन उद्धव ठाकरे ने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को आगे बढ़ाया. आम कार्यकर्ताओं और विधायकों से उद्धव ठाकरे की दूरी, उद्धव ठाकरे की अनुपलब्धता, बातचीत की कमी आदि ऐसी चीजें हैं, जो मौजूदा हालात के लिए ज़िम्मेदार हैं.


महाराष्ट्र की राजनीति की नब्ज समझने वाले जानकार कहते हैं कि इन वजहों से पार्टी के तकरीबन सभी विधायक हर काम के लिए एकनाथ शिंदे के पास ही जाते थे. मसलन,कोई फाइनेंस का काम है तो शिंदे ही अजित पवार को फ़ोन करते थे कि ये काम करो. इसलिए विद्रोह करने वाले इतने सारे विधायकों ने एकनाथ शिंदे पर विश्वास जताया.


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