21 फरवरी 2022 की देर रात रूस ने इतिहास की एक नई इबारत लिखकर ये जता दिया कि वो अमेरिका से कहीं भी कमजोर नहीं है. लेकिन उसके इस एक ऐतिहासिक फैसले ने दुनिया को जंग के मुहाने पर ला खड़ा किया है. रूस ने पूर्वी यूक्रेन को एक अलग स्वतंत्र देश की मान्यता देकर सीधे-सीधे अमेरिका समेत NATO के तमाम सदस्य देशों को कुछ इस अंदाज में चुनौती दे डाली है कि आपसे जो कुछ भी बनता हो, बिगाड़ के दिखा दो. लेकिन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इस फैसले ने समूची दुनिया को इसलिये डरा दिया है क्योंकि उन्होंने बातचीत के जरिये इस संकट को सुलझाने की बजाय युद्ध का बिगुल बजाया दिया है.


इतना खतरनाक फैसला लेने से पहले पुतिन जब रूसी जनता को टीवी चैनल पर संबोधित कर रहे थे, तब उसे अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से लेकर ब्रिटेन, फ्रांस ,जर्मनी समेत यूरोपियन यूनियन के सभी देशों के राष्ट्र प्रमुख भी बड़े गौर से सुन रहे थे. इसलिये कि उन्हें भी अंदेशा था कि पुतिन किसी ऐसे फैसले का ऐलान कर सकते हैं, जो पूरे विश्व में भयंकर हलचल मचा सकता है. आखिरकार हुआ भी वही. हालांकि परमाणु बम का जखीरा रखने वाले इस दौर में अमूमन कोई भी राष्ट्राध्यक्ष ऐसा कड़ा फैसला लेने से बचता रहा है लेकिन पुतिन ने ये कदम उठाकर पूरी दुनिया को दूसरे विश्व युद्ध की याद दिला दी है. इसका असर सिर्फ यूरोपीय देशों पर ही नहीं बल्कि भारत पर पड़ना भी तय है. इसलिये कि जंग छिड़ते ही सबसे पहले कच्चे तेल की कीमतें आसमान छूने लगेंगी और उस हालात में अपने ही देश में महंगाई को थामने की कोई जादुई छड़ी हमारी सरकार के पास भी नहीं होगी. अगर युद्ध छिड़ा भी तो बेशक उसमें हमें जानमाल का कोई भारी नुकसान नहीं होने वाला क्योंकि वहां रहने वाले भारतीय नागरिकों की सुरक्षित स्वदेश वापसी के इंतजाम कर लिए गए हैं लेकिन आर्थिक विश्लेषक मानते हैं कि ये लड़ाई हमारी पूरी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से चौपट करके रख देगी और इससे उबरने में देश को कितना वक्त लगेगा, ये कोई नहीं जानता.


वैसे इस पूरे विवाद पर भारत ने निष्पक्ष रहते हुए कूटनीति के जरिये ही इस संकट का समाधान निकालने की सलाह पुतिन को दी थी. चूंकि ये ऐसा पेचीदा मामला है,जहां भारत दोनों तरफ से घिरा हुआ है,जहां वह किसी एक पक्ष का साथ देने के लिए खुलकर सामने नहीं आ सकता. उसकी बड़ी वजह ये है कि एक तरफ रूस है जो हमारा पारंपरिक व भरोसेमंद दोस्त होने के साथ ही हमारी सैन्य ताकत बढ़ाने का सबसे बड़ा भागीदार है, तो वहीं दूसरी तरफ अमेरिका है,जो हमारा रणनीतिक साझीदार है. लिहाज़ा, इस मुद्दे पर भारत अगर किसी एक के साथ खड़ा होता है, तो इसका मतलब है कि वह दुनिया की दूसरी महाशक्ति को दुश्मनी करने का न्योता दे रहा है. फिलहाल भारत की स्थिति कुछ वैसी ही है कि हम न तो निगल सकते हैं और न ही उगल सकते हैं.


भारत की तो अब भी हर संभव कोशिश यही रही है कि दुनिया की दो महा ताकतों के बीच संभावित इस जंग को किसी भी तरह से रोका जाए लेकिन उन दोनों के अपने अहंकार व मंसूबे हैं,जिसे पूरा करने के लिए वे हर सलाह को नजरअंदाज करते हुए लड़ाई की शुरुआत करने के रास्ते पर आगे बढ़ चुके हैं. आपको याद होगा कि हफ्ते भर पहले ही अमेरिका ने साफ शब्दों में रूस को ये धमकी दे डाली थी कि अगर रूस ने यूक्रेन पर हमला किया, तो उसे  इसके बेहद गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. लेकिन पुतिन ने न तो इस धमकी की कोई परवाह की और न ही अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन की सलाह को ही माना.उन्होंने एक ही झटके में यूक्रेन के दो टुकड़े करके दुनिया को अपनी ताकत का अहसास कराने का अपनी सियासी जिंदगी का सबसे कठोर फैसला ले लिया.


पूर्व राजदूत दीपक वोहरा के मुताबिक पुतिन ने यूक्रेन को दो टुकड़ों में बांटकर अमेरिका के पाले में अपना गोल कर दिया है, तो जाहिर है कि ऐसा करने से पहले उसने अपने नफ़े-नुकसान को नापतौल कर देखा ही होगा. रूसी जनता को दिए अपने भाषण में पुतिन ने ये साफ कर दिया है कि वे अमेरिका और नाटो देशों के आगे झुकने को तैयार नहीं हैं. उन्होंने इतिहास का जिक्र करते हुए अपने लोगों को भरोसा दिलाया है कि जो काम लेनिन नहीं कर सके,उसे आज उन्होंने अंजाम दे दिया है. रूस को बचाने के लिए उन्हें ये फैसला लेना जरुरी था क्योंकि अमेरिका ही यूक्रेन को रूस के खिलाफ एक बड़ा मोहरा बनाने में लगा हुआ  था.


हालांकि व्लादिमीर पुतिन ने अपने भाषण में रूसी जनता का भरोसा जीतने के लिए एक बड़ी बात ये भी कही है कि यूक्रेन के पास परमाणु हथियारों का जखीरा है और अमेरिका उसके जरिये ही रूस पर हमला करके हमें कमजोर करने की तैयारी में लगा हुआ है, इसीलिये उन्होंने साफ शब्दों में ये कह दिया कि अगर रूस पर कोई हमला करेगा,तो उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा.


वोहरा कहते हैं कि "पुतिन की इस आशंका को नहीं नकारा जा सकता कि यूक्रेन के पास काफी मात्रा में परमाणु हथिया हैं. वह इसलिये कि जब सोवियत संघ यानी USSR का विभाजन हुआ,तब इन हथियारों की सबसे बड़ी खेप सोवियत संघ के पास थी. जबकि दूसरे नंबर पर अमेरिका और तीसरी पायदान पर यूक्रेन था.इसलिये यूक्रेन आज दुनिया में परमाणु हथियारों की बड़ी ताकतों में शुमार है."


दरअसल, रूस ने पूर्वी यूक्रेन के जिस डोनेस्क और लुहान्सक प्रान्त को एक आजाद देश की मान्यता दी है, वहां कच्चे तेल और गैस का सबसे बड़ा भंडार है, जिस पर अमेरिका समेत अन्य यूरोपीय देशों की निगाह लगी हुई थी कि रूस किसी भी सूरत में इस पर अपना कब्जा न कर पाए लेकिन पुतिन ने वह कर दिखाया. अब स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता मिलने के बाद रूसी सेना को वहां जाने और लोगों की हिफाज़त करने से फिलहाल तो कोई नहीं रोक सकता.


हालांकि अमेरिका समेत यूरोपियन यूनियन EU ने रूस के इस फैसले की तीखी निंदा करते हुए इसे मिंस्क समझौते और अंतरराष्ट्रीय नियमों का घोर उल्लंघन बताया है. अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देश ये कहते आये हैं कि पूर्वी यूक्रेन में रूसी अलगाववादियों का वर्चस्व है क्योंकि रूसी सेना इन्हें लगातार मदद दे रही है लेकिन रूस हमेशा इस आरोप को खारिज करता रहा है. लेकिन हकीकत तो सामने आ ही जाती है. भारतीय समय के मुताबिक देर रात करीब सवा एक बजे जब पुतिन पड़ोसी देश के दो टुकड़े करने वाली फ़ाइल पर अपने हस्ताक्षर कर रहे थे, उसके फौरन बाद पूर्वी यूक्रेन का आसमान आतिशबाजी की रोशनी से जगमगा रहा था. चौतरफा पटाखों की गूंज में लोग जश्न मना रहे थे. लेकिन शायद वे भी ये नही जानते कि आने वाले दिनों में रोशनी का ये जश्न उनके समेत दुनिया के कितने देशों के घरों में मातम का अंधियारा लाने वाला है!


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)


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